महाभारत के युद्ध के बाद की एक कहानी के मुताबिक कृष्ण घायल थे और उन्होंने अर्जुन को मिलने के लिए बुलाया। अर्जुन फ़ौरन चल पड़े, मगर रास्ते में उनकी भेंट नारद मुनि से हो गई। नारद मिले और कुछ चतुराई भरा न सिखाएँ, ऐसा कब होता है? चुनांचे उन्होंने अर्जुन को बताया कि श्री कृष्ण को छूते ही तुम्हारी शक्ति जाती रहेगी, अमानवीय योद्धा से साधारण धनुर्धर रह जाओगे, इसलिए वहाँ चाहे जो भी करना मगर श्री कृष्ण को छूना मत! अर्जुन ने उनकी सलाह मान ली और आगे रवाना हुए।
द्वारका पहुँचने पर उन्होंने देखा कि श्री कृष्ण के शरीर पर अनेक घाव हैं। वो बोले कि अर्जुन घावों के बीच मुझे खुजली हो रही है, तुम जरा सा खुजा दो। अर्जुन सलाह याद करके हिचके तो श्री कृष्ण ने कहा कि ठीक है तुम मुझे छूना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं, अपनी धनुष के कमान से ही खुजा दो! अर्जुन ने ऐसा ही किया। अब श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि कुछ गोपियों को मथुरा-वृन्दावन की ओर जाना है लेकिन रास्ते में भीलों की लूट-पाट का डर है। तुम लौटोगे तो उन्हें साथ ही लेकर चले जाना।
अर्जुन जब गोपियों के साथ लौटने लगे तो मार्ग में सचमुच भीलों ने आक्रमण कर दिया। महाभारत युद्ध के अजेय अर्जुन, जिनके गांडीव की टंकार ही शत्रुओं को भयाक्रांत कर देती थी, उनकी एक न चली और उन्हें हराकर भीलों ने लूट-पाट की। इसके बारे में एक दोहा सा भी कई बार सुनाई देता है। कहते हैं –
“तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान।
भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण॥”
भारतीय वायुसेना के लिए मिराज-2000 कोई नई चीज़ नहीं है। ये उनका दशकों पुराना विमान है, जिसे शुरुआती दौर में उड़ाने वाले कई योद्धा अब रिटायर भी हो चुके हैं। मुम्बई पर जब पाकिस्तानी कसाब और उसके साथ के जेहादियों ने हमला किया था तब एक बहुत कम गिनती के दर्शकों वाले मामूली से एंटरटेनमेंट चैनल ने बाकायदा लाल-नीला तीर लगा कर दिखाया था कि लोग कहाँ छुपे हो सकते हैं और सेना कहाँ से हमला कर सकती है। जब उस चैनल की थुक्का-फजीहत हो रही थी, उस समय भी भारतीय नागरिकों के मन में इतना ही क्रोध था।
भारतीय वायुसेना के पास उस समय भी मिराज-2000 था और अभी जैसे ही पायलट भी थे। क्या वजह रही होगी कि उस समय ऐसा कुछ नहीं हुआ? इसके पीछे मुझे अपने एक पुराने मित्र का प्रिय जुमला याद आ जाता है। वो कहा करता था कि बाकी मुल्कों के पास फौज़ होती है, पाकिस्तान एक ऐसी फौज़ है, जिसके पास मुल्क है! कहना न होगा कि मेरे मित्र किस समुदाय विशेष से आते हैं। यही सबसे बड़ा अंतर भी है। हमारे देश में किसी इस्लामिक रिपब्लिक की तरह सेना देश के चुने हुए प्रधानमंत्री को उठाकर फांसी पर नहीं टांग देती। यहाँ सेना सरकार नहीं चलाती बल्कि सरकार के आदेश से सेना चलती है।
हमारे देश के आम नागरिकों पर 2004 से 2014 के बीच कई बार हमले हुए मगर तब राजनैतिक इच्छाशक्ति ऐसी थी ही नहीं कि नागरिकों को बचाने का सशस्त्र बलों को कोई आदेश दिया जाता। अब हालात बदल गए हैं। अब जेहादी हमलावरों को मारने के लिए मासूम निहत्थे नागरिक नहीं मिलते। अब उनका सामना हथियारबंद जवानों से होता है। बाकी ऐसे हमलावरों के मरने की खबर जो इस ढंग से सुनाते हैं जैसे अपने बहनोई की मौत हुई हो, उन्हें भी समझना होगा। मानवाधिकार उनके होते हैं, जो मानवों की तरह बर्ताव करे, जो मासूमों का क़त्ल करने पर अमादा हो उससे आत्मरक्षा मेरा कानूनी अधिकार है। और ये अधिकार तो हम लेकर रहेंगे!