25 दिसंबर 2024 को भारत माँ के एक ऐसे सपूत, जिन्होंने अपने कृतित्व, व्यक्तित्व और नेतृत्व से देश को गौरवान्वित किया, दुनिया याद करेगी, श्रद्धा सुमन अर्पित करेगी। वह महानायक कोई और नहीं, बल्कि भारत के यशस्वी पूर्व प्रधानमंत्री, भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी न केवल एक सशक्त राजनेता थे, बल्कि वे एक संवेदनशील कवि, एक दूरदर्शी विचारक और एक फक्कड़ व्यक्तित्व के धनी थे। उनकी नेतृत्व क्षमता ने भारत को वैश्विक मंच पर सशक्त पहचान दिलाई, और उनके जीवन-मूल्य आज भी करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन: कवि से प्रधानमंत्री तक का सफर
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी खुद एक कवि और शिक्षक थे, जिससे उन्हें साहित्य और राष्ट्रवाद की शिक्षा बचपन से ही मिली। वे विद्यार्थी जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ गए और जीवनभर देश के प्रति समर्पित रहे।
1957 में वे पहली बार बलरामपुर (उत्तर प्रदेश) से लोकसभा के सदस्य बने। संसद में उनके ओजस्वी और तार्किक वक्तव्यों ने जल्द ही उन्हें देश का एक प्रमुख नेता बना दिया। उनके व्यक्तित्व की विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे विपक्ष के नेता हों या प्रधानमंत्री, उनका सम्मान सभी दलों के नेता करते थे।
दृढ़ नेतृत्व और दूरदर्शी निर्णय
अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने प्रधानमंत्री काल (1998-2004) में भारत को कई ऐतिहासिक उपलिब्धयाँ दीं। उनके नेतृत्व में भारत ने 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण किए, जिसने भारत को विश्व पटल पर परमाणु शक्ति संपन्न देश के रूप में स्थापित किया। इस निर्णय के बाद कई देशों ने भारत पर प्रतिबंध लगाए, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के कुशल नेतृत्व ने इन चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया।
कारगिल युद्ध (1999) के समय उनका नेतृत्व और सेना के प्रति उनका समर्थन अद्वितीय था। भारत ने इस युद्ध में पाकिस्तान को करारी हार दी और उनके शांतिपूर्ण प्रयासों ने यह भी सुनिश्चित किया कि भारत का रुख अंतरराष्ट्रीय मंच पर गरिमा और मजबूती से प्रस्तुत हो।
लाहौर बस यात्रा: शांति के लिए एक पहल
1999 में अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा का नेतृत्व किया, जो भारत-पाकिस्तान के बीच शांति बहाल करने का एक प्रयास था। हालाँकि इस पहल को पाकिस्तान के कारगिल घुसपैठ ने बाधित किया, लेकिन यह दिखाता है कि वो शांति के कितने बड़े पक्षधर थे।
संयुक्त राष्ट्र में हिंदी का गौरव
1977 में विदेश मंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में भाषण दिया, जो भारतीय संस्कृति और भाषा के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है। यह भाषण भारत की गरिमा और सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने वाला मील का पत्थर बना।
कवि हृदय और प्रेरणा स्रोत
अटल बिहारी वाजपेयी न केवल राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी थे, बल्कि वे एक सशक्त कवि भी थे। उनकी कविताएँ जीवन के संघर्ष, उम्मीद और दृढ़ता की झलक दिखाती हैं। उनकी कविता की पंक्तियाँ, “हार नहीं मानूँगा, रार नहीं ठानूँगा, काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूँ, गीत नया गाता हूँ”, हर व्यक्ति को निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।
संवेदनशीलता और मानवीय पक्ष
