पूरा देश छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की 350वीं वर्षगाँठ मना रहा है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने कहा है कि सैकड़ों सालों की गुलामी के चलते देशवासियों का आत्मविश्वास कमजोर हो गया था। ऐसे समय में शिवाजी ने न केवल आक्रांताओं का मुकाबला किया, बल्कि लोगों का आत्मविश्वास भी जगाया। वहीं, नागपुर में आयोजित शिवराज्याभिषेक दिवस कार्यक्रम में RSS प्रमुख मोहन भागवत शामिल हुए।
हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक आज ही के दिन यानी 2 जून को साल 1674 में महाराष्ट्र के रायगढ़ किले में हुआ था। आज से 350 साल पहले 16 वर्ष की आयु में ‘स्वराज्य’ की स्थापना के लिए शिवाजी से छत्रपति शिवाजी महाराज बने थे। छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिंदू धर्म और भारत भूमि की रक्षा के लिए इस्लामिक आक्रांताओं से जीवनपर्यंत लड़ाई लड़ी।
PM Shri @narendramodi's message on 350th year of The Coronation ceremony ‘#ShivRajyabhishek’ of Shivaji Maharaj. https://t.co/NQJIxeYM3w
— BJP (@BJP4India) June 2, 2023
छत्रपति शिवाजी महाराज के 350वीं वर्षगाँठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। पीएम ने कहा है, “छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक दिवस नई चेतना, नई ऊर्जा लेकर आया है। छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक उस कालखंड का एक अद्भुत और विशिष्ट अध्याय है। राष्ट्र कल्याण और लोक कल्याण उनकी शासन व्यवस्था के मूल तत्व रहे हैं। मैं आज छत्रपति शिवाजी महाराज के चरणों में कोटि-कोटि नमन करता हूँ। उन्होंने हमेश भारत की एकता और अखंडता को सर्वोपरि रखा। आज ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ के विजन में शिवाजी महाराज के विचारों का ही प्रतिबिंब देखा जा सकता है।”
उनके कार्य, शासन प्रणाली और नीतियां आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। उन्होंने भारत के सामर्थ्य को पहचान कर जिस तरह से नौसेना का विस्तार किया वो आज भी हमें प्रेरणा देता है।
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ये हमारी सरकार का सौभाग्य है कि छत्रपति शिवाजी महाराज से प्रेरणा लेकर पिछले साल भारत ने गुलामी के एक निशान से… pic.twitter.com/eWANnjJako
पीएम मोदी ने यह भी कहा है, “छत्रपति शिवाजी महाराज के कार्य, शासन प्रणाली और नीतियाँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। उन्होंने भारत के सामर्थ्य को पहचान कर जिस तरह से नौसेना का विस्तार किया, वो आज भी हमें प्रेरणा देता है। यह हमारी सरकार का सौभाग्य है कि छत्रपति शिवाजी महाराज से प्रेरणा लेकर पिछले साल भारत ने गुलामी के एक निशान से नौसेना को मुक्ति दे दी। अंग्रेजी शासन की पहचान को हटा कर शिवाजी महाराज की राज-मुद्रा को जगह दी है।”
उन्होंने यह भी कहा है, “इतने वर्ष के बाद भी उनके द्वारा स्थापित किए गए मूल्य हमें आगे बढ़ने का मार्ग दिखा रहे हैं। इन्हीं मूल्यों के आधार पर हमने अमृत काल के 25 वर्षों की यात्रा पूरी करनी है। यह यात्रा होगी शिवाजी महाराज के सपनों का भारत बनाने की। यह यात्रा होगी स्वराज, सुशासन और आत्मनिर्भरता की। यह यात्रा होगी विकसित भारत की।”
#WATCH | Maharashtra | Celebrations at the event organised by Shiv Rajyabhishek Sohala Committee in Nagpur, on the occasion of the 350th anniversary of Chhatrapati Shivaji Maharaj's coronation.
