जम्मू कश्मीर के बांदीपोरा इलाक़े में आतंकियों ने एक 12 वर्ष के बच्चे की हत्या कर दी। वैसे, यह आतंकियों के लिए कोई नई बात नहीं है, ख़ासकर इस्लामिक चरमपंथी आतंकियों के लिए। अगर हम पूरी दुनिया में कट्टर इस्लामिक आतंकवाद से पीड़ित क्षेत्रों में हुई घटनाओं को ध्यान से देखें तो पता चलता है कि इस तरह की नृशंस हत्याएँ करके वे लोगों को भयभीत करना चाहते हैं। चाहे पाकिस्तान स्थित पेशावर के एक स्कूल में घुस कर छोटे बच्चों को मार देने वाली घटना हो या मिलिट्री परेड पर आक्रमण कर के किसी बच्चे की जान ले लेना, आतंकियों के लिए यह एक आम बात है। क़दम-क़दम पर मानवाधिकार हनन करने वाले इन आतंकियों के मानवाधिकार की बात की जाती है। कुछ तथाकथित मानवाधिकार कार्यकर्ता यह मानते हैं कि अगर सेना को कोई चोट पहुँचे या किसी जवान की जान जाए तो यह उनका फ़र्ज़ है, लेकिन अगर उन्होंने कोई कार्रवाई की तो आतंकियों के मानवाधिकार की बात आ जाती है।
जिनमें मानव के कोई लक्षण ही न हो, उनका कैसा मानवाधिकार? इससे पहले कि हम इस पर आगे बढ़ें, एक नज़र में पूरी घटना को जान लेते हैं। आतंकियों ने 12 वर्ष के मासूम बच्चे को 9 घंटे बंदी बनाकर डर के साये में रखा और फिर गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी। गुरुवार (मार्च 14, 2019) को उसे उसके चाचा के साथ अपहरण कर लिया गया था। शुक्रवार को 12 वर्षीय आतिफ़ का शव बरामद किया गया। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित ख़बर के अनुसार, बच्चे की माँ ने आतंकियों से अपने बेटे को रिहा करने की भी अपील की थी लेकिन आतंकियों ने उनकी एक न सुनी। पूरी रात अल्लाह से अपने बेटे की सलामती माँगने वाली माँ को जब पता चला कि उसी अल्लाह के नाम पर जेहाद करने वाले आतंकियों ने उनके बेटे की हत्या की है, तो उनके होश उड़ गए।
वहीं दूसरी तरफ सुरक्षा बलों के पक्ष को देखिए। इसे समझने के साथ ही आपको पता चल जाएगा कि भारतीय जवान कश्मीर में किए गए हर ऑपरेशन्स में कैसे वहाँ के नागरिकों का ख़्याल रखते हैं। दरअसल, आतंकी किसी लड़की के बारे में पूछताछ कर रहे थे। जब आतंकियों को उस लड़की का कुछ अता-पता नहीं चला तो उन्होंने अब्दुल हामिद के पोते आतिफ़ को ही निशाना बना लिया। आतंकियों की जानकारी मिलते ही सुरक्ष बल के जवानों ने पूरे क्षेत्र को घेर लिया और मुठभेड़ शुरू हो गई। लेकिन, जवानों ने सबसे पहली प्राथमिकता वहाँ फँसे निर्दोष नागरिकों को बचाने को दी। एक-एक कर उन्होंने वहाँ फँसे सभी कश्मीरी नागरिकों को बाहर निकाला। लेकिन, वो बच्चा बेचारा आतंकियों के चंगुल में फँस गया।
“It is not Jihad but Jaahaliyat”
— Communicator Kumar Manish (@kumarmanish9) March 23, 2019
While 12 year old Atif’s mother Atiqa helplessly went to the house to beg the terrorists to spare her son, his aunt Sharifa Begum made an appeal on loudspeaker. He was used as shield by terrorists in #JammuAndKashmirhttps://t.co/opWZoyQydP
सुरक्षा बलों ने बच्चे की सलामती के कारण फायरिंग रोक दी। जवानों ने बच्चे की सलामती को पहली प्राथमिकता माना। अल्लाह के नाम पर जेहाद करने वाले आतंकियों को मनाने के लिए मौलवी तक भी बुलाए गए, लेकिन दरिंदों ने किसी की भी एक न सुनी। उलेमाओं और मौलवियों के आग्रह तक को नज़रअंदाज़ करने वाले इन आतंकियों ने मुठभेड़ स्थल पर आकर रो-रो कर निवेदन कर रही माँ के क्रंदन पर भी कोई ध्यान नहीं दिया। बँधक बने अब्दुल हामिद ने किसी तरह अपने पोते को लेकर बाहर निकलने का प्रयास किया लेकिन वह अपने पोते को बचाने में सफल नहीं हो सका। उसे तो सुरक्षाबलों ने किसी तरह कवर कर के निकाल लिया, लेकिन आतिफ़ को बचाया न जा सका।
