पीएम केयर्स (PM CARES) फण्ड की विपक्ष ने जमकर आलोचना की थी। लेकिन इस फण्ड के उपयोग से जमीनी स्तर पर बदलाव लाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस इनिशिएटिव से हॉस्पिटलों में वेंटिलेटर्स पहुँचने शुरू हो गए हैं।
पीएम केयर्स से क्या फायदा हुआ है? दरअसल, इस फण्ड के प्रयोग से 50,000 वेंटिलेटर्स का उत्पादन किया जा रहा है। इसकी ख़ासियत ये है कि ये सब ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत किया जा रहा है। अर्थात, इससे स्वदेशी अभियान को भी बल मिल रहा है। साथ ही प्रवासी मजदूरों के लिए 1000 करोड़ रुपए की व्यवस्था भी पीएम केयर्स से ही की गई है। कोरोना से निपटने के लिए वैक्सीन बनाने के लिए जो रिसर्च चल रहा है, वहाँ भी पीएम केयर्स फण्ड से 100 करोड़ रुपए दिए गए हैं।
एक अध्ययन के अनुसार, अभी तक देश भर के अस्पतालों में कुल 47,000 वेंटिलेटर्स उपलब्ध हैं। क्या आपको पता है कि पीएम केयर्स के उपयोग के बाद ये संख्या कितनी हो जाएगी? दोगुनी से भी ज्यादा। यानी, 50,000 नए वेंटिलेटर्स सिर्फ़ पीएम केयर्स फण्ड से आने वाले हैं, वो भी स्वदेशी।
अध्ययन के अनुसार, जहाँ पब्लिक सेक्टर में 17,850 वेंटिलेटर्स उपलब्ध थे, वहीं प्राइवेट सेक्टर में 29,631 वेंटिलेटर्स मौजूद थे। यानी, कुल मिला कर 47,481 वेंटिलेटर्स।
केंद्र सरकार ने कहा है कि 50,000 नए वेंटिलेटर्स ख़रीदने के लिए पीएम केयर्स फण्ड से 2000 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। इसके करण से देश में उपलब्ध वेंटिलेटर्स की संख्या 97, 481 हो जाएगी। यानी, 1 लाख के क़रीब।
आलोचना का मुख्य बिंदु ये था कि जब पीएम रिलीफ फंड है ही तो फिर पीएम केयर्स की क्या ज़रूरत थी? दरअसल, पीएम रिलीफ फण्ड को इस तरह से डिजाइन नहीं किया गया था कि वो ऐसी आपदा की घड़ी में किसी प्रकार के सुधार कार्यक्रम के काम आ सके। हाँ, उसकी उपयोगिता ये ज़रूर थी कि किसी आपदा की घड़ी में पीड़ितों को मुआवजा दिया जाए या फिर पीड़ित परिवारों की मदद की जाए। पीएम केयर्स पूरे के पूरे सेक्टर में रिफॉर्म की क्षमता रखता है।
पीएम केयर्स से रिसर्च के लिए फंडिंग की जा सकती है। इससे स्वास्थ्य और फार्मा सेक्टर को आधुनिक बनाने और उन्हें अपग्रेड करने में मजबूती मिलेगी। इंफ्रास्ट्रक्चर को और ज्यादा मजबूत बनाने में पीएम केयर्स का उपयोग किया जा सकता है, जो अभी हो रहा है। पीएम रिलीफ फण्ड के माध्यम से ये सब संभव नहीं है। पीएम रिलीफ फण्ड के बोर्ड में कौन-कौन लोग हैं, ये भी जानने वाली बात है।
उसमें प्रधानमंत्री के अलावा कॉन्ग्रेस पार्टी की अध्यक्ष और कॉर्पोरेट जगत की हस्तियाँ भी शामिल हैं। यानी प्राइवेट उद्योगों के प्रतिनिधि और एक राजनीतिक दल के अध्यक्ष उस बोर्ड में शामिल हैं। जबकि पीएम केयर्स में प्रधानमंत्री के अलावा रक्षा, वित्त और गृह मंत्री शामिल हैं, यानी सारे चुने हुए प्रतिनिधि हैं जो सरकार का हिस्सा हैं। आखिर पीएम रिलीफ फंड में कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष की सदस्यता और भूमिका की व्यवस्था क्यों की गई है?
पीएम रिलीफ फंड के ऑडिटर्स में भी एमएस ठाकुर और वैद्यनाथ अय्यर जैसे लोग शामिल हैं। इस फण्ड की स्थापना रामेश्वर ठाकुर ने की थी, जो कि ज़िंदगी भर एक वफादार कॉन्ग्रेस नेता रहे थे। सोनिया गाँधी ने इसीलिए पीएम केयर्स का विरोध किया था, क्योंकि पीएम रिलीफ फण्ड के बोर्ड की वो आजीवन सदस्य हैं और ऑडिटर्स भी कॉन्ग्रेस के ही लोग थे। मोदी सरकार ने जिस एमएस सार्क एसोसिएट्स को पीएम रिलीफ फण्ड का ऑडिटर बनाया था, उसे ही पीएम केयर्स का ही ऑडिटर बनाया गया है। फिर हंगामा क्यों?
