यूँ तो हरियाणा चुनावों में आज अभी तक किसी को पूर्ण बहुमत मिलने के आसार नहीं दिख रहे लेकिन केंद्रीय गृहमंत्री और ‘आधुनिक चाणक्य’ कहे जाने वाले अमित शाह ने ट्वीट करके कहा है कि हरियाणा में भाजपा की सरकार बनेगी।
उन्होंने लोगों को धन्यवाद देते हुए ट्वीट में लिखा, “गत 5 वर्षों में मोदी जी के केंद्रीय नेतृत्व में खट्टर सरकार ने हरियाणा की जनता के कल्याण के लिए हर संभव प्रयास किये। भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी बनाकर पुनः सेवा का मौका देने के लिए जनता का अभिनंदन करता हूँ। मुख्यमंत्री श्री @mlkhattar, श्री @subhashbrala व सभी कार्यकर्ताओं को बधाई।”
गत 5वर्षों में मोदी जी के केंद्रीय नेतृत्व में खट्टर सरकार ने हरियाणा की जनता के कल्याण के लिए हर संभव प्रयास किये।
— Amit Shah (@AmitShah) October 24, 2019
भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी बनाकर पुनः सेवा का मौका देने के लिए जनता का अभिनंदन करता हूँ।
मुख्यमंत्री श्री @mlkhattar, श्री @subhashbrala व सभी कार्यकर्ताओं को बधाई।
अमित शाह के बारे में कहा जाता है कि वो हवा-हवाई बातें नहीं करते और जब वो बोलते हैं तो ज़िम्मेदारी से बोलते हैं। जहाँ JJP के दुष्यंत चौटाला स्वयं को किंगमेकर घोषित किए घूम रहे हैं, वहीं कुछ का मानना है कि निर्दलीय विधायक निर्णायक हो सकते हैं।
एक तरफ लंबे-चौड़े डील-डौल वाले जेजेपी के दुष्यंत चौटाला बड़े चौड़े होकर घूम रहे हैं। जीत की खुमारी के बाद यह स्वभाविक भी है। देश के उप-प्रधानमंत्री से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री तक की राजनीतिक विरासत जिसे मिली हो, जिसके पास सबसे युवा सांसद का तमगा रहा हो, उसके लिए यह जीत तब और ज्यादा मायने रखती है, जब पिता और दादा जेल में हों। खुद की बनाई पार्टी नई हो। लेकिन 10 सीटों पर जीत लगभग पक्की कर चुके दुष्यंत राजनीति की सबसे पुरानी लाइन भूल जाते हैं – कुछ भी संभव है यहाँ।
हरियाणा चुनाव के परिणाम लगभग स्पष्ट हो चुके हैं। BJP 46 के मैजिक आँकड़े से पीछे रह गई है। पीछे तो कॉन्ग्रेस भी रह गई है। लेकिन मामला अंतर का है, मामला गणित का है। अभी तक का गणित BJP को 40 जबकि कॉन्ग्रेस को 30 सीट दे रहा है। मतलब मैजिक आँकड़े तक पहुँचने के लिए BJP को चाहिए 6 विधायक जबकि कॉन्ग्रेस को चाहिए 16 विधायक।
वहीं एक दूसरे दिलचस्प समीकरण में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ शोर शराबा सबसे अधिक करने वाली आम आदमी पार्टी और लेफ्ट पार्टियाँ ‘NOTA’ (None Of The Above, इनमें से कोई भी नहीं) से भी पीछे दिख रहीं हैं। यानि दिल्ली के मुख्यमंत्री के ‘घर’ में ही उनकी पार्टी की पूछ नोटा से भी कम हो गई है। गौरतलब है कि दिल्ली के बगल में ही स्थित हरियाणा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का गृह राज्य है। इसी तरह चुनाव आयोग की वेबसाइट पर मौजूद आँकड़ों के हिसाब से कम्युनिस्टों को भी NOTA से कम ही वोट मिले हैं।
चुनाव आयोग का डाटा बताता है कि NOTA का मत प्रतिशत (वोट शेयर) इन चुनावों के कुल मतों का 0.55% रहा। वहीं आम आदमी पार्टी को केवल 0.45% वोट ही मिले। कम्युनिस्टों की बदहाली का तो ये आलम है कि CPI और CPI(M) को महज़ 0.03% और 0.09% वोट ही मिले।