शुक्रवार (22 मार्च) सुबह तक सुरक्षा बलों ने दोनों आतंकियों को मार गिराया। इस मुठभेड़ में वो मकान भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया, जिसमें आतंकी छिपे हुए थे। लड़की की तलाश में निकले आतंकियों द्वारा मारे गए निर्दोष बच्चे का शव भी झुलसी हुई स्थिति में बरामद किया गया। लाउड स्पीकर से ग्रामीणों ने भी बच्चे को छोड़ने की अपील की थी, लेकिन आतंकियों ने उनकी एक न सुनी। अली भाई और हुज़ैफ़ नाम के दोनों आतंकियों को 24 घंटे तक चली मुठभेड़ के बाद मार गिराया गया। ये सबक कश्मीर के मुट्ठी भर उन लोगों के लिए भी है, जो स्वेच्छा से आतंकियों को पनाह देते हैं, या फिर उनके प्रति सहानुभूति रखते हैं। आतंकी जब अपने मज़हब के बच्चों तक को नहीं बख़्श रहे, ऐसे में उनसे कुछ और की उम्मीद करना बेईमानी ही नहीं बल्कि मूर्खता भी है।
यहाँ तीन बातें ग़ौर करने लायक है। पहली, आतंकियों ने मौलवियों और उलेमाओं की एक नहीं सुनी। दूसरी, आतंकी जिस घर में बैठ कर खा-पी रहे थे, उनके घर का ही चिराग छीन लिया। और तीसरी, सुरक्षा बलों ने नागरिकों की सलामती को पहली प्राथमिकता दी। इन तीनों बातों से उन कथित मानवाधिकार की बात करने वालों की पोल खुलती है, जो कश्मीर में आतंकियों से सहानुभूति जताते हैं। ये कैसा जेहाद है, जहाँ मस्जिद के लाउडस्पीकर से किए गए निवेदन का भी कोई स्थान नहीं है? यह कैसा जेहाद है, जहाँ एक निर्दोष बच्चे की गला घोंटकर निर्मम हत्या कर दी जाती है, वो भी तब जब उनकी माँ लगातार रो-रो कर उसे छोड़ने की अपील कर रही हों। क्या ये इंसान कहलाने के लायक भी हैं जिनके मानवाधिकार की बात की जाती है?
यहाँ एक और बात है, जिस पर ध्यान देना आवश्यक है। एसएसपी राहुल मलिक ने पत्रकारों से कहा कि आतंकी अली उक्त क्षेत्र में 2 वर्षों से सक्रिय था। कोई आतंकी अगर किसी समाज या क्षेत्र में 2 वर्षों से छिप कर रह रहा है तो ऐसा संभव ही नहीं है कि स्थानीय लोगों को इसकी भनक न हो। हो सकता है कि वहाँ कुछ ऐसे भी लोग हों, जिन्होंने उसे शरण दे रखी हो या उसे खाते-पिलाते हों। बच्चे की माँ ने रोते हुए आतंकियों को यह भी याद दिलाया कि वो लोग उनके यहाँ आकर खाना खा चुके हैं। हो सकता है कि घर आए लोगों को खाना खिलाना फ़र्ज़ हो लेकिन वहाँ कौन से स्थानीय लोग थे जिनकी सहानुभूति वाली छतरी तले वो आतंकी शरण लिए बैठे थे?
Forget Yasin Malik, have you spoken about 12 year old Atif Mir used by terrorists as human shield? https://t.co/7c9h0MQXlr
— Sunanda Vashisht (@sunandavashisht) March 23, 2019
इन आतंकियों के लिए जेहाद की अपनी एक परिभाषा है। ये समय और अपने फ़ायदे के हिसाब से निर्णय लेते हैं, जिसमे नृशंसता से काम लिया जाता है। ये मस्जिद को तबाह कर सकते हैं, अपनी कौम के किसी बच्चे का गला दबा सकते हैं, मौलवियों-उलेमाओं के आग्रह को धता बता सकते हैं और ज़रूरत पड़ने पर अपने कुकृत्यों को सही साबित करने के लिए अल्लाह की दुआई भी दे सकते हैं। इन आतंकियों से सहानुभूति जताने वाले इस घटना को लेकर एकदम चुप हैं क्योंकि ये उनके अजेंडे में फिट नहीं बैठता। वो आतंकियों की निंदा करने की बजाय मारे गए उन आतंकियों की पारिवारिक पृष्ठभूमि की खोज करने वाले लोग हैं। एक बार उस मासूम आतिफ़ को भी याद कीजिए और सोचिए कि क्या अली जैसे आतंकियों का कोई मानवाधिकार होना चाहिए?
हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने भी एक रैंडम वीडियो ट्वीट कर दावा किया था कि कुछ हिन्दू किसी समुदाय विशेष वाले को मार रहे हैं। अगर आपसी झगड़े जिसका धर्म से कोई लेना-देना न हो, उनमे भी धर्म निकाला जा सकता है तो फिर अल्लाह के नाम पर कथित जेहाद करने वाले आतंकी, जो पग-पग पर अपना धर्म बताते चलते हैं और जिन्हें बचाने के लिए भी उनके धर्म का सहारा लिया जाता है, उनके धर्म की बात क्यों नहीं की जाती? अरविन्द केजरीवाल ने इस पर फ़िलहाल कुछ ट्वीट नहीं किया है। किसी ने किसी को एक झापड़ लगा दिया तो उसमे धार्मिक कोण निकाल कर उसे राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया जाता है। यहाँ एक निर्दोष मासूम की हत्या हो गई और इतनी ख़ामोशी क्यों पसरी है?