बिहार की 17वीं विधानसभा का सत्र आज से शुरू हो गया और इसके साथ ही नवनिर्वाचित विधायकों को सदन के सदस्यता की शपथ दिलाई गई। इसी दौरान सदन के भीतर हंगामा होने लगा, जब एआईएमआईएम के विधायक अख्तरुल इमान ने हिन्दुस्तान शब्द पर आपत्ति जता दी।
जैसे ही सदस्यता की शपथ के लिए एआईएमआईएम के विधायक का नाम पुकारा गया, उन्होंने शपथ पत्र में लिखा ‘हिन्दुस्तान’ शब्द बोलने से मना कर दिया और इसके स्थान पर भारत शब्द का इस्तेमाल किया।
दरअसल अख्तरुल इमान ने उर्दू भाषा में शपथ लेने की इच्छा जाहिर की थी लेकिन उर्दू भाषा की शपथ में भारत की जगह हिन्दुस्तान शब्द का इस्तेमाल हुआ था। इसके बाद अख्तरुल इमान ने ‘हिन्दुस्तान’ शब्द पर आपत्ति जताई और प्रोटेम स्पीकर से भारत शब्द का इस्तेमाल करने की बात कही।
इस मुद्दे पर विधायक अख्तरुल इमान का कहना था कि भारत के संविधान की शपथ हिन्दी भाषा में ली जाती है। इसके अलावा मैथिली में भी हिन्दुस्तान के स्थान पर भारत का उपयोग किया जाता है। लेकिन उर्दू भाषा के शपथ पत्र में भारत की जगह हिन्दुस्तान शब्द का इस्तेमाल किया गया है।
अंत में अख्तरुल इमान ने कहा कि वह भारत के संविधान की शपथ लेना चाहते हैं न कि हिन्दुस्तान के संविधान की। इस बात के बाद सदन के भीतर काफी हंगामा भी हुआ और प्रोटेम स्पीकर जीतन राम मांझी भी इस बात पर हैरान रह गए।
विधायकों को शपथ दिलाने वाले प्रोटेम स्पीकर जीतन राम मांझी ने इस मुद्दे पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह कोई पहली बार नहीं हो रहा है। यह हमेशा से विधानसभा की परम्परा रही है कि हिन्दुस्तान शब्द का उपयोग होता है लेकिन इस प्रकार की दलीलों से भी एआईएमआईएम के विधायक पर कोई असर नहीं पड़ा, वह अपनी अतार्किक बात पर भी अड़े रहे।
इस पूरे घटनाक्रम से जुड़े विमर्श में गौर करने लायक तथ्य है कि एआईएमआईएम का प्रदर्शन बिहार विधानसभा चुनावों में उल्लेखनीय है। लेकिन संख्या के अलावा यहाँ मूल प्रश्न है कि इस बेहतर प्रदर्शन का आधार क्या था? इस प्रश्न का उत्तर सिर्फ एक शब्द का है – ध्रुवीकरण।
बिहार में राजनीतिक वजूद बनाए रखने का इससे बेहतर विकल्प और क्या हो सकता है एमआईएमआईएम जैसे राजनीतिक दलों के पास। और ध्रुवीकरण की प्रक्रिया में सफल होने के बाद इनके विधायक देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बन कर ‘हिन्दुस्तान’ शब्द पर आपत्ति जताते हैं।
जितना प्रासंगिक शब्द भारत है, उतना ही प्रासंगिक शब्द हिन्दुस्तान भी है लेकिन एआईएमआईएम जैसे एजेंडापरस्त राजनीतिक दल ऐसा क्यों करते हैं, यह समझना बहुत मुश्किल नहीं है। इस तरह के विवाद इस बात का सबूत हैं कि एआईएमआईएम के लिए राजनीतिक लाभ विचारधारा से कहीं बढ़ कर है। सवाल यह भी होना चाहिए कि एआईएमआईएम की कोई विचारधारा भी है? अगर है तो उसका उद्देश्य ध्रुवीकरण से इतर और क्या ही होगा।
संसद के दोनों सदनों से लेकर विधानसभा तक अनेक भाषाओं में शपथ ली जाती है और लगभग सभी भाषाओं की शपथ को राजनेता जस का तस स्वीकार करते हैं। इससे हट कर देश के कुछ राजनीतिक नुमाइंदे ‘कंट्रोवर्सी प्रिय’ होते हैं और यह पहला ऐसा मौक़ा नहीं है जब एआईएमआईएम की तरफ से लोकतांत्रिक इमारत में विवाद को ज़मीन दी गई हो। 2019 में सांसदों के शपथग्रहण के दौरान खुद असदुद्दीन ओवैसी ने शपथग्रहण के दौरान ‘अल्लाह हु अकबर’ बोल कर कर विवाद खड़ा किया था।
इसके पहले उत्तर प्रदेश में 2017 विधानसभा चुनावों में भाजपा के प्रचंड बहुमत हासिल करने के बाद भी शपथग्रहण की भाषा को लेकर बहस छिड़ी थी। यह पहला ऐसा मौक़ा था, जब भारतीय जनता पार्टी के कुल 13 विधायकों ने एक साथ संस्कृत भाषा में शपथ ली थी। इस बात पर आपत्ति जताते हुए समाजवादी पार्टी के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं का कहना था कि वह उर्दू भाषा में शपथ लेंगे। उनके मुताबिक़ संस्कृत में शपथ ली जा सकती थी तो उर्दू में क्यों नहीं यानी इनका द्वेष उर्दू की गैरमौजूदगी से नहीं बल्कि संस्कृत की मौजूदगी से था। जिसके बाद प्रोटेम स्पीकर ने उन्हें हिन्दी में शपथ दिलाई थी।