कोस्टल रोड प्रोजेक्ट, बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) की एक बड़ी और महत्वाकांक्षी परियोजना है। लेकिन अब इस परियोजना के आड़े लगभग 600 पेड़ आ रहे हैं, जिसमें से 140 पेड़ों को बीएमसी ने काटने का निर्णय लिया है और बाकी के पेड़ों का पुनर्रोपण किया जाएगा। इन पेड़ों को प्रिंसेस स्ट्रीट फ्लाइओवर से लेकर वर्ली के बीच 9 किलोमीट कोस्टल रोड प्रोजेक्ट के तहत काटा जाएगा।
परियोजना के लिए 140 पेड़ों को काटने के खिलाफ संबंधित नागरिकों द्वारा उठाए गए 176 सुझावों और आपत्तियों का जवाब देते हुए नागरिक निकाय ने अपने बचाव में तर्क दिया है कि इस परियोजना से प्रदूषण और बाढ़ में कमी आएगी एवं हरियाली में वृद्धि होगी।
परियोजना की शुरुआत में मुंबई के उपनगरों को जोड़ने और शहर की सड़कों को जाम करने का प्रस्ताव दिया गया था। प्रिंसेस स्ट्रीट फ्लाईओवर और वर्ली के बीच कोस्टल रोड प्रोजेक्ट के फेज -I के दौरान लगभग 90 हेक्टेयर जमीन को फिर से प्राप्त किया जाना है।
इस महत्वाकांक्षी कोस्टल रोड परियोजना के लिए 20 हेक्टेयर जमीन को आवंटित किया गया है, शेष 70 हेक्टेयर को ग्रीन कवर के लिए आरक्षित किया जाना है, जिसमें बीएमसी की बागान की योजना है।
BMC ने कहा कि कोस्टल रोड के उपयुक्त निर्माण के लिए ‘कुछ’ पेड़ों की कटाई ‘अनिवार्य’ है। शिवसेना द्वारा नियंत्रित निकाय ने सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार 1:3 के अनुपात में पुन: वनरोपण का आश्वासन दिया। बीएमसी ने कहा कि आम लोगों को कई तरह से फायदा होगा जैसे कि प्रदूषण में कमी, ग्रीन कवर में बढ़ोतरी और समय की बचत होगी।
नागरिक निकाय ने अनुमान लगाया है कि परियोजना से लगभग 600 पेड़ प्रभावित होंगे, जिसका उद्देश्य बांद्रा-वर्ली सी लिंक के दक्षिणी छोर के साथ मरीन ड्राइव को जोड़ना है। इस परियोजना के तहत 140 पेड़ों को काट दिया जाएगा और लगभग 460 पेड़ों का प्रत्यारोपण किया जाना है।
नागरिक पर्यावरणविद् ज़ोरू भाठेना ने कहा कि यह समझ से बाहर है कि पुनर्निर्मित जमीन पर बनी सड़क के लिए 600 पेड़ क्यों प्रभावित हो रहे हैं। कार्यकर्ता ने आरोप लगाते हुए कहा –
“हम समझ सकते थे कि पाँच-दस पेड़ काटे या रोपे जा रहे हैं, लेकिन 600 एक बड़ी संख्या है। इसके अलावा, बीएमसी का दावा है कि कोस्टल रोड बनने से बाढ़ की स्थिति में कमी आएगी। हालाँकि, ऐसा लग रहा है कि बीएमसी भौतिकी, भूगोल, इतिहास और पर्यावरण अध्ययन पर उनके खुद के बनाए सिद्धांतों का पालन करती है। यह बीएमसी का बेहद ही गलत उदाहरण है।”
समुद्री संरक्षणवादी प्रदीप पाटेडे ने दावा किया कि कोस्टल रोड के निर्माण के कारण बाढ़ कम नहीं होगी। उनका कहना है कि उन्होंने ऐसी तस्वीरें देखीं है, जिनमें अशांत पानी निर्माण क्षेत्र से टकरा रहा है। उन्होंने जोर देते हुए कहा यह एक सामान्य तर्क है क्योंकि जितना अधिक आप समुद्र में भरेंगे, उतना ही बाहर निकलेगा।
वहीं परियोजना के मुख्य इंजीनियर विजय निगोत ने दोहराया कि बीएमसी उस स्तर तक नहीं पहुँची है, जहाँ वह वनों की कटाई या पुनर्रोपण पर विचार कर सकती है। उन्होंने कहा कि बीएमसी के ट्री ऑथोरिटी से अभी तक हरी झंडी नहीं मिली है।
उन्होंने स्पष्ट किया, “इसके अलावा, हम इसलिए कह रहे हैं कि बाढ़ कम हो जाएगी, क्योंकि हम एक समुद्री दीवार बनाने जा रहे हैं, और इसके कारण तुलनात्मक रूप से बाढ़ कम हो जाएगी। हमने यह दावा नहीं किया है कि बाढ़ नहीं आएगी।”
गौरतलब है कि किसी भी राज्य में सरकार बदलने पर और किसी सरकार के सत्ता में आने पर किस तरह से वहाँ की स्थितियाँ बदलती हैं, ये उसी का उदाहरण है। जब बीजेपी की सरकार में कार शेड बनाने के लिए पेड़ काटे जा रहे थे, तो शिवसेना ने इसका भरपूर विरोध किया था।
उद्धव ठाकरे ने तो यहाँ तक कह दिया था कि आगामी सरकार हमारी होगी और एक बार हमारी पार्टी सत्ता में आई तो हम आरे में पेड़ों की हत्या करने वालों से अच्छे तरीके से निपटेंगे। उन्होंने कटाई का विरोध करते हुए कहा था कि ये जो हत्यारे अधिकारी बैठे हैं, वो पेड़ों के कातिल हैं, उन्हें इसकी कीमत चुकानी होगी। जिसके बाद उन्होंने खुद ही पेड़ों को काटने का आदेश दिया था और अब कोस्टल रोड प्रोजेक्ट के लिए पेड़ों को काटने की बात सामने आ रही है।