Friday, November 22, 2024
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जिनसे भगत सिंह ने ली प्रेरणा, नेताजी बोस ने जिनकी सलाह पर किया अमल, जिनकी सुनवाई में पत्नी सहित पहुँचे आंबेडकर: राहुल गाँधी, आसमान पर मत थूकिए

जिस राष्ट्र के लिए उन्होंने जीवन खपा दिया, उसी देश में उन्हें जेल में ठूँस दिया गया। पहले अंग्रेजों से यातनाएँ मिलीं, फिर नेहरू सरकार में प्रताड़ना। वीर सावरकर इन चीजों से काफी टूट गए थे।

राहुल गाँधी और कॉन्ग्रेस पार्टी लगातार वीर विनायक दामोदर सावरकर का अपमान करने में लगी हुई है। “मैं माफ़ी नहीं माँगूँगा, मैं सावरकर नहीं हूँ” – राहुल गाँधी बार-बार ये डायलॉग बोल रहे हैं और कॉन्ग्रेस पार्टी इसका वीडियो भी शेयर कर रही है। ये अलग बात है कि राफेल से लेकर ‘मोदी’ सरनेम वाले लोगों को गाली देने तक, राहुल गाँधी अदालतों में माफ़ी माँगते रहे हैं। इतने चुनाव हारने के बावजूद बार-बार एक महान स्वतंत्रता सेनानी का अपमान किया जा रहा है।

असल में राहुल गाँधी सावरकर बन भी नहीं सकते। जब राहुल गाँधी के दादी के पिता जवाहरलाल नेहरू नहीं बन पाए, तो राहुल गाँधी क्या बनेंगे। जवाहरलाल नेहरू जब नाभा जेल में थे, तब उनके पिता ने न जाने कहाँ-कहाँ पैरवी कर के उन्हें 12 दिनों में ही निकलवा लिया था। जबकि, वीर सावरकर ने 11 वर्षों तक जेल भी नहीं, बल्कि उससे भी खौफनाक कालापानी की सज़ा भुगती। उनके भाई गणेश भी उसी जेल में थे, लेकिन दोनों की मुलाकात तक नहीं होती थी।

सीधी बात है कि राहुल गाँधी, आप सावरकर बन भी नहीं सकते। भारत के सूचना आयुक्त उदय माहुरकर ने अपनी पुस्तक ‘Veer Savarkar: The man Who could have prevented partition’ में बताया है कि कैसे कई स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर से प्रेरित थे। उन्होंने लिखा है कि कैसे वामपंथी बार-बार इस तथ्य को नज़रअन्दाज़ करते हैं कि बलिदानी भगत सिंह वीर सावरकर की पुस्तक ‘1857 का स्वतंत्रता समर’ से प्रेरित थे।

वीर सावरकर ने सन् 1952 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ हुई अपनी एक 12 साल पुरानी मुलाकात का भी जिक्र किया था। नेताजी के बॉम्बे स्थित आवास पर हुई इस बैठक में सावरकर ने उन्हें एक महत्वपूर्ण सलाह दी थी। ये सलाह ये थी कि वैश्विक मंच पर दुश्मन के दुश्मन को दोस्त माना जाए और राष्ट्रमण्डली में कोई भी देश अस्थायी दुश्मन नहीं होता, बस राष्ट्रहित ही स्थायी है। इस मुलाकात के कुछ ही महीनों बाद नेताजी भारत छोड़ कर अंग्रेजों को चकमा देते हुए निकल गए।

सावरकर की सलाह का ही योगदान था कि सुभाष चंद्र बोस ने ‘आज़ाद हिंद फ़ौज (INA)’ का पुनर्गठन किया और उसमें जान फूँकी। भगत सिंह के चाचा अजित सिंह भी अंग्रेजों की सेना में विद्रोह कराने के लिए वीर सावरकर की मदद कर रहे थे। खुद भगत सिंह ने लिखा था कि वीर सावरकर विश्व-बंधुत्व में यकीन रखने वाले बहादुर हैं। उन्होंने अपनी डायरियों में 6 बार वीर सावरकर की पुस्तक ‘हिन्दूपदपादशाही’ से उद्धरण लिया है।

वो कॉन्ग्रेस की ताकतें ही थीं, जिसने वीर सावरकर को महात्मा गाँधी की हत्या में फँसाने की साजिश रची। जबकि वीर सावरकर का स्पष्ट मानना था कि अराजकतावादी गतिविधियों का सहारा लेना विदेशी शत्रु के खिलाफ तो ठीक है, लेकिन अपने ही देश के लोगों के खिलाफ ये रास्ता नहीं आजमाया जा सकता। जिस राष्ट्र के लिए उन्होंने जीवन खपा दिया, उसी देश में उन्हें जेल में ठूँस दिया गया। पहले अंग्रेजों से यातनाएँ मिलीं, फिर नेहरू सरकार में प्रताड़ना।

