Sunday, December 22, 2024
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राम मंदिर की जमीन पर ‘खेल’ के दो सूत्र: अखिलेश यादव के करीबी हैं सुल्तान अंसारी और पवन पांडेय, 10 साल में बढ़े दाम

"अंतिम देय राशि लगभग 1423 रुपए प्रति वर्गफीट तय हुई जो निकट के क्षेत्र के वर्तमान बाजार मूल्य से बहुत कम है। मूल्य पर सहमति हो जाने के पश्चात सम्बन्धित व्यक्तियों को अपने पूर्व के अनुबंधों को पूर्ण करना आवश्यक था, तभी सम्बन्धित भूमि तीर्थ क्षेत्र को प्राप्त हो सकती थी।"

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में अड़ंगा लगाने की कोशिशों में AAP और सपा जुट गई है। जहाँ AAP राज्य में पाँव जमाने में लगी हुई है, वहीं सपा सत्ता में वापसी के रास्ते तलाश रही है। अब ‘दैनिक भास्कर’ ने खुलासा किया कि जिस 100 बिस्वा (लगभग 3 एकड़) जमीन को लेकर ‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ ट्रस्ट पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया है, उसे 2011 में समाजवादी पार्टी के नेता सुल्तान अंसारी ने 2 करोड़ रुपए में खरीदा था। 

अखिलेश यादव के नजदीकी हैं घोटाले का आरोप लगाने वाले

सुल्तान अंसारी ने ही इस जमीन को 18.5 करोड़ रुपए में राम मंदिर ट्रस्ट को बेचा है। भास्कर ने अपनी पड़ताल के हवाले से बताया है कि ट्रस्ट पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने वाले पूर्व मंत्री तेज नारायण पांडेय ‘पवन’ और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से सुल्तान के काफी अच्छे रिश्ते हैं। दोनों की कई तस्वीरें भी ‘दैनिक भास्कर’ के पास हैं। अब तेज़ नारायण पांडेय कह रहे हैं कि आरोप तथ्यों के आधार पर हैं, न कि सुल्तान अंसारी के कहने पर।

उन्होंने अपने आरोपों को सही बताते हुए कहा कि राम मंदिर ट्रस्ट ने अब तक 50 से भी अधिक जमीन रजिस्ट्री की है और उन सभी की जाँच की जानी चाहिए। वहीं जिस जमीन को लेकर आरोप लगाया गया है, पिछले 4 सालों में उसका 10 बार एग्रीमेंट हुआ है। सुल्तान के पिता ने 2011 में ये जमीन बबलू पाठक से खरीदी थी। बबलू और सुल्तान, दोनों प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करते हैं। ट्रस्ट ने सुल्तान से 100 बिस्वा और बबलू से 80 बिस्वा जमीन ली है।

2011 में सुल्तान अंसारी ने 2 करोड़ रुपए का एग्रीमेंट पर जमीन खरीदी। ट्रस्ट को बेचने से पहले पुरानी कीमत चुका कर अपने नाम बैनामा कराया। बैनामा का अर्थ है कि सरकारी दस्तावेज में जमीन को किसी के नाम करना। फिर उसने 18 करोड़ रुपए में ये भूमि ट्रस्ट को बेच दी। इसीलिए, जमीन का दाम 2 करोड़ रुपए से 18 करोड़ रुपए 10 मिनट नहीं, बल्कि पूरे एक दशक में पहुँचा है। केंद्र ने खुद की अधिगृहित की हुई 70 एकड़ जमीन ट्रस्ट को दी है।

मंदिर का विस्तार प्लान 108 एकड़ का है, इसीलिए इसके आसपास की जमीनों को लेना ज़रूरी था। बाग़ बिजेसी की जिस जमीन को लेकर विवाद है, वो 2010 से पहले फिरोज खान के नाम पर थी। फिरोज ने 2010 में 180 बिस्वा जमीन बबलू पाठक को बेच दी। 2011 में इसमें से 100 बिस्वा जमीन का एग्रीमेंट बबलू ने इरफ़ान खान उर्फ़ नन्हे मियाँ से किया। एडवांस के रूप में उसे 10 लाख रुपए मिले।

सुल्तान अंसारी नन्हे का ही बेटा है, जिसकी बबलू पाठक से अच्छी दोस्ती है। एग्रीमेंट की वैधता 3 वर्षों की ही होती है, इसीलिए 2015 में बबलू ने सुल्तान के नाम फिर से वो जमीन कर दी। सुल्तान हर 3 साल पर अपने परिवार के सदस्यों के नाम एग्रीमेंट कराता रहा। बबलू ने कभी बकाया रुपया लेने के लिए दबाव नहीं डाला, जिससे पता चलता है कि दोनों के बीच अच्छी दोस्ती थी। मार्च 2021 में ट्रस्ट ने बबलू से 80 बिस्वा और सुल्तान से 100 बिस्वा जमीन खरीदी।

