नवंबर 2017: लालू प्रसाद यादव के बेटे तेज प्रताप यादव सुर्खियों में थे। वजह उन्होंने सुशील कुमार मोदी के बेटे की शादी में उपद्रव करने की सार्वजनिक तौर पर धमकी दी थी। ‘घर में घुसकर मारेंगे’ टाइप की बातें खुलेआम कही थी।
मई 2021: लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी की पार्टी तथा उनके बाल-बच्चों ने एक बार फिर सुशील कुमार मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। राजनीति और भाषा की मर्यादा से परे राजद ने उनके लिए ‘जाहिल, बेशर्म, नग्न और सड़ांध’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है। लालू की एक बेटी उन्हें ‘थेथर’ बता ‘थूर’ देने की बात कर रहीं हैं।
आखिर लालू का कुनबा बार-बार सुशील मोदी के पीछे पड़ने को क्यों मजबूर हो जाता है? वो भी ऐसे वक़्त में जब बीजेपी एक तरह से उन्हें राज्य की राजनीति से अलग भी कर चुकी है। इसका जवाब है सुशील मोदी के चुभते सवाल। जरा उनके ताजा सवालों पर गौर करिए;
- सरकारी आवास की जगह तेजस्वी यादव ने अवैध तरीके से पटना में अर्जित दर्जनों मकानों में से किसी को कोविड अस्पताल क्यों नहीं बनाया?
- कांति देवी ने मंत्री बनने के बदले जो दो मंजिला भवन गिफ्ट किया था, उसमें बचे 10 फ्लैट में अस्पताल क्यों नहीं खोला गया?
- तेजस्वी यादव के परिवार में दो बहनें एमबीबीएस डाक्टर हैं। कोरोना संक्रमण के दौर में उनकी सेवाएँ क्यों नहीं ली गईं?
मोदी ने ये सवाल तब पूछे जब बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने पटना के 1, पोलो रोड स्थित अपने सरकारी आवास को कोविड केयर सेंटर में तब्दील करने का ऐलान किया। कहा कि कोरोना मरीजों का मुफ्त इलाज होगा। मुफ्त खाना दिया जाएगा। साथ ही बिहार सरकार को पत्र लिखकर इस सेंटर को अपने अधिकार क्षेत्र में शामिल करने और इलाज के लिए मरीजों को भेजने की माँग की।
जिस वक्त देश चीनी वायरस कोरोना के संक्रमण से जूझ रहा है, तेजस्वी यादव की यह राजनीति हैरान नहीं करती। कॉन्ग्रेस का टूलकिट बता चुका है कि महामारी के इस दौर में भी हमारे विपक्षी नेता अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए किस हद तक गिरने को तैयार हैं। उसके सामने तेजस्वी यादव का यह ड्रामा (उनके विरोधियों के अनुसार) कहीं ठहरता भी नहीं।
प्रासंगिक बने रहने की बाजीगरी
असल में 90 के दशक से बिहार की राजनीति कुछ चंद नामों के इर्द-गिर्द ही सिमटी रही है। लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, सुशील कुमार मोदी, रामविलास पासवान। राजनीति के मौसम विज्ञानी कहे जाने वाले पासवान दिवंगत हो चुके हैं। लालू पहले खुद राज्य के मुख्यमंत्री रहे और फिर जब जेल जाने लगे तो अपनी पत्नी राबड़ी देवी को भनसाघर (रसोईघर) से निकाल सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया। नीतीश कुछ वक्त को छोड़ दे तो करीब 15 साल से राज्य के मुख्यमंत्री हैं।
वहीं सुशील मोदी बिहार में अरसे तक विपक्ष के नेता और उपमुख्यमंत्री रहे हैं। बावजूद वे ऐसे नेता नहीं है जिनका पूरे राज्य में प्रभाव हो। वे ऐसे वक्ता भी नहीं कि आप उनको सुनने को लालायित रहें। उनके अंदाज में ऐसा कुछ नहीं है जो उन्हें खास बनाता है। जबकि, लालू, नीतीश या फिर पासवान की चर्चा हो तो आप दर्जनों खूबियाँ-खामियाँ गिना दें।
2020 के विधानसभा चुनावों में तो यह स्पष्ट दिख रहा था। नतीजों से पहले और उसके ठीक बाद राजनीतिक हलकों में एक सवाल हर कोई पूछ रहा था। इस बार सुशील मोदी का क्या होगा? जब उन्हें राज्यसभा में भेज दिया गया तो माना गया कि वे बिहार की राजनीति की चर्चा से बाहर हो गए हैं। लेकिन वे बार-बार खुद को चर्चा के केंद्र में लाने में सफल रहते हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि सुशील मोदी बीते तीन दशक से बिहार की राजनीति में प्रासंगिक क्यों बने हुए हैं? वजह लालू विरोधी राजनीति का वो चेहरा होना है, जो कभी लालू के साथ नहीं दिखा। नीतीश कुमार की तो राजनीतिक शुरुआत ही लालू के साथ हुई है। बीजेपी को छोड़ने के बाद भी वे लालू के पास ही गए थे। पासवान और शिवानंद तिवारी जैसे भी कभी लालू के साथ तो कभी उनके विरोध में दिखे। लेकिन, बिहार का यह मोदी कभी लालू के लिए बैटिंग करते नहीं दिखा। चारा घोटाले से लेकर यूपीए जमाने में केंद्र में मंत्री रहते की गई लालू की कारगुजारियों तक, वे वह चेहरा हैं जो हमेशा मुखर रहे।
इतना ही नहीं पार्टी के भीतर एक धड़े की नाराजगी और नीतीश कुमार के प्रति निष्ठावान होने के आरोपों के बावजूद, जब भी मौका आया सुशील कुमार मोदी ने अपनी पार्टी, अपने लोग, अपने विचार के प्रति हर हाल में निष्ठावान रहने की प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया। साबित किया है कि विनम्रता और खामोशी से भी राजनीतिक विरोधियों की चौतरफा घेराबंदी कर उन्हें परास्त किया जा सकता।
यही वह ताकत है, जो पटना में बारिश से आए बाढ़ में बेबस खड़े राज्य के वित्त मंत्री की उनकी तस्वीरों पर भारी पड़ती है। वे जानते हैं कि बिहार की राजनीति में जब तक लालू परिवार की कारगुजारियाँ रहेंगी, सुशील मोदी प्रासंगिक बने रहेंगे। तेजप्रताप से लेकर रोहिणी आचार्य तक की चिढ़ बताती है कि बिहार के इस मोदी ने उनके परिवार के राजनीतिक सफर को बार-बार कितना मुश्किल बनाया है।