बहन-भाई का रिश्ता समाज में सबसे पवित्र रिश्तों में से एक माना जाता है लेकिन क्या हो अगर इस रिश्ते को तार-तार करने वाले उदाहरण कंटेंट बनाकर बच्चों के आगे परोसे जाएँ। क्या उसका असर उनके दिमाग पर या आपसी रिश्तों में नहीं पड़ेगा?
हाल में एक शर्मनाक मामला मध्यप्रदेश के रीवा से सामने आया है। 13 साल के लड़के ने पोर्न फिल्म देखने के बाद अपनी 9 साल की मासूम बहन का रेप किया और बाद में जब बहन ने कहा कि वो पापा से शिकायत करेगी तो डर से उसकी हत्या कर दी। लड़का पकड़ा न जाए इसके लिए उसने माँ को कॉन्फिडेंस में लिया, माँ को सारी बात बताई… लेकिन माँ ने सबकुछ जानते हुए बेटी की हत्या पर विरोध नहीं किया और न ही दोनों 17 और 18 साल की बड़ी बहनों ने पूछा कि उनके भाई ने ये क्या किया है। उलटा सबने लड़के को बचाने के लिए मामले को बरगलाने का पूरा प्रयास किया। वो तो पुलिस के संज्ञान में मामला आने के बाद केस का खुलासा हुआ और मीडिया में जानकारी आई।
अब ऐसा नहीं है कि ऐसी घटना पहली बार देखने को मिली है। आप एक बार गूगल पर सर्च करके देखिए तो आपको तमाम ऐसे मामले देखने को मिलेंगे जब पोर्न देखने के बाद रिश्तों की खिल्ली उड़ी। बच्चियों ने अपने भाई, पिता, चाचा या मामा में ही हैवान देखा। ऑपइंडिया पर कुछ दिन पहले ही एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी जिसमें तमाम वो मामले गिनाए गए थे जब अश्लील सामग्री देखने के बाद लड़कों ने बहन, बेटियों को ही हवस का शिकार बना लिया।
जैसे मध्यप्रदेश से ही कुछ समय पहले एक मामला सामने आया था जहाँ 9 साल की ही लड़की को निशाना बनाया था। मामले में फर्क सिर्फ इतना था कि उस बच्ची के साथ हैवानियत करने वाला उसका पिता था। पूछताछ में आरोपित ने बताया था कि उसे पोर्न देखने की आदत थी और इसी लत के चलते उसने अपना निशाना अपनी बच्ची को बनाया।
अब सोचिए ये भाई और पिता के रिश्तों का हाल है तो बाकी पुरूष जिनका लड़की से किसी रूप में लेना-देना नहीं होता तो उन पर पोर्न आदि का क्या असर पड़ता होगा… उनका मन क्या एक भी बार लड़की को शिकार बनाने से पहले झिझकेगा। पोर्न की सुलभता सिर्फ मानसिक रूप से किसी को उग्र नहीं कर रही बल्कि रिश्तों को खोखला भी कर रही है।
आसानी से मौजूद है पोर्न और अश्लील कंटेंट
छोटे बच्चों के हाथ में आज के समय में मोबाइल का होना चिंताजनक नहीं है बल्कि मोबाइल पर आसानी से उपलब्ध होने वाली सामग्री चिंताजनक है। बच्चे मोबाइल पर क्या करते हैं किसी को नहीं पता। मान लीजिए वो फिल्म या कोई सीरिज ही देख रहे हैं… क्या आप इस चीज को सुनिश्चित कर पाएँगे कि वहाँ उसे अश्लील सामग्री देखने को न मिले… नहीं। ऐसा हो ही नहीं सकता है। एक बटन दबाने के साथ सब कुछ सामने आ जाता है।
रही-सही कसर फिल्में और ओटीटी कंटेंट पूरा कर देते हैं। अश्लील सामग्री आज के फिल्म निर्माताओं की सबसे बड़ी पसंद है। चाहे छोटा सा सीन डालकर ही फिल्म को तड़कता भड़कता बनाएँ लेकिन वो ऐसा करते जरूर हैं। आप देखेंगे आजकल हर सामान्य फिल्म में भी अश्लीलता का छौंक लगाकर उसे दर्शकों तक पहुँचाया जाता है। शायद फिल्म निर्माताओं के लिए वो सिर्फ कंटेंट होता है जिससे उनकी कमाई के मौके बढ़ें, लेकिन नैतिकता के नाते यदि सोचें तो ये सवाल तो उठता है न कि आखिर इसे भोगेगा कौन, उनकी टारगेट ऑडियंस क्या होगी… क्या ऐसी सामग्री देखने वाले इतने परिपक्व होंगे कि उसे सिर्फ वो मनोरंजन के लिहाज से ग्रहण करें और दिमाग पर असर न होने दें… ।
