उपराष्ट्रपति पद से विदा होने के बाद से हामिद अंसारी ‘बेहद डरे हुए’ हैं। वे पहले ही कह चुके हैं कि भारत के गणतंत्र की संस्थाएँ बहुत खतरे में हैं। एक बार फिर उनका यह ‘डर’ सामने आया है। अब उन्होंने राष्ट्रवाद के साथ आक्रामकता को जोड़ा है और इसे बीमारी बताया है। वे पूर्व में राष्ट्रवाद को ‘जहर’ भी बता चुके हैं।
शुक्रवार (20 नवंबर 2020) को अंसारी ने कहा कि देश कोरोना से पहले ही दो महामारी का शिकार हो चुका है। ये हैं- धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद। बकौल अंसारी, इनके मुकाबले देशप्रेम अधिक सकारात्मक अवधारणा है, क्योंकि यह सैन्य और सांस्कृतिक रूप से रक्षात्मक है।
वे कॉन्ग्रेस सांसद शशि थरूर की किताब ‘The Battle of Belonging’ के आभासी विमोचन के मौके पर बोल रहे थे। उन्होंने देश के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य पर टिप्पणी करते हुए कहा कि देश ऐसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विचारधाराओं की वजह से ख़तरे में नज़र आ रहा है जो उसे ‘हम और वह’ की श्रेणी में विभाजित करने का प्रयास कर रही हैं।
महामारी को केंद्र में रखते हुए पूर्व उपराष्ट्रपति ने कहा, “कोरोना से पहले ही हमारा देश दो बड़ी महामारियों को झेल चुका है, धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद। धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद की तुलना में देशभक्ति कहीं अधिक सकारात्मक अवधारणा है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि यह सांस्कृतिक और सैन्य दृष्टिकोण से रक्षात्मक है।”
अंसारी ने कहा, “4 वर्षों की छोटी अवधि में भारत ने उदार राष्ट्रवाद के बुनियादी दृष्टिकोण से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की राजनीतिक छवि निर्मित करने तक एक लंबी यात्रा तय की है, जो सार्वजनिक क्षेत्र में पूर्णतः स्थापित हो चुकी है।” उन्होंने कहा कि अभी तक हमारे व्यावहारिक मूल्य एक बहुआयामी समाज की अस्तित्वगत वास्तविकता, लोकतांत्रिक राजनीति और धर्मनिरपेक्ष राज्य की तरह प्रस्तुत किए जाते थे। इन सारी बातों को स्वतंत्रता आंदोलन तक स्वीकार किया जाता था, यह बातें संविधान के समानांतर थीं और संविधान की प्रस्तावना (Preamble) में निहित थीं। भारतीय समाज का बहुआयामी पहलू इसमें मौजूद 4635 समुदायों से ही स्पष्ट होता है।
महामारी को उल्लेख करते हुए हामिद अंसारी ने कहा, “कोविड 19 एक भयावह महामारी है लेकिन इसके पहले हमारा समाज दो महामारियों का शिकार हो चुका है, धार्मिक कट्टरता और आक्रामक राष्ट्रवाद। धार्मिक अवधारणा को धर्म के आधार पर किए जाने वाले ढोंग के रूप में परिभाषित किया जा रहा है और आक्रामक राष्ट्रवाद के बारे में पहले ही बहुत कुछ लिखा जा चुका है। यह विचारधारा के लिहाज़ से जहर जैसा है जो किसी संकोच के बिना लोगों के व्यक्तिगत अधिकारों पर अतिक्रमण करता है और अधिकारों को क्षीण करता है।”
पूर्व उपराष्ट्रपति ने कहा कि रिकॉर्ड्स बताते हैं कि यह कई बार नफ़रत का रूप ले लेता है और एक ऐसी घुट्टी के रूप में काम करता है जो प्रतिशोध के लिए उकसाता है। तमाम लोगों ने इसके उदाहरण कहीं और नहीं बल्कि अपनी ही ज़मीन पर देखे होंगे। देशभक्ति स्वभाव के लिहाज़ से बेहद सकारात्मक अवधारणा है चाहे वह सांस्कृतिक रूप में हो या सैन्य रूप में। यह आम लोगों की भावनाओं को सही दिशा देती है।