Finally, how is #PMCARES being used?
— Akhilesh Mishra (@amishra77) June 15, 2020
1) Rs.2,000 Cr to procure 50,000 ‘Made in India’ ventilators
2) Rs.1,000 Cr for migrants welfare
3) Rs.100 Cr for vaccine development
As per this study, only 47,000 ventilators exist as of today. PM CARES will add 50,000 in one go ! 10/10 pic.twitter.com/ZEYV64CLJk
वो तो 2018-19 से ही पीएम रिलीफ फण्ड की ऑडिटिंग में लगा हुआ है, फिर जब पीएम केयर्स के लिए वही ऑडिटर्स हैं तो हंगामा का कारण यही है कि इसमें कॉन्ग्रेस वालों की कोई भूमिका नहीं है। तो यहाँ ये सवाल उठ सकता है कि क्या एमएस सार्क एंड एसोसिएट्स भाजपा की क़रीबी है?
दरअसल, ऐसा नहीं है। एमएस सार्क के सुनील गुप्ता उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरेश रावत, दिल्ली की दिवंगत सीएम शीला दीक्षित, बड़बोले कॉन्ग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर और पूर्व राष्ट्रीपति प्रतिभा पाटिल के साथ कई तस्वीरों में देखे जा सकते हैं।
मई के दूसरे हफ्ते में ही ख़बर आई थी कि पीएम केयर्स से कोरोना वायरस आपदा से निपटने के लिए 3100 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। इससे ख़रीदे गए 50,000 ‘मेड इन इंडिया’ वेंटिलेटर्स को देश भर के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अस्पतालों में इनस्टॉल किया जाएगा। साथ ही 1000 करोड़ रुपए सभी राज्यों को स्थानीय स्तर पर कलक्टरों के माध्यम से ज़रूरी सुधार करने के लिए की गई।
पीएम केयर्स की स्थापना एक पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट के रूप में हुई है, जबकि 1948 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पीएम रिलीफ फण्ड की मौखिक रूप से घोषणा की थी। पीएम रिलीफ फण्ड का उद्देश्य था कि त्वरित सहायता पहुँचाई जाए, जबकि पीएम सिस्टेमेटिक ढंग से योजना बना कर वित्त उपलब्ध कराता है। पीएम रिलीफ फण्ड का कोई एडवाइजरी बोर्ड नहीं है, जबकि पीएम रिलीफ फण्ड में रिसर्च, क़ानून, स्वास्थ्य, समाजसेवा और विज्ञान के 10 प्रबुद्धजन एडवाइजरी बोर्ड में शामिल होने का प्रावधान है।
Q) Why separate fund when PMNRF already existed?
— Akhilesh Mishra (@amishra77) June 15, 2020
A) PMNRF usage evolved into primarily helping individuals/families in distress due to natural calamity etc. No provision in PMNRF to handle in an organised way situations like that posed by #COVID19.#PMCARES plugs that gap.2/10
पीएम रिलीफ फण्ड में ट्रस्टियों की जिम्मेदारियाँ परिभाषित ही नहीं की गई हैं, जबकि पीएम केयर्स फण्ड में सभी ट्रस्टियों की जिम्मेदारियाँ वर्णित हैं। साथ ही इसके ऑडिटर्स का भी रोटेशन होगा, पीएम रिलीफ फण्ड की तरह आजीवन कोई कॉन्ग्रेसी ही नहीं बैठा रहेगा। एक और बात जानने लायक है कि पीएम रिलीफ फण्ड को उस समय पाकिस्तान से आए विस्थापित शरणार्थियों की त्वरित सहायता के लिए स्थापित किया गया था।
अब बाढ़, तूफ़ान या फिर भूकंप से पीड़ित लोगों को इसके माध्यम से त्वरित सहायता दी जाती है। लेकिन, कोई कोरोना जैसी अचानक बड़ी आपदा आ जाए तो उसके लिए पीएम केयर्स की स्थापना हुई है। पीएम केयर्स का अपना एक अलग वेबसाइट है, जहाँ से सारी जानकारियाँ मिल सकती हैं। जब कोई ऐसी आपदा आएगी जो पूरे देश को प्रभावित कर सके तो पीएम केयर्स के फण्ड का उपयोग किया जाएगा।
कोरोना वायरस व ऐसी अन्य प्रकार की महामारी से निपटने के लिए बनाए गए इस फण्ड को विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (FCRA) से मुक्त करने के बाद विदेशों से दान के लिए खोला गया है। अब विदेशों से दान करने वाले लोग सीधे पीएम केयर्स पोर्टल से दान की रसीदें डाउनलोड कर सकते हैं। केंद्र द्वारा सोनिया गाँधी की माँग को ठुकरा दिया गया था कि इसमें प्राप्त हुई धनराशि को पीएम रिलीफ फण्ड में ट्रांसफर किया जाए।