कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी), जिसे CPM या CPIM भी कहा जाता है, के महासचिव सीताराम येचुरी का निधन हो गया है। वे 72 साल के थे और निमोनिया की शिकायत होने के बाद उन्हें 19 अगस्त को दिल्ली के AIIMS में भर्ती कराया गया था। पिछले 25 दिन से उनका इलाज चल रहा था। वे 1974 में स्टूडेंट फेरेशन ऑफ इंडिया (SFI) से जुड़े थे।
CPI(M) की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि ‘कॉमरेड सीताराम येचुरी को साँस की नली में गंभीर संक्रमण हुआ था। डॉक्टरों की टीम उनका इलाज कर रही थी।’ कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी ने कहा, “वे मेरे अच्छे दोस्त थे। वे भारत के विचार के सच्चे रक्षक थे। वे देश को अच्छी तरह समझते थे। मैं उनके साथ की गई लंबी चर्चाओं को बहुत याद करूँगा। इस दुख की घड़ी में उनके परिवार के प्रति मेरी गहरी संवेदनाएँ हैं।”
सीताराम येचुरी जी ने कांग्रेस के सहयोग से नेपाल में चुनाव प्रचार किया था और वामपंथी सरकार सत्ता में आयी थी और आगे चल के नेपाल संविधान मैं बदलाव कर हिंदू राज्य का दर्जा समाप्त किया गया।
— जस्टिस श्री सनिचर (@Ruchhan) September 12, 2024
ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे।
चेन्नै के तेलुगू भाषी ब्राह्मण परिवार में 12 अगस्त 1952 को जन्मे सीताराम येचुरी नेपाल के राजा वीरेंद्र सिंह की लोकतांत्रिक पद्धति के खिलाफ और वामपंथियों के सहयोगी थे। वे नेपाल की विद्रोही वामपंथियों की समय-समय पर समर्थन एवं सहयोग किया। दुनिया के इकलौते हिंदू राष्ट्र के खिलाफ सीपीएम के सीताराम येचुरी और राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी के दिनेश चंद्र त्रिपाठी ने बड़ी भूमिका निभाई थी।
येचुरी और त्रिपाठी की मुलाकात माओवादी नेता बाबूराम भट्टाराई से दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में हुई थी, जहाँ वे छात्र नेता थे। साल 2006 में नेपाल में हिंदू राजशाही खत्म हो गई और वह हिंदू राष्ट्र से एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बन चुका था। उस दौरान येचुरी और त्रिपाठी नेपाली संसद में भी शामिल हुए थे।
नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री और ‘भारत के अच्छे मित्र’ चक्र प्रसाद बस्तोला सहित नेपाली नेताओं ने उनका भव्य स्वागत किया था। संसद में येचुरी ने कहा था, “यह पूरी तरह से नेपाली लोगों की जीत है। अक्सर भारत को बड़े भाई के रूप में देखा जाता है। भारत और नेपाल भाई हैं, लेकिन जुड़वाँ हैं। एक की पीड़ा दूसरे में झलकती है। एक की जीत का जश्न दूसरा मनाता है।”
येचुरी और त्रिपाठी ने साउथ एशिया फाउंडेशन के राहुल बरुआ के साथ मिलकर साल 2005 में भारत में ‘नेपाल डेमोक्रेसी सॉलिडेरिटी कमेटी’ की स्थापना की थी। नेपाल में लोकतंत्र लाने के लिए येचुरी ने माओवादियों के साथ-साथ अपने प्रभाव का खूब इस्तेमाल किया। वहीं, त्रिपाठी ‘नेपाली कॉन्ग्रेस’ और शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व वाले उसके अलग हुए गुट नेपाली कॉन्ग्रेस (डेमोक्रेटिक) के करीब थे।
नेपाल में हिंदू राजशाही खत्म हुई तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने येचुरी का इस्तेमाल किया था। मनमोहन सिंह का मानना था कि जेएनयू के एक अन्य पूर्व छात्र रहे माओवादी बाबूराम भट्टराई पर वे अपना प्रभाव इस्तेमाल कर सकें। त्रिपाठी भट्टराई को भी अच्छी तरह जानते थे। हिंदू राजशाही खत्म होने से पहले येचुरी दो बार वामपंथियों का प्रतिनिधिमंडल लेकर नेपाल जा चुके थे।
नेपाल की राजनीति एवं हिंदू राजशाही के विरोध में सीताराम येचुरी की भूमिका का इसी अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनकी वजह से नेपाल के राजनीतिक दलों और माओवादियों के बीच 12 सूत्री समझौते हुए थे।इसे ‘येचुरी फॉर्मूला’ कहा गया था। तब येचुरी ने कहा था, “मैं इस तरह की ब्रांडिंग के खिलाफ हूँ। यह नेपाली फॉर्मूला है और नेपाली राजनीतिक दल यही चाहते थे।”
नेपाली संसद की बहाली और संविधान सभा के गठन की प्रक्रिया का स्वागत करते हुए सीपीएम नेता ने कहा था, “नेपाल को एक नए लोकतांत्रिक रास्ते पर चलना चाहिए। राजनीतिक प्रक्रिया को 1990 में जो हासिल हुआ था, उसे बहाल करने तक सीमित नहीं रहना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि यही समझ माओवादियों को लोकतांत्रिक मुख्यधारा में लाएगी।”
साल 2006 में नेपाल के लिए जाने से पहले उन्होंने माओवादी नेतृत्व प्रचंड से बात की थी। दिल्ली में उन्होंने कहा था, “उनका मुद्दा बिल्कुल स्पष्ट है। संविधान सभा के सवाल पर नेपाली लोगों के साथ दो बार विश्वासघात किया गया है? पहली बार 1951 में और फिर 1990 में। वे इसे दोहराना नहीं चाहते। यह उनके लिए एक उचित पूर्व शर्त है, जिसे वे ‘नेपाल के नए लोकतांत्रिक विकास’ कहते हैं।”
उन्होंने कहा :e, “इसका भारत में अति-वामपंथियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। आज की क्रांतियों में लोकतंत्र के लिए लोगों की चाहत को भी शामिल किया जाना चाहिए।” नेपाली कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष गिरिजा प्रसाद कोइराला के निमंत्रण पर येचुरी और त्रिपाठी नेपाल पहुँचे थे और वहाँ सात दलों के गठबंधन के नेताओं के साथ बैठक की थी।
नेपाल में जब संविधान लागू करने में कुछ ही महीने बाकी रहे तो सीताराम येचुरी वहाँ के राजनीतिक दलों से विचार विमर्श करने के लिए साल 2010 में तीन दिवसीय यात्रा पर नेपाल पहुँचे। इस दौरान वे नेपाली कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष गिरिजा प्रसाद कोइराला, नेपाल की एकीकृत कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ और नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी) के अध्यक्ष झालानाथ खनल से भी मुलाकात की थी।
इस तह सीताराम येचुरी और दिनेश चंद्र त्रिपाठी ने पड़ोसी देश नेपाल की आंतरिक राजनीतिक हालातों में हस्तक्षेप करते हुए वामपंथियों को हर तरह से मदद पहुँचाई। इसके बाद हिंदू राष्ट्र की पदवी को खत्म करके भारत के इस पड़ोसी देश को एक धर्मनिरपेक्ष देश घोषित कराने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ज्योति बसु CPM पोलित ब्यूरो के सदस्य येचुरी को खतरनाक आदमी कहा करते थे।