जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला की बेटी को रियायत देने से इनकार करते हुए कहा है कि कानून की नजर में सब समान हैं। साफिया खान की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि वह भी दूसरे नागरिकों की ही तरह हैं। यदि प्रशासन को लगता है कि राज्य में शांति-व्यवस्था बहाल रखने के लिए कुछ प्रतिबंध जरूरी हैं तो उन्हें भी ये प्रतिबंध झेलने पड़ेंगे।
साफ़िया ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि वो शांतिप्रिय भारतीय नागरिक हैं और किसी भी तरह की आपराधिक गतिविधि में शामिल नहीं हैं। बावजूद इसके उन्हें 5 अगस्त से घर में नज़रबंद कर रखा गया है। उन्होंने अपनी याचिका में बीमारी का हवाला देते हुए लिखा था कि उन्हें नियमित डॉक्टर से परामर्श और दवाइयाँ लेनी पड़ती हैं, इसलिए उनकी सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों को हटाया जाए जिससे वो अपनी मर्जी से बाहर आ-जा सकें।
याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि वो (साफ़िया) भी देश के अन्य नागरिकों की तरह है और अगर प्रशासन को लगता है कि राज्य में अमन-शांति बनाए रखने के लिए प्रतिबंध ज़रूरी हैं तो उन्हें भी इन प्रतिबंधों को झेलना पड़ेगा। इस मामले में 16 अगस्त को हुई सुनवाई के दौरान राज्य के एडवोकेट डीसी रैना ने कोर्ट को इस इस बात से अवगत कराया था कि याचिकाकर्ता (साफ़िया ख़ान) को न तो किसी हिरासत में रखा गया है और न ही उन्हें नज़रबंद किया गया है। घाटी में जान-माल की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कुछ नितांत आवश्यक प्रतिबंध लगाए गए हैं।
डीसी रैना ने याचिकाकर्ता की चिकित्सीय सुविधाओं के बारे में ज़िक्र करते हुए कहा कि श्रीनगर के एडिशनल डिप्टी कमिश्नर की अगुआई में डॉक्टर्स की टीम उनके घर गई थी, लेकिन याचिकाकर्ता ने उनकी सुविधाएँ लेने से इनकार कर दिया। इस बारे में जब याचिकाकर्ता के वकील इशाक क़ादरी को सूचित किया गया, तो उन्होंने निजी कारणों का हवाला देते हुए कहा कि वो साफ़िया ख़ान से मिलने नहीं जा सके हैं।
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने सभी दलीलों को सुनने के बाद पाया कि याचिकाकर्ता को सुविधाएँ मुहैया कराने के लिए हरसंभव प्रयास किया गया। साथ ही यह बात भी स्पष्ट हो गई कि उन्हें न तो हिरासत में लिया गया है और न ही नज़रबंद किया गया है।