भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में टॉप करने वाले कश्मीरी शाह फ़ैसल का इस्तीफ़ा देने के बाद नई पार्टी बनाने का विचार, फ़ैसल की राजनीतिक मंशा को उजागर करता है। अपने हर वक्तव्य में केवल कश्मीर मुद्दे का राग अलाप कर फ़ैसल देश की जनता का ध्यान भटकाने का काम कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि अपने इस हथकंडे से वो जनता को अपने पक्ष में लेकर अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत करने में कामयाब हो जाएँगे।
एनबीएसओ सरहद और अरहम फाउंडेशन द्वारा आयोजित 12वें कश्मीर महोत्सव का उद्घाटन करने के लिए एमबीबीएस डिग्री धारक फ़ैसल वहाँ पहुँचे। इस मौक़े पर पत्रकारों से बात करते हुए, फ़ैसल (35) ने सिविल सेवा से इस्तीफ़ा देने, कश्मीर मुद्दे और भविष्य की योजनाओं पर अपने विचारों, राजनीति में शामिल होने के अपने फ़ैसले के बारे में विस्तार से बात की। उन्होंने कहा, “घाटी की स्थितियों को देखते हुए, केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित करने की आवश्यकता है, क्योंकि जब तक हत्याएँ नहीं रुकेंगी, तब तक राज्य में स्थिति नहीं सुधरेगी।”
भारत समेत कश्मीर में ‘हिन्दुत्ववादी तत्वों’ में ख़तरनाक वृद्धि का हवाला देकर नौकरी से इस्तीफ़ा देने वाले वाले फैसल के पसंदीदा व्यक्तित्वों में से एक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान भी हैं, इसका मतलब कहीं ये तो नहीं कि फैसल की राजनीतिक गतिविधियाँ वहीं से उड़ान भरती हों।
इसके सीधे मायने तो यही लगाए जा सकते हैं कि फ़ैसल का इस्तीफ़ा केवल एक ज़रिया भर था जिससे वो अपने उन मनसूबों को पूरा कर सकें जो सेवा में रहकर पूरे नहीं किए जा सकते। फ़िलहाल तो फ़ैसल को अपनी राजनीतिक उड़ान में कई दिक़्कतों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि हिज़्बुल मुज़ाहिदीन संगठन ने शाह फैसल के राजनीति में आने के क़दम पर कड़ा ऐतराज जताया। हिज़्बुल ने शाह के फैसले को केंद्र सरकार की चाल बताया है। बक़ायदा एक चिट्ठी के ज़रिए हिज़्बुल ने लोगों से कहा है कि वो फैसल का साथ न दे और राज्य में होने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों का बहिष्कार करें। हिज़्बुल ने इतने पर ही विराम नहीं लगाया बल्कि शाह फैसल से यह भी पूछा कि उन्होंने डॉक्टर मन्नान वानी का रास्ता क्यों नहीं अपनाया और राजनेताओं की टोली में क्यों शामिल हो गए?
बता दें कि यह वही मन्नान है जिसे जम्मू-कश्मीर के हंदवाड़ा में सुरक्षाबलों ने मार गिराया था। मन्नान का एक फोटो फेसबुक पर राइफल के साथ वायरल होने पर उसे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से निष्कासित कर दिया गया था। इसके बाद 5 जनवरी 2019 को वो हिज़्बुल में शामिल हुआ था।
शाह फ़ैसल ने अपने इस्तीफ़े के बारे में बात करते हुए कहा, “प्रशासनिक सेवाओं की एक अहम भूमिका होती है, मैं पानी, बिजली, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रदान कर सकता हूँ, लेकिन मैं लोगों के राजनीतिक अधिकारों को बहाल नहीं कर सकता क्योंकि वो केवल राजनीतिक नेताओं द्वारा ही दिए जा सकते हैं।
देश के मुस्लिमों और युवाओं को को मोहरा बनाकर अपनी राजनीतिक इच्छाओं की पूर्ति करने वाले फ़ैसल को बता दें कि मोदी सरकार में अल्पसंख्यकों के फलने-फूलने के लिए पहले से ही अनेकों कल्याणकारी योजनाएँ चल रही हैं जो प्रधानमंत्री मोदी के ‘सबका विकास, सबका साथ’ के इरादों को स्पष्ट करती हैं।
इन योजनाओं में मुस्लिम लड़कियाँ भी शामिल हैं, ‘शादी शगुन योजना‘ ऐसी ही एक योजना है । इसमें लड़कियों को 51,000 रुपए की धनराशि देना शामिल है। इसके अलावा लोन की व्यवस्था, शैक्षिक शिक्षा में सुधार, उर्दू की शिक्षा को बढ़ावा गेना, मदरसों का आधुनिकीकरण, मेधावी छात्रों को छात्रवृति, स्वरोज़गार, कौशल विकास जैसी तमाम योजनाओं के माध्यम से उन्हें भी देश में बराबरी का स्तर प्रदान किया गया है।
जम्मू-कश्मीर के युवाओं के लिए ‘उड़ान योजना‘ पहले से मौजूद है। इसका मक़सद वहाँ के युवाओं को एक बेहतर रोज़गार उपलब्ध कराने के साथ-साथ उनके जीवन को स्वावलंबी बनाना है। इस योजना के ज़रिए घाटी के लगभर 30,000 युवाओं को प्रशिक्षण दिया जा चुका है और वे देश के अलग-अलग हिस्सों में नौकरी भी कर रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर के ग़रीब परिवारों को नि:शुल्क बिजली का कनेक्शन उपलब्ध करवाने के लिए ‘सौभाग्य योजना‘ भी शुरू की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस महत्वकांक्षी योजना के तहत दिसंबर 2018 तक चार करोड़ ग़रीब परिवारों को बिजली मुहैया करवाने का लक्ष्य रखा गया था।
ऐसे में शाह फ़ैसल का कश्मीर मुद्दा केवल राजनीति में आने का ज़रिया मात्र दिखता है। साल 2009 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन के बाद लगभग 10 वर्ष पद पर रहने के बाद एकाएक लोकसभा चुनाव से पहले नौकरी से इस्तीफ़ा देना, फ़ैसल के जिस लक्ष्य को दिखाता है वो उनकी राजनीतिक मंशाओं को स्पष्ट दिखाता है। अब देखना बाक़ी है कि आख़िर शाह फ़ैसल एकमात्र कश्मीर को मुद्दा बनाकर कब तक अपनी राजनीति चमकाते रहेंगे, जबकि उस पाले में पहले ही बहुत भीड़ है।