अयोध्या में जमीन के भाव बढ़ना अप्रत्याशित नहीं है, क्योंकि होटल्स, मॉल और मार्केट खोलने के लिए कई बड़े कारोबारियों ने जमीन ली है। उत्तर प्रदेश सरकार कई विकास परियोजनाओं के लिए जमीन ले रही है। राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ये बदलाव आया। जिले में जमीन का दाम 20-50 लाख बिस्वा के आगे-पीछे चल रहा है। राम मंदिर ट्रस्ट के महामंत्री राय ने भी बयान जारी कर सब साफ किया है।

‘जी न्यूज़’ की खबर के अनुसार, अयोध्या में जिस जमीन को लेकर राम मंदिर ट्रस्ट पर आरोप लगाए गए, दस्तावेज पर उसका मालिकाना हक कुसुम पाठक का था, जिन्होंने 2010-11 में ही जमीन का समझौता रवि मोहन तिवारी और सुल्तान अंसारी से कर लिया था। फिर सितंबर 19, 2019 को कागज़ी समझौता हुआ और कीमत 2 करोड़ रुपए तय हुई। इसीलिए, 2 साल बाद उसी रेट पर बैमाना भी हुआ।

चंपत राय ने राम मंदिर के श्रद्धालुओं को बताई सच्चाई

चंपत राय ने कहा कि आरोप की भाषा में वक्तव्य देने वाले व्यक्तियों ने आरोप लगाने से पहले तीर्थ क्षेत्र के किसी भी पदाधिकारी से तथ्यों की जानकारी नहीं की, इससे समाज में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई है। उन्होंने समस्त श्री राम भक्तों से निवेदन किया कि वे ऐसे किसी दुष्प्रचार में विश्वास न करें। उन्होंने कहा कि श्री राम जन्म-भूमि तीर्थ क्षेत्र’ मंदिर को वास्तु शास्त्र के अनुसार भव्य स्वरूप प्रदान कराने, शेष परिसर को सभी प्रकार से सुरक्षित तथा दर्शनार्थियों के लिए सुविधापूर्ण बनाने के लिए कार्य कर रहा है।

चंपत राय ने आगे बताया कि इस निमित्त मंदिर के पूर्व व पश्चिम भाग में निर्माणाधीन परकोटा व रिटेनिंग वॉल की सीमा में आने वाले महत्वपूर्ण मंदिरों/स्थानों को परस्पर सहमति से क्रय किया जा रहा है। न्यास का निर्णय है कि इस प्रक्रिया में विस्थापित होने वाले प्रत्येक संस्थान/व्यक्ति को पुनर्वासित किया जायेगा। पुनर्वास हेतु भूमि का चयन सम्बन्धित संस्थानों/व्यक्तियों की पूरी सहमति के साथ ही किया जा रहा है।

उन्होंने जानकारी दी कि बाग बिजेसी, अयोध्या स्थित 1.20 हेक्टेयर भूमि इसी प्रक्रिया के अंतर्गत जैसे कौशल्या सदन जैसे महत्वपूर्ण मंदिरों की सहमति से पूर्ण पारदर्शिता के साथ क्रय की गई है। उन्होंने ध्यान दिलाया कि उपर्युक्त वर्णित भूमि अयोध्या रेलवे स्टेशन के समीप मार्ग पर स्थित एक प्रमुख स्थान (प्राइम लोकेशन) है। इस भूमि के सम्बन्ध में वर्ष 2011 से वर्तमान विक्रेताओं के पक्ष में भिन्न-भिन्न समय (2011, 2017 व 2019) में अनुबंध संपादित हुआ।

उन्होंने बताया, “खोजबीन करने पर भूखण्ड हमारे उपयोग हेतु अनुकूल पाए जाने पर सम्बन्धित व्यक्तियों से संपर्क किया गया। भूमि का जो मूल्य माँगा गया, उसकी तुलना वर्तमान बाजार मूल्य से की। अंतिम देय राशि लगभग 1423 रुपए प्रति वर्गफीट तय हुई जो निकट के क्षेत्र के वर्तमान बाजार मूल्य से बहुत कम है। मूल्य पर सहमति हो जाने के पश्चात सम्बन्धित व्यक्तियों को अपने पूर्व के अनुबंधों को पूर्ण करना आवश्यक था, तभी सम्बन्धित भूमि तीर्थ क्षेत्र को प्राप्त हो सकती थी।”

यही कारण है कि तीर्थ क्षेत्र के साथ अनुबंध करने वाले व्यक्तियों के पक्ष में भूमि का बैनामा होते ही तीर्थ क्षेत्र ने अपने पक्ष में पूर्ण तत्परता एवं पारदर्शिता के साथ अनुबंध हस्ताक्षरित किया व पंजीकृत कराया। उन्होंने बताया कि तीर्थ क्षेत्र का प्रथम दिवस से ही निर्णय रहा है कि सभी भुगतान बैंक से सीधे खाते में ही किए जाएँगे और सम्बन्धित भूमि की क्रय प्रक्रिया में भी इसी निर्णय का पालन हुआ है। यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि सरकार द्वारा लगाए गए सभी कर आदि का भुगतान हो जाए।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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