प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगस्त 2015 में दुबई के दौरे पर थे। जैसा कि वो अधिकतर विदेशी दौरों में करते हैं, इस समृद्ध राष्ट्र के दौरे पर भी प्रधानमंत्री ने वहाँ रह रहे भारतीय समुदाय को सम्बोधित किया। इस दौरान उन्होंने एक बहुत ही गंभीर मसला उठाया, जो किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा शायद ही पहले उठाया गया हो। इस रैली में प्रधानमंत्री ने वैश्विक समुदाय द्वारा अभी तक आतंकवाद को परिभाषित नहीं किए जाने को लेकर नाराज़गी जताई। उन्होंने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र में लम्बे समय से ऐसा प्रस्ताव अटका पड़ा है लेकिन इसपर आम सहमति नहीं बन पा रही है। प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र को इसीलिए आड़े हाथों लिया था क्योंकि संयुक्त राष्ट्र अभी तक यह निर्णय नहीं कर पाया है कि आतंकवाद क्या है। इसके अलावा उन्होंने पूछा था कि आतंकवाद का समर्थक कौन सा देश है और किस देश को आतंकवाद से पीड़ित माना जाए?
अब फ़िल्म निर्देशक विशाल भारद्वाज ने आतंकवाद को लेकर नई परिभाषा गढ़ी है। उन्होंने आज़ाद भारत के पहले आतंकवादी के नाम की भी घोषण कर दी। इसमें कोई शक़ नहीं कि विशाल एक अच्छे फ़िल्म निर्माता एवं निर्देशक हैं और शेक्सपियर के नाटकों का फ़िल्मी चित्रण करने में उन्हें महारत हासिल है। लेकिन, इसका अर्थ ये कतई नहीं है कि आतंकवाद को लेकर वो ऐसी परिभाषा बना दें, जिससे हर अपराधी ‘आतंकी’ ही कहलाए। विशाल भारद्वाज ने अपनी ट्वीट में लिखा कि नाथूराम गोडसे आज़ाद भारत का प्रथम आतंकवादी था। इसके लिए स्पष्टीकरण देते हुए उन्होंने बहुत अजीब सा कारण दिया। भारद्वाज के अनुसार अगर वैचारिक मतभेदों के आधार पर कोई किसी की हत्या करता है तो वो उन सभी को आतंकित करता है जो उससे सहमत नहीं हैं।
I strongly disagree with you Sir on this… call him an assassin or a murderer but not a terrorist for sure.
— Anuja A. (@Anuja17) April 19, 2019
People like your stature need to read.. research and then post such remarks.
Please do read the statement he gave in court.. it might change ur opinion.
विशाल भारद्वाज की ये परिभाषा उसी प्रोपेगंडा और वामपंथी मानसिकता का द्योतक है, जो उनकी फ़िल्म हैदर में देखने को मिला था। विशाल की परिभाषा के अनुसार, एक हत्या करने वाला नाथूराम गोडसे आतंकवादी था। भारत में अधिकतर हत्याएँ मतभेदों के कारण ही होती हैं। कभी ज़मीन को लेकर मतभेद तो कभी आपराधिक दुनिया में मतभेद, कभी राजनीतिक मतभेद तो कभी कोई अन्य विवाद। अगर आतंकी गतिविधियों को हटा भी दें तो हर साल विश्व में लाखों लोगों की हत्या हो जाती है। क्या आतंकवाद इतना नॉर्मल और सामान्य शब्द है जिसका प्रयोग हर हत्या जैसे अपराध में किया जाना चाहिए? क्या इस्लामिक आतंकवाद, जो हर साल दुनिया में सबसे ज्यादा आतंकी वारदातों और मौतों की वजह बनता है, उसके खतरे को कमतर आंकते हुए विशाल भारद्वाज ऐसा कह रहे हैं?