वीर सावरकर इन चीजों से काफी टूट गए थे। उदय माहुरकर ने एक बार बड़ी बात लिखी है कि बाबासाहब भीमराव आंबेडकर ने सावरकर के वकील और ‘हिन्दू महासभा’ के नेता भपोतकर से दिल्ली में गुप्त मुलाकात कर के कहा था कि उन्हें लगता है कि सावरकर के खिलाफ केस कमजोर है और वो बरी होंगे। उन्होंने मजबूती से मुकदमा लड़ने को प्रेरित किया। आंबेडकर 2 बार अदालत में भी सुनवाई के दौरान पहुँचे, एक बार अपनी पत्नी के साथ।

अब बताइए, क्या राहुल गाँधी कभी वीर सावरकर बन सकते हैं? ऐसा व्यक्ति, जिनसे सुभाष चंद्र बोस सलाह लें। ऐसा व्यक्ति, जिनसे भगत सिंह प्रेरणा लें। ऐसा व्यक्ति, जिनकी सुनवाई में आंबेडकर अपनी पत्नी के साथ पहुँचें। एक ऐसे व्यक्ति, जिनके साथ महात्मा गाँधी वैचारिक बहस करते हों। एक ऐसे व्यक्ति, जिनसे जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री रहते इतना डर लगता है कि उनकी पेंशन रोक देते हैं, उन्हें जेल में डाल दिया जाता है।

विक्रम सम्पत भी अपनी पुस्तक ‘Savarkar: A Contested Legacy, 1924-1966′ में बताते हैं कि कैसे वीर सावरकर की पुस्तक का चौथा संस्करण भगत सिंह ने भारत में गुप्त तरीके से प्रकाशित करवाया था, क्योंकि ये अंग्रेजों द्वारा प्रतिबंधित था। लाहौर के द्वारकादास पुस्तकालय में वीर सावरकर के जीवन को लेकर एक पुस्तक थी, जिसे पढ़ कर भगत सिंह प्रेरित हुए थे – विक्रम सम्पत की मानें तो ऐसे भी प्रमाण मिलते हैं।

‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपल्बिकन (HRA)’ के क्रांतिकारियों को जब जब लाहौर प्रकरण में गिरफ्तार किया गया था, तब लगभग सभी के पास से सावरकर की पुस्तक की प्रतियाँ मिली थीं। चित्रगुप्त ने ‘लाइफ ऑफ बैरिस्टर सावरकर’ नामक एक किताब लिखी थी, जिसे HRA के लोग पढ़ते थे। हमें ये भी विदित है कि किस तरह महात्मा गाँधी और जवाहरलाल नेहरू जैसे नेताओं ने राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव को बचाने की चेहता नहीं की।

जब क्रूर अंग्रेजों ने इन तीनों वीरों को फाँसी पर लटका दिया, तब सावरकर के रत्नागिरी स्थित आवास पर युवा बलिदानियों की याद में काला झंडा लगाया गया था। इससे पहले एक भगवा झंडा उनके घर की पहचान हुआ करता था। वीर स्वरकार ने तीनों बलिदानियों के लिए एक कविता भी लिखी, जो महाराष्ट्र में काफी लोकप्रिय हुआ। 4 महीने बाद ‘श्रद्धानन्द’ पत्रिका में उन्होंने एक लेख के जरिए इन बलिदानियों को याद किया।

वीर सावरकर को अक्सर मुस्लिमों से घृणा करने वाला बताया जाता है और कॉन्ग्रेस पार्टी को लगता है कि उन्हें गाली देकर पार्टी को मुस्लिमों के वोट मिल जाएँगे। सबसे बड़ी बात तो ये कि महाराष्ट्र में पार्टी की यूनिट ये सब बर्दाश्त करती है, चाटुकारिता के कारण कोई नेता आवाज़ नहीं उठाता। काकोरी प्रकरण में बलिदान हुए अशफाकुल्लाह खान की याद में भी वीर सावरकर ने एक लेख लिखा था। ऐसे वीर सावरकर पर राहुल गाँधी कीचड़ उछालते हैं।

आसमान पर थूकने का परिणाम क्या होता है, ये राहुल गाँधी को मालूम होना चाहिए। राहुल गाँधी ये फिर कॉन्ग्रेस पार्टी के किसी नेता में इतनी हैसियत नहीं है कि वीर सावरकर की आलोचना कर सके। महात्मा गाँधी जैसी हस्ती के साथ उनका वाद-विवाद चलता था। अमर क्रांतिकारी उनसे प्रेरणा लेते थे। राहुल गाँधी वीर सावरकर की आलोचना कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का मजाक बना रहे हैं। सरे बलिदानियों का अपमान कर रहे हैं।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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