अटल बिहारी वाजपेयी की संवेदनशीलता उनके राजनीतिक जीवन का अनूठा पहलू थी। चाहे किसानों की समस्याएँ हों, महिलाओं के अधिकार हों, या युवाओं के लिए रोजगार के अवसर – उन्होंने हर मुद्दे पर गंभीरता से काम किया। उनके नेतृत्व में स्वर्णिम चतुर्भुज योजना (Golden Quadrilateral) जैसी परियोजनाएँ शुरू हुईं, जिसने भारत में आधुनिक सड़क नेटवर्क की नींव रखी। उन्होंने कहा था:
“समूचा भारत हमारी निष्ठाओं का केंद्र और कार्यक्षेत्र है। भारत की जनता हमारा आराध्य है। हमें अपनी स्वाधीनता को अमर बनाना है और राष्ट्रीय अखंडता को अक्षुण्ण रखना है। विश्व में स्वाभिमान और सम्मान के साथ जीवित रहना है। इसके लिए हमें भारत को सुदृढ़, शक्तिशाली और समृद्ध राष्ट्र बनाना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जो साधन आवश्यक होंगे हम अपनाएँगे और जो नीति उपयोगी होगी उसका अवलंबन करेंगे। जो कार्यक्रम हितवाहक होगा उसका निर्धारण तथा क्रियान्वयन करेंगे। कंधे से कंधा लगाकर, कदम से कदम मिलाकर हमें अपनी जय यात्रा को ध्येय सिद्धि के शिखर तक ले जाना है। भावी भारत हमारे प्रयत्नों और परिश्रम पर निर्भर करता है। हम कर्तव्य पालन करें, सफलता सुनिश्चित है।”
अटल बिहारी वाजपेयी का यह संदेश भारत के प्रत्येक नागरिक का ध्येय पथ बनना चाहिए। यही उनके जन्मदिन पर सच्चे मायने में उनके प्रति श्रद्धांजलि होगी।
अटल बिहारी वाजपेयी की प्रेरणा: फिर सबेरा होगा
वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में नहीं पहुँची। भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में माननीय लालकृष्ण आडवाणी ने पार्टी की कमान सँभाली। राष्ट्रीय परिषद की बैठक को संबोधित करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने कार्यकर्ताओं को प्रेरित करने के लिए कहा था, “मैं और आडवाणी जी सिनेमा देखने गए थे और पिक्चर का नाम था फिर सबेरा होगा।” इस कथन से उन्होंने देशभर के कार्यकर्ताओं को एक बड़ा संदेश दिया। उनकी 51 रचनाएँ अपने आप में अध्यात्म, राष्ट्रभाव और गहन जीवन दर्शन का गूढ़ संदेश देती हैं।
100वीं जयंती: संकल्प का अवसर
इस वर्ष, जब देश अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती मना रहा है, यह उनके जीवन-मूल्यों को आत्मसात करने और अपने कार्यक्षेत्र में उत्कृष्टता लाने का संकल्प लेने का समय है। उनके जीवन का हर पहलू – उनकी कविताएँ, उनके विचार, और उनका नेतृत्व – हमें सिखाता है कि देश और समाज के प्रति समर्पण कैसे जीवन को अर्थपूर्ण बना सकता है।
अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत: एक अमर प्रेरणा
अटल बिहारी वाजपेयी भौतिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके विचार और योगदान सदैव हमें प्रेरणा देते रहेंगे। उनके नेतृत्व का दौर न केवल भारत की राजनीतिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान का भी युग था। उनके द्वारा स्थापित आदर्श आज भी हर नागरिक के लिए प्रेरणादायक हैं। उनके शब्दों में:
“हमने अंधकार को चीरकर सवेरा देखा है, हमने तूफानों में जलकर दीपक जलाया है।”
उनकी यह सोच हर भारतीय को आशा और विश्वास का दीप जलाने के लिए प्रेरित करती है।
25 दिसंबर को, उनकी जन्मशती पर, आइए हम सभी उनके विचारों और आदर्शों को आत्मसात कर राष्ट्र निर्माण की दिशा में अपना योगदान दें। अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत सदैव हमारे साथ रहेगी और हमें आगे बढ़ने का मार्ग दिखाती रहेगी।