भारत की सुप्रीम कोर्ट ने आतंकवाद की जिस परिभाषा को स्वीकार किया है, उसके हिसाब से गोडसे उसमें फिट नहीं बैठते। भारत में आतंकवाद की परिभाषा के अनुसार, बार-बार ऐसी सुनियोजित ढंग से की जाने वाली हिंसक कार्रवाई जिसमें किसी व्यक्ति, समुदाय या सत्ता को आतंकित करने का प्रयास किया जाता रहा हो, आतंकवाद के अंतर्गत आती है। इसमें यह भी कहा आगया है कि इस कृत्य में घातक हथियारों, डाइनामाइट, बम, रासायनिक गैस इत्यादि का इस्तेमाल किया गया हो। नाथूराम गोडसे इस परिभाषा में फिट नहीं बैठते। गोडसे को एक व्यक्ति विशेष से नाराज़गी थी और उन्होंने गाँधी की हत्या कर दी। अगर गोडसे ने गाँधीवादी विचारधारा के लोगों को बार-बार निशाना बनाया होता तो शायद उन्हें आतंकी कहा जा सकता था।
If you kill someone over a difference in ideology, then aren’t you terrorising those who don’t agree with yours? If this is not terror, then what?
— Vishal Bhardwaj (@VishalBhardwaj) April 20, 2019
नाथूराम गोडसे के ख़िलाफ़ महात्मा गाँधी की हत्या का केस चला था। उनकी एफआईआर कॉपी में कहीं भी आतंकवाद का ज़िक्र नहीं था। कहा जाता है कि गोडसे के बयान इतने ज्यादा विश्वसनीय और असरदार होते थे कि भारत सरकार को इसपर प्रतिबन्ध लगाना पड़ा। गोडसे गाँधी का हत्यारा था लेकिन आतंकी नहीं। अगर हत्या की सैंकड़ों वारदातों को आतंकवाद के चश्मे से देखा जाने लगे तो आतंकवाद और हत्या की वारदातों में कोई अंतर ही नहीं रह जाएगा। क्या विशाल भारद्वाज इस्लामिक मज़हबी उन्माद द्वारा प्रेरित आतंकवाद को ढँकने के लिए ऐसा कह रहे हैं? उनकी इस मानसिकता को हैदर फ़िल्म से समझा जा सकता है। भारद्वाज की परिभाषा को मानें तो पारिवारिक मतभेदों में भाई ही भाई की हत्या कर देता है तो वो भी आतंकवाद है।
विशाल भारद्वाज पहले भी कह चुके हैं कि अगर वो वामपंथी नहीं हैं तो वो कलाकार भी नहीं हो सकते। हैदर में भारतीय सेना द्वारा कश्मीरी जनता पर किए जा रहे कथित ‘अत्याचार’ को दिखाने की कोशिश की गई थी। अरुंधति रॉय के मानवाधिकार को लेकर की जाने वाली टिप्पणियों से प्रेरित नज़र आने वाली फ़िल्म हैदर में दिखाया गया था कि कैसे भारतीय सेना निर्दोष कश्मीरियों को पकड़ कर ले जाती है और उन्हें टॉर्चर करती है। विशाल भारद्वाज को ख़ूब पता है कि भारत इस्लामिक और वामपंथी आतंक से ग्रसित है और उनके द्वारा गोडसे को आतंकी साबित करने का प्रयास करना पिछली कॉन्ग्रेस सरकार के ‘हिन्दू आतंकवाद’ वाले नैरेटिव का ही एक छोटा सा हिस्सा है।
