अपने अक्सर सुना होगा कि नेता वादे करते हैं और फिर भूल जाते हैं। चुनाव के दौरान बड़ी-बड़ी घोषणाएँ की जारी हैं और जीतने के बाद नेता उसे पूरे नहीं करते। देश में एक नेता ऐसा भी है, जो मजहब देख कर निर्णय लेता है कि किसी पीड़ित की सहायता करनी है कि नहीं, या फिर किसी मृतक के परिजनों को घोषित मुआवजा देना है कि नहीं। अरविंद केजरीवाल सरकार की बेरुखी के कारण दिवंगत कॉन्स्टेबल अमित कुमार की विधवा दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर है।
अमित कुमार राष्ट्रीय राजधानी के पहले ऐसी पुलिसकर्मी थे, जिन्होंने खतरनाक कोरोना वायरस संक्रमण के कारण अपनी जान गँवाई। कोरोना काल में भी जान हथेली पर रख कर ड्यूटी करने वाले और फिर अपने सर्वोच्च बलिदान देने वाले अमित कुमार के परिजनों के लिए दिल्ली की आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार ने 1 करोड़ मुआवजे की घोषणा तो कर दी, लेकिन अभी तक उन्हें एक फूटी कौड़ी तक नहीं दी गई है।
दिल्ली उच्च-न्यायालय में अमित बंसल की पीठ ने जुलाई 23, 2021 को इस मामले की सुनवाई की तारीख के रूप में मुकर्रर की है और दिल्ली सरकार को नोटिस देते हुए जवाब माँगा है। मई 2020 में ही दिल्ली सरकार ने कोविड-19 से जान गँवाने वाले युवा कॉन्स्टेबल अमित कुमार के परिजनों के लिए मुआवजा की घोषणा की थी, लेकिन अब एक साल से एक महीना अधिक बीतने के बावजूद इस पर अमल नहीं हो सका है।
ऐसा नहीं है कि ये वादा चोरी-छिपे किया गया था। खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर के अमित कुमार की मौत पर दुःख जताया था और परिवार को 1 करोड़ रुपए बतौर मुआवजा देने की घोषणा की थी। पत्नी पूजा ने अंत में हार कर दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया है। दिल्ली सरकार के अधिवक्ता ने हाईकोर्ट में कहा कि ‘प्रशासनिक कारणों’ से मुआवजे की राशि देने में देर हुई है। साथ ही दावा किया कि कई लोगों को मुआवजा देने के लिए दिल्ली सरकार कदम उठा रही है।
आश्चर्य की बात ये है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री खुद जाकर जब किसी मृतक के परिजनों को 1 करोड़ रुपए की सहायता राशि सौंप सकते हैं तो अमित कुमार के मामले में कोई अधिकारी तक उनके घर क्यों नहीं जा सकता? इसी साल मई में GTB अस्पताल में तैनात युवा डॉक्टर अनस मुजाहिद की मौत के बाद केजरीवाल मुस्तफाबाद के भागीरथी विहार स्थित उनके घर गए थे, परिजनों को ढाँढस बँधाया था और 1 करोड़ रुपए का चेक सौंपा था।
किसी को दिवंगत डॉक्टर मुजाहिद के परिजनों को मिली मदद से दिक्कत नहीं होनी चाहिए, लेकिन दिल्ली में दारू-शराब की होम डिलीवरी करने वाली सरकार क्या अमित कुमार से सिर्फ इसीलिए भेदभाव करती है कि वो हिन्दू हैं? या इसीलिए भेदभाव करती है कि हिंदू वोट-बैंक नहीं होते? एक बात और… यहाँ दिवंगत डॉक्टर मुजाहिद और अमित कुमार राणा के बीच जो अंतर है, उसे भी समझना होगा।
मुजाहिद के पिता भी डॉक्टर थे, जबकि अमित कुमार राणा एक सामान्य परिवार से थे। सोचिए, उस परिवार पर क्या गुजरी होगी जहाँ पति की मौत के बाद विधवा पत्नी और 3 साल का बेटा भी कई दिनों तक कोरोना से जंग लड़ते रहे। दिल्ली में दारू-शराब की होम डिलीवरी करने वाली सरकार जब अमित कुमार से सिर्फ इसीलिए भेदभाव करे कि वो हिन्दू हैं और हिंदू वोट-बैंक नहीं होते हैं, तो इससे जरूर लोग निराश होंगे।