— ANI (@ANI) June 2, 2023
RSS Chief Mohan Bhagwat is also participating in the event. pic.twitter.com/RkLcM3xTnS
वहीं, महाराष्ट्र के नागपुर में राज्याभिषेक दिवस कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत समेत हजारों की संख्या में लोग मौजूद रहे। मोहन भागवत ने शिवाजी महाराज की प्रतिमा की आरती की। इस दौरान ढोल-नगाड़ों की थाप और जय शिवाजी के नारों के बीच सांस्कृतिक कार्यक्रम भी किए जा रहे हैं।
#WATCH | Maharashtra | Celebrations in Nagpur, on the occasion of the 350th anniversary of Chhatrapati Shivaji Maharaj's coronation. pic.twitter.com/ER3P8LHeUI
— ANI (@ANI) June 2, 2023
छत्रपति शिवाजी महाराज की शासन प्रणाली
क्षत्रिय कुल के शिवाजी महाराज का राज्य वास्तविक और कानूनी दोनों तरह से एक संप्रभु राज्य था। तथ्य यह है कि उनके पत्र… मुहरें, उपाधियाँ और उनके प्रशासन की प्रकृति… ये सभी रामराज्य या धर्मराज्य की भावना पर आधारित थी। महादेव गोविंद रानाडे के अनुसार:
“नेपोलियन प्रथम की तरह शिवाजी अपने समय में एक महान संगठनकर्ता और नागरिक संस्थानों के निर्माता थे।”
शिवाजी के स्वराज्य प्रशासन के प्रमुख सिद्धांत थे
- अपने लोगों की भलाई और राज्य के सामान्य कल्याण को बढ़ावा देना
- स्वराज्य की रक्षा के लिए एक कुशल सैन्य बल बनाए रखना
- कृषि और उद्योग को बढ़ावा देकर लोगों की आर्थिक जरूरतों को पर्याप्त रूप से उपलब्ध कराना
अष्ट प्रधान मंडल
आज के समय में दुनिया भर में शासन और पावर के विकेद्रीकरण की बात होती है। सत्ता के विकेंद्रीकरण पर बड़े-बड़े सेमिनार और व्याख्यान होते हैं, लेकिन 350 साल पहले शिवाजी महाराज ने अपने शासन की बागडोर सुचारु रुप से चलाने के लिए जिस तरह से सत्ता का विकेंद्रीकरण किया, उससे समाज आज भी प्रेरणा ले सकता है। शिवाजी ने अपने शासन के तहत जनहित के कार्यों एवं चहुंमुखी विकास के लिए एक अष्ट प्रधान मंडल की व्यवस्था की थी। इसमें आठ मंत्रियों की सीटें थीं।
छत्रपति शिवाजी के शासन में कृषि व्यवस्था
शिवाजी की कृषि को प्रोत्साहित करने की नीति के बारे में सभासद लिखते हैं:
“जो नए किसान आएँगे, हमारे राज्य में बसने के लिए, उन्हें मवेशी दिए जाने चाहिए। उन्हें बीज देने के लिए अनाज और पैसा दिया जाना चाहिए।”
कृषि और किसानों के हित में शिवाजी ने अनेकों उल्लेखनीय कार्य किए।
शिवाजी की राजमुद्रा
शिवाजी की राजमुद्रा संस्कृत में लिखी हुई एक अष्टकोणीय मुहर (Seal) थी, जिसका उपयोग वे अपने पत्रों एवं सैन्य सामग्री पर करते थे। उनके हजारों पत्र प्राप्त हैं, जिन पर राजमुद्रा लगी हुई है। मुद्रा पर लिखा वाक्य इस तरह है-
प्रतिपच्चंद्रलेखेव वर्धिष्णुर्विश्ववंदिता शाहसुनोः शिवस्यैषा मुद्रा भद्राय राजते।
(अर्थात : जिस प्रकार बाल चन्द्रमा प्रतिपद (धीरे-धीरे) बढ़ता जाता है और सारे विश्व द्वारा वन्दनीय होता है, उसी प्रकार शाहजी के पुत्र शिव की यह मुद्रा भी बढ़ती जाएगी।)
छत्रपति शिवाजी महाराज का शासन भोंसले घराने का शासन नहीं था। उन्होंने परिवारवाद को राजनीति में स्थान नहीं दिया। उनका शासन सही अर्थ में प्रजा का शासन था। शासन में सभी की सहभागिता रहती थी। सामान्य मछुआरों से लेकर विद्वान तक उनके राज्य शासन में सहभागी थे।