कर्नाटक कॉन्ग्रेस (Karnataka Congress) के अध्यक्ष डीके शिवकुमार (DK Shivkumar) ने मंगलुरु बम विस्फोट के आरोपित मोहम्मद शरीक को क्लिनचिट दे दी। शिवकुमार ब्लास्ट को वोट की राजनीति से जोड़ते हुए गुरुवार (15 दिसंबर 2022) को कहा कि यह विस्फोट एक गलती थी।
शिवकुमार ने आतंकी गतिविधियों के आरोपित शरीक का बचाव करते हुए कहा, “बिना जाँच के उन्होंने (सरकारी एजेंसियों ने) उसे आतंकवादी कैसे घोषित कर दिया? क्या यह मुंबई जैसा आतंकी हमला था? यह कुछ भी नहीं है। किसी ने इसे गलती से किया होगा।”
जाँच में मोहम्मद शरीक को लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे हो चुके हैं। उसके कुख्यात आतंकी संगठन ISIS से संबंध सामने आ चुके हैं। इतना ही नहीं, हमले को अंजाम देने से पहले वह ऑटो में हिंदू नाम से बैठा था, ताकि किसी को कोई शक ना हो। ये सारी बातेें एजेंसियों की जाँच में सामने चुकी हैं।
पुलिस का कहना है कि गिरफ्तार आरोपित मोहम्मद शरीक मंदिर को निशाना बनाना चाहता था, लेकिन बम ऑटो में ही फट गया था। कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री के सुधाकर ने कहा है कि मोहम्मद शरीक खुद को हिंदू बता रहा था। इसके लिए उसने एक आधार कार्ड दिखाया था, जिस पर हिंदू नाम था। उसने यह आधार कार्ड रेलवे कर्मचारी से चुराया था।
आरोपित मोहम्मद शरीक के घर से भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री, एक मोबाइल फोन, दो फर्जी आधार कार्ड, एक पैन कार्ड, डेबिट कार्ड बरामद हुए हैं। विस्फोटक बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियों में जिलेटिन पाउडर, सर्किट बोर्ड, छोटे बोल्ट, बैटरी, वुड पावर, एल्युमीनियम मल्टी मीटर, तार, मिक्सचर जार, प्रेशर कुकर आदि बरामद हो चुके हैं।
जाँच में यह बात भी सामने आ चुकी है कि शरीक इस्लामिक स्टेट (ISIS) के हैंडलर अराफात अली के संपर्क में था। अराफात पहले ही दो मामलों में आरोपित है और अल-हिंद मॉड्यूल मामले के आरोपी मुस्सविर हुसैन के संपर्क में था। यही नहीं, शरीक दो तीन अन्य संदिग्धों के भी संपर्क में था।
पुलिस के हवाले से कहा गया है कि मोहम्मद शरीक बिटकॉइन में ट्रेडिंग करता था और इससे कमाए हुए पैसे को क्रिप्टो करेंसी के द्वारा अपने सहयोगियों को भेजता था। इतना ही नहीं, वह मैसूर में जहाँ रहता था वहाँ खुद का नाम प्रेम राज बताता था। ISIS की मदद से देश में खलीफा का शासन लाने के प्रयास कर रहा था। उसने अपने जैसे 40 लोगों को ट्रेंड किया था।
मोहम्मद शरीक की मौसी ने बताया कि था शरीक घर की औरतों को हिंदुओं से बातें नहीं करने देता था। फरवरी 2020 में जो शिवमोगा की दीवारों पर लश्कर और ISIS के समर्थन में नारे लिखे गए थे, उसमें शरीक और उसके साथियों का हाथ था। वह हमेशा कहता, “मेरा तो सब कुछ अल्लाह है। कुछ ऐसा करूँगा कि जन्नत में 72 हूरें मिलेंगी, वही मेरी असली दुनिया है।”
मोहम्मद शरीक को लेकर इतनी जानकारी सार्वजनिक हो जाने के बावजूद शिवकुमार उसकी खुलेआम तरफदारी की है। हालाँकि, ऐसा करके कॉन्ग्रेस नेता शिवकुमार कुछ अलग नहीं किया है। कॉन्ग्रेस की राजनीति में ऐसा करने की एक पुरानी परंपरा है। देश में जब-जब इस तरह की आतंकी घटनाएँ होती हैं, कोई न कोई कॉन्ग्रेस नेता इस तरह बयान दे देता है, जो सुरक्षा एजेंसियों की मोरल को डाउन करने वाला होता है।
कॉन्ग्रेस में आतंकियों को जी कहने और एनकाउंटर में उनकी मौत पर होने पर आँखों से गंगा-जमुना की धारा भी बही हैं। इतना ही नहीं, इस्लामी आतंकवाद के प्रतिक्रिया में संतुलन स्थापित करने के लिए ‘हिंदू आतंकवाद’ और ‘भगवा आतंकवाद’ जैसे शब्द भी गढ़े गए।
