सोनिया गाँधी के अंतरिम अध्यक्ष चुन जाने पर शिवसेना ने कॉन्ग्रेस पार्टी पर जमकर निशाना साधा है। शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में कहा गया है कि कॉन्ग्रेस दिल्ली का मीना बाजार बन गई है, जहाँ सिर्फ पुराने ग्राहक घूमते नजर आते हैं। सामना में लिखा है, “73 वर्षीय सोनिया गाँधी को फिर कॉन्ग्रेस की कमान संभालने के लिए आगे आना पड़ा। सोनिया गाँधी बार-बार बीमार पड़ती हैं। इलाज के लिए उन्हें विदेश जाना पड़ता है। बीच-बीच में उनकी तबीयत ज्यादा खराब होने की खबरें आती रहती हैं। ऐसी स्थिति में कॉन्ग्रेस का नेतृत्व करने का बोझ उन्हें उठाना पड़ रहा है, ये अमानवीय है।”
संपादकीय में आगे लिखा गया है कि कॉन्ग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद राहुल गाँधी का कहना था कि कॉन्ग्रेस की नीति के अनुसार नए अध्यक्ष को चुना जाए, अध्यक्ष गाँधी परिवार के बाहर का हो। पार्टी गाँधी परिवार की बैसाखी त्याग अपने दम पर खड़ी हो। कुछ लोगों द्वारा प्रियंका गाँधी का नाम आगे लाते ही राहुल गाँधी ने उन्हें फटकार लगाई। कॉन्ग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगता रहा है और इसके लिए गाँधी परिवार को जिम्मेदार ठहराया जाता है। इसलिए राहुल गाँधी ने यह फैसला किया कि उनके निर्णय का सम्मान होना जरूरी है।
लेकिन 75 दिनों के बाद कॉन्ग्रेस को गाँधी परिवार के बाहर का अध्यक्ष नहीं मिला। 73 वर्षीय सोनिया गाँधी फिर पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बन गई हैं। वर्तमान समय में कॉन्ग्रेस पार्टी में नेतृत्व की पहली पंक्ति अस्तित्व में नहीं है। मोतीलाल वोरा, अहमद पटेल, गुलाम बनी आजाद, मल्लिकार्जुन खड़गे, एके एंटनी, ये सिर्फ टूटी हुई पंक्तियाँ हैं।
सामना में कहा गया है, “पूरा देश आर्टिकल 370 हटाए जाने का स्वागत कर रहा है, वहीं जीर्ण-शीर्ण कॉन्ग्रेस पार्टी 370 के मकड़जाल को अपने शरीर से दूर करने को तैयार नहीं है। उनकी पार्टी में ही इस पर दो-फाड़ हो गया है। ट्रिपल तलाक के संदर्भ में राजीव गाँधी द्वारा की गई भयंकर गलती को इस बार सुधारा जा सकता था, लेकिन कॉन्ग्रेस ने इतिहास की गलतियों से सीखने की तैयारी नहीं दिखाई। इसी कारण कॉन्ग्रेस पार्टी दिल्ली का मीना बाजार बन गई है। पुराने ग्राहक वहाँ घूमते नजर आते हैं सिर्फ इतना ही। कॉन्ग्रेस के पतन के लिए मोदी-शाह जिम्मेदार न होकर वे खुद ही जिम्मेदार हैं। 73 साल की सोनिया गाँधी के कंधों पर भार सौंपकर कॉन्ग्रेस ने बचा-खुचा सत्व भी गँवा दिया है।”