ये आरोप भी है कि ज़िंदा रहते अमित कुमार के इलाज के लिए दिल्ली सरकार ने समुचित व्यवस्था नहीं की थी। उनके सहयोगी उनकी मौत के बाद नाराज़ थे। उनकी बातें भी सीएम केजरीवाल को आज सुननी चाहिए, भले 1 साल बाद। अमित कुमार के साथियों का कहना था कि अगर वो कोई बड़े अधिकारी होते तो उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती करा दिया गया होता, लेकिन वो सिर्फ एक कॉन्स्टेबल थे और इसीलिए सही समय पर उन्हें इलाज नहीं मिला।
अमित कुमार की मौत के बाद दिल्ली के मुखिया ने क्या लिखा था, वो देखिए – “अमित जी अपनी जान की परवाह ना करते हुए कोरोना की इस महामारी के समय हम दिल्ली वालों की सेवा करते रहे। वे खुद करोना से संक्रमित हो गए और हमें छोड़ कर चले गए। उनकी शहादत को मैं सभी दिल्लीवासियो की ओर से नमन करता हूँ। उनके परिवार को 1 करोड़ रुपए की सम्मान राशि दी जाएगी।” उन्होंने LG के ट्वीट को कोट करते हुए ये वादा किया था। देखिए:
अमित जी अपनी जान की परवाह ना करते हुए करोना की इस महामारी के समय हम दिल्ली वालों की सेवा करते रहे। वे खुद करोना से संक्रमित हो गए और हमें छोड़ कर चले गए। उनकी शहादत को मैं सभी दिल्लीवासियो की ओर से नमन करता हूँ। उनके परिवार को 1 करोड़ रुपए की सम्मान राशि दी जाएगी। https://t.co/n1eNmZNNCw
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) May 7, 2020
32 वर्षीय अमित कुमार कोरोना पॉजिटिव साबित होने के मात्र 6 घंटे बाद ही चल बसे थे। उन्होंने साँस लेने में तकलीफ, बुखार और कफ की शिकायत की थी। उनकी मौत के बाद पूर्वी दिल्ली के सांसद गौतम गंभीर ने कहा था कि दिल्ली प्रशासन की गलती से ये हुआ है। उन्होंने अमित कुमार के बच्चे को अपने बच्चे की तरफ देखभाल का भरोसा दिया था। ‘गौतम गंभीर फाउंडेशन’ ने तो थोड़ी-बहुत मदद की भी, लेकिन प्रदेश सरकार निष्क्रिय हो गई।
अमित कुमार के बारे में बता दें कि वो हरियाणा के सोनीपत के रहने वाले थे। उनका एक चार साल का बेटा है। भारत नगर स्थित पुलिस थाने में उनकी ड्यूटी थी। बगल में ही स्थित गाँधी नगर में वो अपने एक दोस्त के साथ एक किराए के फ़्लैट में रहते थे। ‘क्राइम रिकार्ड्स यूनिट’ में उनकी ड्यूटी लगी हुई थी। जब वो बीमार हुए, तब भी वो ड्यूटी पर ही थे। उससे पहले 36 पुलिसकर्मी दिल्ली में कोरोना संक्रमित हुए थे, लेकिन किसी की मौत होने का ये पहले मामला था।
ये भी याद दिलाना ज़रूरी है कि एक बलिदानी पुलिसकर्मी के परिवार को दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर करने वाली दिल्ली सरकार ने निर्भया के नाबालिग बलात्कारी को एक सिलाई मशीन और 10,000 रुपए दिए थे। दिल्ली सरकार के ‘महिला एवं बाल विकास’ ने एक महिला के बलात्कारी को ये इनाम दिया था। जेल से छूटने के बाद उसे और उसके परिवार को सरकारी खर्चे पर दिल्ली लाया गया था।
फिर अमित कुमार जैसे रक्षक के परिवार से दिल्ली की AAP सरकार को क्या दिक्कत है? जब अमित कुमार कोरोना संक्रमित थे तो सुबह से उनके साथ उन्हें कई अस्पतालों में लेकर गए थे, लेकिन किसी ने भर्ती नहीं किया। 8-9 अस्पतालों में उनके साथ उन्हें लेकर भटके। उस समय दिल्ली सरकार कुछ नहीं कर पाई, लेकिन मृत्यु के बाद मुआवजे का ऐलान कर के वाहवाही बटोर ली। वो मुआवजा, जो अब तक नहीं मिला है।