कॉन्ग्रेस पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए अपना चुनावी घोषणापत्र 2 अप्रैल 2019 मंगलवार को जारी किया, जिसमें NYAY जैसे कई लुभावने वादों के साथ, जो अपने आप में संदिग्ध कि कैसे पूरा होगा और सम्भावना इस बात की ज़्यादा है कि उनकी यह योजना अर्थव्यवस्था को पंगु बना देगा, राहुल गाँधी की दृष्टि से जम्मू और कश्मीर शायद सबसे अस्थिर है, यह देखते हुए कि उन्होंने काफी हद तक अलगाववादियों के साथ कदमताल करने का फैसला किया है।
घोषणापत्र का एक हिस्सा देखिए, जो उनकी कश्मीर दृष्टि के बारे में है।
जहाँ तक कश्मीर का संबंध है। तमाम तरह के फैंसी शब्दों के बीच, कॉन्ग्रेस अपने घोषणापत्र में कुछ खतरनाक वादे करती है।
कश्मीर में सभी ‘हितधारकों’ के साथ संवाद
अपने घोषणापत्र में, कॉन्ग्रेस का कहना है कि उसका मानना है कि केवल संवाद ही आगे बढ़ने का रास्ता है और यह सभी स्टेक होल्डर्स के साथ बिना शर्त वार्ता की सुविधा के लिए 3 वार्ताकारों को नियुक्त करने का वादा करता है। इसने अपने घोषणापत्र में यह स्पष्ट किया है कि ये प्रस्तावित वार्ता हुर्रियत के अलगाववादियों के साथ नहीं की जाएगी जो इस समय जाँच के दायरे में हैं या यहाँ तक कि यासीन मलिक जैसे अलगाववादियों के साथ भी।
कॉन्ग्रेस की यह वार्ता बिना किसी “पूर्व शर्त” के होने जा रही है, जो ज़्यादा चिंताजनक है। इस दृष्टिकोण से तो कॉन्ग्रेस घाटी में आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले तत्वों से भी बातचीत करने को तैयार है।
घाटी में सुरक्षा बलों की तैनाती की समीक्षा की जाएगी
कॉन्ग्रेस ने घाटी में सुरक्षा बलों की तैनाती की समीक्षा करने का वादा किया है। कॉन्ग्रेस घाटी में सशस्त्र बलों की तैनाती को कम कर, उन्हें सीमाओं की तरफ ले जाएगी।
अब यह कोई रहस्य नहीं है कि कश्मीर घाटी आतंकवाद से कराह रही है और सेना का ‘ऑपरेशन क्लीन’ अभियान ने घाटी में आतंकवाद पर अंकुश लगाने में बहुत हद तक सफल रही है। इस कदम के साथ, कॉन्ग्रेस पार्टी यह सुनिश्चित कर रही है कि अब तक उदाहरण के लिए, बुरहान वानी और अहमद डार जैसे आतंकियों को बाहर निकालने और उन्हें उनके अंजाम तक पहुँचाने के रूप में हुई प्रगति पर अंकुश लगाया जाएगा। और एक तरह से कॉन्ग्रेस तुष्टिकरण की नीति को बढ़ावा देते हुए आतंकवादियों को नए सिरे से ऊर्जा हासिल करने और आतंकी हमला कर देश को लहूलुहान करने के लिए उन आतंकियों को पूरा समय देने जा रही है।
अफस्पा (AFSPA) में संशोधन का प्रावधान
कॉन्ग्रेस ने सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम में संशोधन करने का भी वादा किया है जो कश्मीर जैसे अशांत क्षेत्रों में लागू है। कॉन्ग्रेस की मंशा है कि वह सिर्फ इसलिए यह कानून बदल देगा ताकि तथाकथित सुरक्षा और मानवाधिकार संतुलित रहे। इसका मतलब तो यही है कि कॉन्ग्रेस ने आसानी से यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि सेना मानव अधिकारों के उल्लंघन में शामिल है। AFSPA की शक्ति और पहुँच को कम करना भी घाटी के लिए आने वाले समय में एक अप्रत्याशित आपदा को निमंत्रण ही है। कॉन्ग्रेस यहाँ यह भूल रही है कि आतंकी बहुल घाटी में असाधारण परिस्थितियों से निपटने में, सेना को असाधारण शक्तियों की ज़रूरत है। पर देश के शांतिपूर्ण माहौल से कॉन्ग्रेस को क्या? कॉन्ग्रेस का कश्मीर केंद्रित घोषणापत्र देखकर तो यही लगता है कि घाटी में आतंकवाद और आतंकवादियों को फिर से हवा देने की घोषणा कॉन्ग्रेस के घोषणापत्र में की गई है।