आज फिल्ममेकरों से अश्लील सामग्रियों को फिल्म कंटेंट बनाने पर अगर कोई सवाल भी करे तो वो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उसे पेश करने के तरीकों पर बहस करने लगते हैं। आखिर में तर्क दियाय जाता है कि जो समाज में हो रहा है वो उसी को तो दिखा रहे हैं।
पोर्न देखने का असर
दुखद बात ये है कि ये पोर्न का कॉन्सेप्ट बच्चों तक पहुँचना उन्हें कितना रोगी बना रहा है इसका अंदाजा कोई लगा ही नहीं सकता। पोर्न की पकड़ में आने के बाद बच्चे मानसिक रूप से तो प्रभावित हो ही रहे हैं, साथ में उन्हें समाज से भी कोई लेना-देना नहीं रह गया। उनके भीतर हर चीज को लेकर बढ़ रहे नीरसता के भाव ने उनके अंदर से उन्हें संभालने और समझने की शक्ति को शून्य कर दिया है।इंटरनेट पर मौजूदा लेख भी बताते हैं कि पोर्न देखने की लत एक बच्चे को पहले उसके परिवार से दूर करती है, मानसिक रूप से कमजोर बनाती है। धीरे-धीरे वो इतना टॉक्सिक हो जाता है कि कोई सामान्य बात भी हो तो उसे चिड़चिड़ापन रहता है। उसके भीतर की इंसानियत खत्म कर देती है। नतीजा भाई-बहन का लिहाज नहीं करता, पिता-बेटी का। इसके अलावा निजी जीवन की बात करें तो लोग ऐसी वीडियो देखने के बाद उसे अपने पार्टनर पर आजमाने की कोशिश करते हैं और तरह-तरह से पार्टनर को टॉर्चर किया जाता है।
समाज में लड़के की गलती कुछ नहीं
इन सब बिंदुओं के अलावा मध्यप्रदेश से जो मामला सामने आया है ये एक पहलू और आपके सामने रखता है। वो क्या है इसे समझिए। एक लड़के ने अपनी बहन का रेप किया, फिर गला दबाकर उसकी हत्या कर दी, लेकिन घर के लोग उसे बचाने में लगे रहे। जिस घर में ये सब हुआ वहाँ लड़कियाँ तीन थीं और लड़का एक। बहनों को भी अपने बहन की हत्या पर गुस्से से ज्यादा भाई को बचाने का भाव था। शायद उन्हें लगा हो कि जो चला गया उसे वो ला नहीं सकते लेकिन जो है उसे उन्हें बचाना चाहिए। ये स्थिति मध्यप्रदेश के रीवा के सिर्फ उस घर की नहीं है। ये हाल ज्यादातर जगह है। बेटे के प्रेम में कई बार परिजन अच्छे-बुरे और सही-गलत में फर्क करना भूल जाते हैं। उन्हें लड़की पर होने वाले अत्याचार, उसके साथ होने वाला भेदभाव इस हद्द तक नजर नहीं आता कि लड़की की लाश सामने होने के बाद भी वो बेटे का समर्थन करते हैं जैसे कि इस मामले में हुआ है।
ये स्थिति शर्मनाक और विचार करने वाली दोनों है। क्या लड़की के साथ हुए अत्याचार पर तभी आवाज उठाई जाएगी जब वहशी कोई बाहरवाला होगा। अगर कोई घर का उसके साथ गलत करता है तो क्यों उस हरकत को छिपाया जाता है… रीवा का मामला पहला या आखिर नहीं है। ऐसे स्थिति पहले भी आई हैं और आने वाले वक्त में भी आएँगी…बस हमें सटीक आँकड़े नहीं पता चल पाएँगे क्योंकि जरूरी नहीं हर बार ये मामले पुलिस तक पहुँचें और मीडिया में इनकी जानकारी आए। कई बार ऐसे मामले घर के भीतर ही दबाकर रख दिए जाते हैं और लड़की धीरे-धीरे मान लेती है कि जो उसके साथ हुआ वही उसकी किस्मत में था…।