आपने अ वेडनेसडे (A Wednesday) देखी है? 2008 में आई इस फिल्म की चर्चा इसलिए क्योंकि मुगलों को शरणार्थी और भारत का निर्माता बताने वाले अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने द वायर (The Wire) के करण थापर को दिए इंटरव्यू में अपनी इस फिल्म का जिक्र किया है। उन्होंने कहा कि उनकी फिल्मों अ वेडनेसडे और सरफरोश के अलावा लाहौर में उनके दिए बयान कि उन्हें वहाँ घर जैसा महसूस हो रहा है, को लेकर उन पर निशाना बनाया जा रहा है।
2006 के मुंबई ट्रेन बलास्ट पर बेस्ड अ वेडनेसडे में नसीर साहब का एक डायलॉग है। इसमें वे कहते हैं, “आपके घर में जब एक कॉकरोज आता है, तो आप क्या करते हैं राठौर साहब (अनुपम खेर), आप उसे मारते हैं ना कि पालते हैं। ये चारों कॉकरोज (आतंंकवादी) मेरा घर गंदा कर रहे थे और आज मैं अपना घर साफ करना चाहता हूँ।”
इसमें कोई दो मत नहीं कि नसीरुद्दीन शाह एक खरे अभिनेता हैं। पर क्या रियल लाइफ में भी वे अपने विचारों को लेकर इतने ही खरे हैं? क्या उन पर ‘मुस्लिम’ दिखने का कोई दबाव है? या फिर वे यह सब मोदी और हिंदू घृणा में कर रहे हैं? इतने सारे सवाल एक साथ इसलिए क्योंकि नसीर साहब को भारत में डर लगता है। वे गृह युद्ध की धमकी देते हैं। जिस पल वे मंदिरों का विध्वंस करने वाले मुगल आक्रांताओं को भारत का निर्माता बताते हैं, उसी पल वे हिंदुओं को धमकी देने वाले अंदाज में पूछ भी लेते हैं कि यदि तुम्हारे मंदिर तोड़े गए तो कैसा लगेगा।
यह भी नहीं है कि नसीरुद्दीन शाह को भारत में पहली बार डर लगा है। जब से मोदी सरकार आई है समय-समय पर उनका डर बाहर आते रहता है। कभी धर्म संसद के बहाने तो भी गाय के बहाने और कभी किसी अन्य बहाने। यह डर केवल तब प्रकट नहीं होता जब हिंदू काटे जाते हैं। जब लव जिहादी शिकार कर रहे होते हैं…
‘The Wire के इंटरव्यू में मुस्लिमों को नरसंहार का भय दिखाते हुए उन्होंने देश में गृह युद्ध की धमकी दी है। कहा है कि देश में सब कुछ मुस्लिमों को भयभीत करने के लिए हो रहा है। सत्ताधारी दल अलगाववाद को बढ़ावा दे रहा है और औरंगजेब को बदनाम किया जा रहा है। वह उस औरंगजेब की पैरवी कर रहे हैं, जिसने अपने शासनकाल में हिंदुस्तान की जनता पर क्रूरतम अत्याचार किए। अपने राज में हिंदुओं के लिए जिसने बेहद कठोर नियम बनाए। हिन्दुओं का जबरन धर्म परिवर्तन कराया। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या शाह औरंगजेब और उसके शासनकाल में जो हुआ उससे सहमत हैं? क्या वह अभी भी औरंगजेब वाला हिंदुस्तान चाहते हैं?
इससे पहले इसी साल सितंबर में नसीरुद्दीन शाह ने मोदी सरकार की तुलना नाजी जर्मनी से करते हुए कहा था कि फंडिंग करके अपने समर्थन में फिल्में बनवाई जा रही हैं। भारतीय फिल्म इंडस्ट्री इस्लामोफोबिया से ग्रसित है। ऐसे कई मौके हाल में आए हैं जब नसीरुद्दीन शाह के बयानों में नरेंद्र मोदी और हिंदुओं का विरोध स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ा है।
यह हिंदू घृणा ही है जिसके कारण नसीरुद्दीन शाह उस देश में अपने बच्चों के भविष्य के लिए एक कपोल कल्पित डर बाँट रहे हैं जिस देश ने मजहब देखे बिना एक अभिनेता के तौर पर उनके काम को सराहा। जिस देश में उनके भाई लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीरुद्दीन शाह सेना के डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ तक रहे। ये वही नसीरुद्दीन शाह हैं जिनकी पहली पत्नी मनारा सीकरी एक हिन्दू थीं, जिन्होंने शादी के बाद धर्मांतरण के जरिए इस्लाम अपना लिया था। इसके बाद उन्होंने अपना नाम परवीन मुराद रख लिया था। वे अपने शौहर से 15 वर्ष छोटी हैं। ये वही नसीरुद्दीन शाह हैं जो खुद को ‘नॉन-मजहबी व्यक्ति’ बताते हैं, लेकिन बेटी का नाम हीबा रखा है। उनके और रत्ना पाठक शाह के बेटों का नाम इमाद और विवान है।
असल में नसीरुद्दीन शाह बर्बर मुगलों का महिमामंडन करने की कोशिश नहीं कर रहे, वे हमें याद दिलाते रहे हैं कि वे मुस्लिम ही हैं। उनके भीतर का भी इस्लाम उसी तरह कुलांचे भरता है, जैसे किसी कट्टरपंथी या फिर आतंकी जिसे अ वेडनेसडे में नसीर साहब कॉकरोच बता रहे होते हैं, का उफान मारता है।
यह ‘डर’ अच्छा है और यह ‘डर’ तब तक बना रहना चाहिए, जब तक घर की सफाई पूरी नहीं हो जाती है।