कॉन्ग्रेस ने भारतीय सशस्त्र बलों पर यौन-हिंसा का आरोप लगाया
कॉन्ग्रेस के कश्मीर में AFSPA में संशोधन के वादे के साथ ही, घोषणापत्र के अगले हिस्से में, कॉन्ग्रेस ने भारतीय सेना पर घाटी में यौन हिंसा जैसे जघन्य अपराधों का आरोप लगाकर, अलगाववादियों के सुर-में-सुर मिलाने की घोषणा कर दी है।
कॉन्ग्रेस के घोषणापत्र में कहा गया है कि सुरक्षा और मानवाधिकारों के बीच संतुलन बनाने के लिए AFSPA में संशोधन किया जाएगा। कॉन्ग्रेस सत्ता में आते ही AFSPA के तहत सुरक्षा बलों को मिलने वाली ‘यौन हिंसा और यातना के लिए प्रतिरक्षा’ को हटा देगा।
इस तरह से कॉन्ग्रेस का तात्पर्य है कि भारतीय सेना कश्मीर घाटी में निर्दोषों पर अत्याचार, महिलाओं का बलात्कार करती है। यह ठीक वही बात है जो पाकिस्तान द्वारा भारत के प्रति कश्मीरी आबादी में असहमति बढ़ाने एवं उन्हें भारत के खिलाफ उकसाने के लिए फैलाया जाता रहा है। यहाँ तक कि कश्मीरी आतंकवादियों और अलगाववादियों द्वारा आतंकवाद का औचित्य साबित करने के लिए भी यही लाइन इस्तेमाल की जाती है।
शेष भारत में कश्मीरियों के साथ दुर्व्यवहार करने के बारे में झूठ
पुलवामा हमले के बाद, वामपंथी-लिबरल नेटवर्क ने, ये झूठ फैलाने की पूरी कोशिश की थी कि कश्मीरियों पर शेष भारत द्वारा हमला किया जा रहा था। इस तरह के कई झूठ न केवल पुलिस बल्कि नागरिकों द्वारा भी खारिज किए गए थे। इस कहानी को लगभग उन आतंकवादियों को कवर देने के लिए तैयार किया गया था जिन्होंने 40 सीआरपीएफ सैनिकों के आत्मघाती हमले को अंजाम दिया था। अपने वीडियो में, अहमद डार ने भी “गौ-मूत्र पीने वालों” को मारने की कसम खाई थी, जिसका मूल अर्थ है कि वह हिंदुओं का सफाया करना चाहता था। कॉन्ग्रेस का यह घोषणा पत्र यह सुनिश्चित कर रहा है कि 40 सीआरपीएफ जवानों की हत्या पीड़ित कश्मीरियों द्वारा की गई थी।
कश्मीरी पंडितों का कोई जिक्र तक नहीं
पूरे घोषणापत्र में कॉन्ग्रेस ने इस बात का कहीं उल्लेख नहीं किया है कि कश्मीरी पंडित घाटी में लौट सकते हैं या नहीं। 1990 में, घाटी के कट्टरपंथियों ने जिनका बलात्कार किया, हत्या की और बचे-खुचे हिंदुओं को घाटी से निकाल बाहर किया था।
कॉन्ग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में सेना को बदनाम करने, जवानों पर आरोप लगाने के लिए अलगाववादी सुर अपना लिया, लेकिन कश्मीरी पंडितों के निष्काषन और उन पर अत्याचार के रूप में हुए एक ऐतिहासिक बर्बरता को ठीक करने के बारे में बात नहीं की है। कॉन्ग्रेस को याद होगा कि किस घाटी के मुस्लिम चरमपंथियों ने हिंदुओं का नरसंहार किया था, यह घोषणा पत्र अपने आप में कॉन्ग्रेस के कश्मीर के प्रति छिपे मंसूबों का खतरनाक दस्तावेज है।