राजनीतिक हित के लिए एक बार फिर कॉन्ग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने हिंदुओं की भावनाओं को सहारा बनाया है। इस बार मौका है राम मंदिर निर्माण के लिए दिए जा रहे चंदे का। दरअसल सोमवार को कॉन्ग्रेस नेता ने 1,11, 111 रुपए का चेक श्री राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र के नाम पर साइन किया और सोशल मीडिया पर कहा कि उन्हें पता ही नहीं है कि इसे देना कहाँ है।
पीएम मोदी को लिखे पत्र में दिग्विजय सिंह ने कहा, “जैसा कि मैं नहीं जानता कि ये रुपए कहाँ दान दिए जाने हैं या किस बैंक अकॉउंट में तो ये मैं आपको श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के लिए ये 1, 11, 111 रुपए का चेक इस आशा के साथ भेज रहा हूँ कि आप इसे सही जगह पहुँचाएँगे।”
यहाँ देखने वाली बात यह है कि कॉन्ग्रेस नेता के मुताबिक उन्हें यही नहीं मालूम कि श्री राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के लिए दान कहाँ दिया जाना है, जबकि इस विषय में आधिकारिक वेबसाइट से लेकर सोशल मीडिया हैंडल पर पेमंट डिटेल्स की जानकारी है।
दिग्विजय सिंह का पॉलिटिकल स्टंट
पॉलिटिकल स्टंट के लिए दिग्विजय सिंह ने इसमें लिखा कि उन्होंने कभी भी राम मंदिर का मुद्दा राजनीतिक हित के लिए नहीं उठाया। आगे कहा गया, “चूँकि धर्म निजी आस्था का विषय है जो मन, वचन और कर्म को पवित्र करके आत्मकल्याण के साथ लोक कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है, इसलिए कोई व्यक्ति कितना धार्मिक है उसके द्वारा यह प्रदर्शित करना उसे अहंकार की ओर ले जा सकता है, जो आत्मकल्याण तथा लोककल्याण के मार्ग में बाधा हो सकता है। इसी कारण मैं अपने धर्म का पालन किस तरह करता हूँ। इसे बताना मैं हितकारी नहीं समझता। भगवान राम मेरी और मेरे पूर्वजों की आस्था का केंद्र हैं इसलिए राम के बिना तो मैं अस्तित्व की कल्पना भी नहीं कर सकता।”
अपनी भक्ति का प्रदर्शन करते दिग्विजय सिंह कहते हैं, “मैंने राम के नाम का प्रयोग का प्रयोग कभी राजनीति में नहीं किया और न कभी करूँगा। मैं राम को राष्ट्रवाद से जोड़कर नहीं देखता क्योंकि महात्मा गाँधी ने कहा था, ‘धर्म राष्ट्रीयता की परीक्षा नहीं है, बल्कि मनुष्य और उसके भगवान के बीच एक व्यक्तिगत मामला है।”
कॉन्ग्रेस नेता भगवान राम का भक्त बनकर भाजपा पर निशाना साधते हुए जताते हैं कि उनकी पार्टी को भी भगवान राम पर अटूट विश्वास है लेकिन वह इसे राजनीति में नहीं ले गए आए। हालाँकि, यदि इस पूरे घटनाक्रम को देखें तो पता चलता है राम मंदिर के नाम पर दिया गया दान चुप चाप भी दिया जा सकता था, मगर दिग्विजय सिंह ने इस दान को पब्लिसिटी स्टंट की तरह उपयोग किया और इसे चर्चा का मुद्दा बना दिया। अगर ऐसा नहीं है तो सोचिए कि पीएम को लिखे पत्र को सोशल मीडिया पर शेयर करने का क्या मतलब?
ध्यान रहे कि दिग्विजय सिंह उसी ‘सेकुलर’ कॉन्ग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं जिसने 2007 में सत्ता में रहते हुए ये कह दिया था कि भगवान राम के होने के ऐतिहासिक सबूत नहीं मिलते। सर्वोच्च न्यायालय में दायर हलफनामे में कॉन्ग्रेस द्वारा कहा गया था कि पौराणिक भारतीय साहित्य में वाल्मिकी रामायण और रामचरितमानस महत्तवपूर्ण माने गए हैं लेकिन इससे इसके पात्रों घटनाओं व उनके अस्तित्व को लेकर प्रमाण नहीं मिलते।
आज राम मंदिर और भगवान राम के प्रति दिखावटी श्रद्धा केवल दिग्विजय सिंह जैसे कॉन्ग्रेसियों का पाखंड हैं। लंबे समय तक भगवान के अस्तित्व को खारिज करने वाले आज शायद भूल गए हैं कि इतिहास में उन्होंने इसी मुद्दे पर कितना जहर उगला है और देश की बहुसंख्यक आबादी की भावनाओं को कितना आहत किया है।