लम्बे समय से सनातन धर्म के खिलाफ अलग-अलग धड़ों या पार्टियों द्वारा अभियान चलाए जा रहे हैं। इसमें मिशनरीज के साथ-साथ नव बौद्ध और दलित आंदोलन से जुड़े दल और लोग भी शामिल हैं। यहाँ तक कि राजनीतिक मंचों से सामाजिक समरसता और न्याय की बात करने वाले बसपा जैसे कुछ कुछ भी धार्मिक विद्वेष फैलाकर लगातार हिन्दुओं के बीच खाई पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।
बसपा का सनातन विरोधी चेहरा
दैनिक जागरण की रिपोर्ट में मायावती की बसपा का सनातन विरोधी मिशन उजागर हुआ है। जो सनातन और हिन्दू धर्म के खिलाफ चुचाप लगातार अभियान चला रहा है। इसका प्रमाण हमें बसपा की अधिकृत वेबसाइट पर ‘सच्ची रामायण की चाभी’ जैसी कई किताबों से पता चलती है। यह किताब सीधे सनातन पर वार करती है। जिसमें भगवान विष्णु, श्रीराम, माता सीता आदि पर बेहद आपत्तिजनक टिप्पणियाँ की गई हैं।
यहाँ सर्वजन हिताय की राजनीति को अपना मन्त्र बताने वाली मायावती की बसपा का यहाँ असली चेहरा उजागर होता है जो सनातन विरोधी है। और कहीं न कहीं दलितों और आदिवासियों के बीच सनातन हिन्दू धर्म और उनके आख्यानों को लेकर भ्रम पैदा करने की कोशिश है। रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी की अधिकृत वेबसाइट ‘बीएसपी इंडिया डॉट को डॉट इन’ बसपा की सनातन विरोधी तस्वीर दिखाती है।
इस वेबसाइट में ‘अवर आइडियल’ नाम से एक कॉलम है। इसमें संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर और बसपा संस्थापक कांशीराम के साथ ही पेरियार ललई सिंह यादव का नाम भी है। इसमें उनकी उपलब्धियों के नाम पर ‘क्या है सच्ची रामायण और कैसे जीती कानूनी लड़ाई’ नाम से एक लेख है। इसमें बताया गया है कि पेरियार ईवी रामासामी नायकर की किताब सच्ची रामायण को पहली बार हिंदी में लाने का श्रेय ललई सिंह यादव को जाता है।
वेबसाइट पर बताया गया है कि 1968 में ही ललई सिंह ने ही पेरियार की किताब ‘द रामायना: ए ट्रू रीडिंग’ का हिंदी अनुवाद कराकर सच्ची रामायण नाम से प्रकाशित कराया। वेबसाइट पर सच्ची रामायण और सच्ची रामायण की चाभी पुस्तक का चित्र भी दिखाई देता है। इसी किताब में सनातन विरोधी तमाम बातें लिखी हुईं हैं जिसका कहीं न कहीं बसपा सीधे तौर पर प्रचार करती नजर आती है।
इस लिंक को खोलते ही सामने आता है कि बसपा की वेबसाइट से किस तरह सनातन धर्म को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है। इसमें रामायण को कल्पना बताया है। साथ ही अपने तरीके से रामायण की व्याख्या करते हुए भगवान विष्णु, राम, माता सीता, राजा दशरथ, जनक सहित कई पात्रों के लिए बहुत ही घृणित शब्दों का प्रयोग किया गया है। जिसे आप उस किताब में पढ़ सकते हैं।
कौन हैं ललई सिंह
ललई सिंह यादव ने 1967 में हिंदू धर्म का त्याग करके बौद्ध धर्म अपना लिया था। बौद्ध धर्म अपनाने के बाद उन्होंने अपने नाम से यादव शब्द हटा दिया। तब से वह अपने नाम के साथ ललई सिंह पेरियार लगाने लगे।
यह कहीं न कहीं उसी सनातन विरोधी लहर है जिसकी फसल हाल ही में तमिलनाडु सरकार में मंत्री डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन सहित ऐसे कई नेताओं के सनातन विरोधी बयान के रूप में दिखाई दी। ऐसे सभी दलों और नेताओं का एक ही एजेंडा नजर आता है अपने राजनीतिक स्वार्थों के कारण सनातन में फूट डालने और अपमानित करने की कोशिश है।