गोडसे ने ‘जय श्री राम’ बोलकर गाँधी की हत्या नहीं की। लेकिन, आज विश्व भर में ‘अल्लाहु अकबर’ चिलाते हुए आतंकी वारदातों को अंजाम दिया जाता है। अगर गाय से घृणा करनेवाला एक मुस्लिम युवक पुलवामा में हमारे 40 जवानों की जान ले लेता है तो क्यों न इसे मज़हबी आतंकवाद माना जाए? अगर हाफिज सईद अल्लाह की मर्ज़ी और हुक्म बताकर कश्मीर में आतंक फैलाता है तो क्यों न इसे इस्लामिक आतंकवाद माना जाए? असल में इस्लामिक आतंकवाद और आतंकवाद अब पर्यायवाची हो गए हैं, जिस कारण अलग-अलग नैरेटिव बनाकर इसे ढँकने की कोशिश की जा रही है। इस कोशिश में वामपंथी शामिल हैं क्योंकि छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड और महाराष्ट्र साहित्त अन्य राज्यों में दशकों तक चले नक्सली आतंकवाद को ढँका जा सके।
इस कोशिश में कॉन्ग्रेस शामिल है क्योंकि उसे जबरन हिन्दुओं को आतंकवादी बताकर यह दिखाना है कि केवल मुस्लिम ही आतंकी नहीं होते। इस कोशिश में पाकिस्तान भी शामिल है जहाँ के नेता कश्मीर में चल रही ज़ंग को क्रांतिकारी बनाम सत्ता के रूप में देखते हैं। वो तो अच्छा हुआ कि विशाल भारद्वाज ने आज़ादी के पहले की बात नहीं की वरना कहीं वो भगत सिंह का भी नाम ले सकते थे। आज दुनिया जब मज़हबी उन्माद और मज़हब के नाम पर लोकतान्त्रिक सत्ताओं के ख़िलाफ़ आतंकी वारदातों को झेल रही है, ऐसे में हत्या जैसे अपराधों को आतंकवाद की श्रेणी में रखकर हिन्दुओं को आतंकी साबित करने का यह प्रयास किया जा रहा है।
आतंकवाद को सामान्य बनाने की कोशिश हो रही है। कल यही लोग अपहरण, चोरी-चकारी और डकैती जैसी वारदातों को भी आतंकवाद कहने लगेंगे सिर्फ इसीलिए ताकि ‘इंशाअल्लाह’ बोलकर धमकाने और बम विस्फोट करनेवालों का ज़िक्र कम हो। लोगों का ध्यान उनसे भटक जाए। विशाल भारद्वाज को अकादमिक व प्रशासनिक व्यवस्था द्वारा समय-समय पर स्पष्ट की गई आतंकवाद की परिभाषाओं को पढ़ना चाहिए। अगर उन्होंने गोडसे को आतंकी कहा ही है कि उन्हें इस बात को साबित करने के लिए स्पष्ट तर्क देने चाहिए। उन्हें शायद आतंकित करना और आतंकवादी घटना के बीच का फ़र्क़ समझ नहीं आ रहा। जब एक पति अपनी पत्नी को रोज़ पीटता है और उसे आतंकित करता है तो इसका अर्थ वो आतंकवादी नहीं हो जाता। वह अपराधी है, आतंकी नहीं।
भारद्वाज के अनुसार, मतभेदों के आधार पर एक व्यक्ति की हत्या से विपरीत विचारधारा वाले सभी लोग आतंकित होते हैं और अतः ये आतंकी वारदात है। लेकिन, गोडसे ने भी ट्रायल के दौरान कहा था कि ये कोई षड्यंत्र नहीं था। आतंकी वारदातें सुनियोजित ढंग से अंजाम दी जाती है, क्षणिक मज़हबी आवेश में अंजाम दी जा सकती है, इस्लामिक ब्रेनवाश से अंजाम दी जा सकती है, लोकतान्त्रिक सत्ता के ख़िलाफ़ लगातार हिंसक गतिविधियाँ इसका रूप हो सकती है। आजकल दुनियाभर में हो रही आतंकवादी वारदातों को देखते हुए इतना तो कहा ही जा सकता है कि गोडसे द्वारा एक व्यक्ति विशेष की हत्या और जैश, लश्कर, आईएस, जमात द्वारा लगातार सैनिकों, नागरिकों की हत्या और सत्ता प्रतिष्ठानों पर हमले में कितना अंतर है।