पीएम मोदी और सीएम योगी के राजनीति से प्रेरित होकर राहुल गाँधी अब मंदिर-मंदिर घूम रह रहे हैं। जिस कॉन्ग्रेस में कभी नेता खुलेआम मंदिर में जाने की तस्वीर तो दूर, तिलक लगाए हुए तस्वीर तक शेयर नहीं करते थे, उसमें अब राहुल गाँधी अब त्रिपुण्ड लगाकर तस्वीरें साझा करते हैं। यह मोदी-योगी की राजनीति को काउंटर करने का बस राजनीतिक प्रयास है।
इस प्रयास में एक तरफ कॉन्ग्रेस हिंदुओं को साधने का प्रयास कर रही है तो दूसरी तरफ शिवकुमार जैसे नेता मुस्लिम जैसे सबसे बड़े अल्पसंख्यक वोट बैंक को अपने हाथ से निकलने देना नहीं चाहते हैं। मुस्लिम समुदाय एकमुश्त और एकतरफा वोट देने की रणनीति पर काम करता है। इसलिए इसके वोट आज भी कॉन्ग्रेस के लिए मायने रखते हैं।
कभी ब्राह्मण-दलित-मुस्लिम (BDM) की राजनीति करने वाली कॉन्ग्रेस ब्राह्मण और दलित तो छिटक ही चुके हैं, जिन राज्यों में प्रभावशाली क्षेत्रीय दल हैं, वहाँ मुस्लिम भी साथ छोड़ चुके हैं। ऐसे में शिवकुमार जैसे नेता हिंदुओं और मुस्लिम के वोट के बीच संतुलन साधने की अभी भी कोशिश कर रहे हैं।
ये हुई राजनीति की बात, लेकिन क्या राजनीति देश की सुरक्षा है अहम है? कॉन्ग्रेस के लिए शायद यह अहम है। शायद करते हैं मालेगाँव ब्लास्ट कांड। कहा जाता है कि इसमें तत्कालीन कॉन्ग्रेस की सरकार ने मुख्य आरोपितों की जगह हिंदुओं की फँसाने की साजिश की और कर्नल पुरोहित, असीमानंद, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जैसे लोगों को फँसाया भी गया।
उस समय के तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने ‘हिंदू आतंकवाद’ और ‘हिंदू आतंकवाद’ का जुमला गढ़ा और अपने मुस्लिम वोटरों को लुभाने की कोशिश की। यह देश की सुरक्षा की कीमत पर देश में की जाने वाली कॉन्ग्रेस की राजनीति थी। ये वो दौर था जब देश में आतंकवादी संगठनों ने अपने पाँव जमा लिए थे।
तत्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने भी भगवा आतंक का नारा दिया था और संघ पर आतंकी कैंप चलाने का आरोप लगाया था। शिंदे के इस बयान का पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जमात-उद-दावा ने समर्थन किया था और शिंदे की तारीफ की थी।
इतना ही नहीं, कॉन्ग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने क्रूर आतंकी ओसामा बिन लादेन को ‘ओसामा जी’ और आतंकी हाफिज सईद को ‘हाफिज साहब’ कहा था। ये कॉन्ग्रेस की उसी सोच का नतीजा है, जिस सोच के तहत आज शिवकुमार मोहम्मद शरीक को क्लीनचिट दे रहे हैं।
इसी तरह 2008 में दिल्ली के जामिया नगर में हुए बाटला हाउस एनकाउंटर में दो आतंकियों के मारे जाने के बाद कॉन्ग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गाँधी की आँखों में आँसू आ गए थे। यह बात कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने खुद कही थी। खुर्शीद ने उस समय कहा था कि सोनिया जी को जब एनकाउंटर में 2 लोगों के मारे जाने का पता चला तो उनकी आँखों से आँसू आ गए थे।
तुष्टिकरण की राजनीति सिर्फ कॉन्ग्रेस के खून में है, ऐसा नहीं है। बाटला एनकाउंटर के दौरान पश्चिम बंगाल की वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी सवाल उठाया था। ममता बनर्जी ने जामिया नगर में एक कार्यक्रम किया था बाटला हाउस एनकाउंटर की न्यायिक जाँच की माँग की थी।
ममता बनर्जी ने कॉन्ग्रेस की ही भाषा बोलते हुए कहा था कि बाटला हाउस एनकाउंटर फर्जी है। उस समय ममता बनर्जी ने यह भी कहा था कि अगर इस एनकाउंटर को लेकर वह झूठा साबित होती हैं तो वे राजनीति छोड़ देंगी। हालाँकि, समय के साथ साबित हो चुका है कि बाटला हाउस एनकाउंटर फर्जी नहीं था।
इस तरह कॉन्ग्रेस में तुष्टिकरण की राजनीति की एक पूरी विधा है, जो पंडित जवाहरलाल नेहरू से होते हुए वर्तमान के शिवकुमार तक चल रही है। इस विधा में दंगों को लिए बहुमत वाली जनसंख्या को दोषी ठहराने से लेकर देश के संसाधनों पर मुस्लिमों का पहला बताने तक की थ्योरी है। इसके साथ ही आतंकियों को जाँच के दौरान ही क्लीनचिट देना तो आम बता है।