उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कॉन्ग्रेस पार्टी ने मुस्लिमों को रिझाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है। तीन दशक से राज्य में सत्ता से दूर कॉन्ग्रेस अब मुस्लिमों के सहारे लखनऊ में वापसी करना चाहती है। सपा के मुस्लिम वोट बैंक पर नजर गाड़े कॉन्ग्रेस अब मुल्ले-मौलवियों को अपने पाले में करने में जुटी है। अपने 16 सूत्री संकल्प-पत्र को कॉन्ग्रेस ने मुस्लिमों के घर-घर तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा है।
कॉन्ग्रेस पार्टी ने निर्णय लिया है कि शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद वो हर मस्जिद के बाहर अपना संकल्प-पत्र बाँटेगी। अपने संकल्प-पत्र में भी कॉन्ग्रेस ने ऐसे मुद्दों को शामिल किया है, जिससे वो खुद को मुस्लिम हितैषी दिखाते हुए योगी सरकार पर निशाना साध सके। NRC विरोधी दंगों में दर्ज मुकदमे वापस लेने और मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून से लेकर हर जिले में अल्पसंख्यक छात्रावास खोले जाने जैसे वादे इसमें शामिल हैं।
कॉन्ग्रेस ने वादा किया है कि वो मुस्लिम छात्रों को छात्रवृत्ति देगी, मदरसों का आधुनिकीकरण कर के शिक्षकों को बकाया वेतन दिया जाएगा, 30 वर्षों में वक़्फ़ संपत्तियों में हुई कथित धाँधली की जाँच कर दोषियों को सज़ा दी जाएगी, पसमांदा आयोग का गठन किया जाएगा, दंगों की फिर से जाँच होगी, हर मंडल में यूनानी मेडिकल कॉलेज खुलेगा, गोहत्या वाले मुकदमे वापस लिए जाएँगे और मुस्लिमों को खास तौर पर पुलिस में भर्ती किया जाएगा।
कॉन्ग्रेस की योजना है कि इस संकल्प-पत्र को 15 अक्टूबर, 2021 तक हर राज्य के एक मुस्लिम तक फैला दिया जाए। 8432 मस्जिदों के बाहर जुमे की नमाज के बाद इसकी प्रतियाँ बाँटने के लिए अल्पसंख्यक मोर्चा के कार्यकर्ताओं को लगाया जाएगा। 25 लाख मुस्लिमों तक पहुँचने की योजना है। उत्तर प्रदेश में लगभग 20% वोटर मुस्लिम हैं। 143 सीटों पर उनका असर है। इनमें से आधी सीटों पर मुस्लिम जनसंख्या 20-30% के बीच है।
बाक़ी की आधी सीटों पर मुस्लिमों की जनसंख्या 30% से भी अधिक है। 36 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों का दबदबा है और 107 सीटों पर वो चुनाव के नतीजे को प्रभावित करते हैं। इनमें से अधिकतर सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पूर्वी इलाके और तराई में हैं। अब तक ये सपा का ही वोट बैंक माना जाता था, लेकिन कॉन्ग्रेस के मैदान में उतरने के बाद अब ऐसा लग रहा है कि दोनों दलों में मुस्लिमों के वोटों के लिए जंग होगी।
इसी साल जून में पार्टी ने कुछ बड़े बदलाव करते हुए CAA आंदोलन में सक्रिय रहे शायर इमरान प्रतापगढ़ी और इमरान मसूद को भी आगे बढ़ाया। पाँच राज्यों में नतीजे अपने खिलाफ जाने से परेशान पार्टी ने इमरान प्रतापगढ़ी को उत्तर प्रदेश में पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ का अध्यक्ष नियुक्त किया। इमरान मसूद को ‘अखिल भारतीय कॉन्ग्रेस कमिटी’ में राष्ट्रीय सचिव बनाया गया। कॉन्ग्रेस मुस्लिम नेताओं को जम कर आगे बढ़ा रही है।
राम मंदिर के विरोध से लेकर आतंकियों के लिए आंसू बहाने तक कांग्रेस हमेशा तुष्टिकरण की राजनीति करती रही। अब कांग्रेस यूपी में अपना संकल्प पत्र मस्जिदों के बाहर बांटने के मिशन पर निकली है। @priyankagandhi को यह बताना चाहिए कि उनके चुनावी संकल्प पत्र के वादों पर ‘पहला हक़’ किसका है? pic.twitter.com/FBqXemYKsV
— BJP Uttar Pradesh (@BJP4UP) September 26, 2021
भाजपा ने भी कॉन्ग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर निशाना साधते हुए कहा, “राम मंदिर के विरोध से लेकर आतंकियों के लिए आँसू बहाने तक कॉन्ग्रेस हमेशा तुष्टिकरण की राजनीति करती रही। अब यूपी कॉन्ग्रेस में अपना संकल्प पत्र मस्जिदों के बाहर बाँटने के मिशन पर निकली है। कॉन्ग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गाँधी को यह बताना चाहिए कि उनके चुनावी संकल्प पत्र के वादों पर ‘पहला हक़’ किसका है?”
इसी साल कॉन्ग्रेस ने मौलानाओं-उलेमाओं के साथ वर्चुअल बैठकों का दौर भी शुरू किया है। जून 2021 में बस्ती और संत कबीरनगर से इसकी शुरुआत की गई थी। उन्हीं मौलानाओं-उलेमाओं के सुझावों के आधार पर कॉन्ग्रेस ने अपना संकल्प-पत्र तैयार किया है। देवबंद, सहारनपुर, मुरादाबाद और बेरली पर पार्टी ने ध्यान केंद्रित कर रखा है, जहाँ मुस्लिम शिक्षण संस्थान ज्यादा हैं। घोषणापत्र बनाने के लिए भी पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद को जिम्मेदारी दी गई।
2017 के विधानसभा चुनावों में मुस्लिमों के दबदबे वाली कई सीटों पर भाजपा ने परचम लहराया था। मुजफ्फरनगर ही भगवामय हो गया था। सपा और बसपा द्वारा कई सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे जाने के कारण उनके वोट बँटे भी थे। जहाँ 2012 मुस्लिम विधायक बने थे, 2017 में ये संख्या मात्र 25 रह गई। बसपा ने 100 के करीब मुस्लिम कैंडिडेट उतार कर सपा को झटका दिया था। कई मौलानाओं ने भी मायावती के पक्ष में अपील की थी।