Tuesday, November 19, 2024
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26 साल में छोटन शुक्ला पर 20 मिनट तक गोलियाँ बरसाने वाले नहीं मिले, रिएक्शन में DM की हुई थी लिंचिंग

एक एंबेसडर कार पर 20 मिनट तक पुलिस की वर्दी पहने शूटरों ने एके-47 से गोलियाँ बरसाई। प्रतिक्रिया में भीड़ ने एक डीएम की जान ले ली। जिस बाहुबली का नाम आया उसका भी मर्डर हो गया। पर उन शूटरों का 26 साल में भी पता नहीं चला, जिनकी गोलियों से इसकी शुरुआत हुई थी।

बिहार में 26 साल पहले हुए कौशलेन्द्र शुक्ला उर्फ़ छोटन शुक्ला हत्याकांड की जाँच पुलिस ने बंद कर दी है। शुक्ला के साथ उनके चार और समर्थक भी मारे गए थे। सीजेएम कोर्ट में दाखिल फाइनल रिपोर्ट में पुलिस ने कहा है कि अब तक की जॉंच से यह बात सामने आई है कि छोटन शुक्ला की गोली मारकर हत्या की गई थी। लेकिन, हत्या करने वालों के विरुद्ध साक्ष्य नहीं मिला है। ऐसे में वरीय अधिकारियों के निर्देश पर मामले की जाँच बंद करने का फैसला किया गया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि भविष्य में सबूत मिलने पर दोबारा जाँच शुरू की जा सकती है।

छोटन शुक्ला समेत 5 लोगों की हत्या 4 दिसंबर 1994 की रात मुजफ्फरपुर में कर दी गई थी। इसकी प्रतिक्रिया में उनकी शवयात्रा में शामिल भीड़ ने एक युवा डीएम की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। यहाँ तक कि जिस बृज बिहारी प्रसाद पर छोटन शुक्ला की हत्या करवाने का आरोप लगा था, कुछ साल बाद उनकी भी हत्या कर दी गई। लेकिन, उन शूटरों का पुलिस पता नहीं लगा सकी जिन्होंने पुलिस की वर्दी में छोटन शुक्ला की गाड़ी पर गोलियाँ बरसाई थी। इस मामले में उस वक्त भी पुलिस पर मिलीभगत के आरोप लगे थे।

माना जाता है कि छोटन शुक्ला की हत्या लालू यादव और आनंद मोहन के बीच छिड़ी जंग की वजह से हुई थी। बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेश्वर, जो उस समय राज्य के चर्चित क्राइम रिपोर्टर हुआ करते थे, ने लाइव सिटीज के एक वीडियो में सिलसिलेवार तरीके से बताया है कि इस हत्याकांड की बिसात कैसे बिछी थी।

बकौल ज्ञानेश्वर, 1995 में राज्य में विधानसभा चुनाव होने थे। आनंद मोहन की बिहार पीपुल्स पार्टी (बीपीपा) ने छोटन शुक्ला को के​सरिया से चुनाव लड़ाने का ऐलान कर दिया था। शुक्ला भी प्रचार में लगे थे। 4 दिसंबर 1994 की रात भी शुक्ला के​सरिया से ही लौट रहे थे, जब उन्हें उनके घर के करीब ही गोलियों से भून दिया गया था।

ज्ञानेश्वर के मुताबिक छोटन शुक्ला खुली जीप में घूमा करते थे। उस दिन केसरिया से लौटते वक्त उन्होंने अपनी जीप बीपीपा के ही एक नेता के घर पर छोड़ दी और उनके एंबेसडर से मुजफ्फरपुर अपने घर लौट रहे थे। रात के करीब 9 बजे जैसे ही गाड़ी संजय सिनेमा के पास पहुँची, पुलिस की वर्दी में खड़े अपराधियों ने कार को रोका। इससे पहले कि छोटन शुक्ला बाहर निकलते या कुछ पूछ पाते उन अपराधियों ने एके-47 से अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। करीब 20 मिनट तक गोलियाँ बरसाई गई।

बताया जाता है कि उसके बाद जब स्थानीय पुलिस मौके पर पहुँची तो कार में सवार लोगों को तत्काल अस्पताल नहीं ले जाया गया। जब उन्हें अस्पताल ले जाया गया तो डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। कार में छोटन शुक्ला के साथ अन्य जो भी लोग सवार थे उनका कोई आपराधिक अतीत नहीं था। वे बीपीपा के सामान्य कार्यकर्ता थे।

छोटन शुक्ला की हत्या के अगले दिन 5 दिसंबर को उनकी शव यात्रा निकली। इसमें उनका समर्थकों का भारी जुटान था। खुद आनंद मोहन भी पहुँचे थे। इसी दौरान गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया भीड़ में फँस गए। भीड़ ने कृष्णैया को गाड़ी से खींच कर बाहर निकाला और पीट-पीट कर मौत के घाट उतार दिया। तब के अखबारों में छपा कि भीड़ को इशारा करने वाले कोई और नहीं, बल्कि आनंद मोहन ही थे।

इस मामले में आनंद मोहन को मृत्युदंड भी सुनाई गई थी, जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया। यह भी कहा जाता है कि हमला सुनियोजित नहीं था। भीड़ प्रशासन के रवैए से आक्रोशित थी और कृष्णैया का दुर्भाग्य था कि वे उसमें फँस गए। जबकि इस मामले से उनका दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं था।

छोटन शुक्ला की हत्या के पीछे बाहुबली नेता बृज बिहारी प्रसाद का नाम आया था, जिन्हें लालू की सरपरस्ती भी हासिल थी। 13 जून 1998 को बृज बिहारी प्रसाद भी पटना के IGIMS में भून दिए गए।

बाद के वक्त में छोटन शुक्ला की जगह उसके भाई मुन्ना शुक्ला ने ली। छोटन शुक्ला भले विधायक बनने से पहले मार डाले गए थे पर मुन्ना शुक्ला और उनकी पत्नी, दोनों विधानसभा पहुँचे। लेकिन, यह सब कुछ जिस छोटन शुक्ला की हत्या से शुरू हुआ, उसके ही हत्यारों का पुलिस सुराग तक नहीं लगा पाई!

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