भारत की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का 67 साल की उम्र में 6 अगस्त को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। दिल्ली के एम्स अस्पताल में उन्होंने मंगलवार देर रात आखिरी साँस ली। आज शाम राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
एक प्रखर वक्ता से कुशल राजनेत्री का सफर तय करने वाली पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज 25 साल की उम्र में ही विधायक बन गईं थी। जब 1977 में जॉर्ज फर्नांडीस ने जेल से लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन भरा तो सुषमा ही दिल्ली से मुजफ्फरपुर पहुॅंचीं और हथकड़ियों में जकड़ी जॉर्ज की तस्वीर दिखा प्रचार किया। उन दिनों ‘जेल का फाटक टूटेगा, जॉर्ज हमारा छूटेगा’ का उनका दिया नारा सबकी ज़ुबान पर था।
1970 में ABVP से जुड़ीं
- 14 फरवरी 1952 को सुषमा स्वराज हरियाणा के अंबाला कैंट में पैदा हुईं।
- 1970 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ीं।
- उनके पिता हरदेव शर्मा आरएसएस से जुड़े थे।
- अम्बाला छावनी के सनातन धर्म कॉलेज से संस्कृत और राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई की और फिर चंडीगढ़ के पंजाब विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की।
- कॉलेज के दिनों में लगातार 3 वर्षों NCC की सर्वश्रेष्ठ कैडेट चुनी गईं।
- इस दौरान हरियाणा सरकार द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में लगातार तीन वर्षों तक सर्वश्रेष्ठ हिंदी वक्ता का पुरस्कार भी मिला।
- 1973 में कानून की पढ़ाई पूरी करके उन्होंने वकालत शुरू की।
- 1975 में स्वराज कौशल से प्रेम विवाह किया। स्वराज सुप्रीम कोर्ट में उनके सहकर्मी थे।
25 की उम्र में विधायक
- आपातकाल के दौरान सुषमा स्वराज ने जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण आंदोलन में हिस्सा लिया था। आपातकाल के बाद वह जनता पार्टी की सदस्य बनीं।
- 1977 में पहली बार उन्होंने हरियाणा का विधानसभा चुनाव जीता और केवल 25 वर्ष की उम्र में वह चौधरी देवी लाल सरकार में राज्य की श्रम मंत्री बन गईं।
- श्रम मंत्री बनते ही उन्होंने सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बनने की उपलब्धि हासिल की।
- जनता पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष बनीं। फिर भाजपा का गठन हुआ तो उसमें शामिल हुईं।
1990 में पहुँची राज्यसभा
- 1990 में वह राज्यसभा सदस्य बनीं। 1996 में दक्षिण दिल्ली से लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की।
- अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन वाली सरकार में वे सूचना प्रसारण मंत्री बनीं और उन्होंने लोकसभा में चल रही बहस के लाइव प्रसारण का फैसला किया।
- 1998 में वे फिर दक्षिण दिल्ली संसदीय सीट के लिए लोकसभा से निर्वाचित हुईं। लेकिन इस बार दूरसंचार मंत्रालय का भी जिम्मा सौंपा गया।
- अपने इस कार्यकाल में सुषमा स्वराज ने भारतीय फिल्म को एक उद्योग घोषित करने का अहम्क फैसला लिया।
- उनके इस फैसले ने फिल्म जगत की संभावनाओं को विस्तार दिया।
- वर्ष 1998 के अक्टूबर में उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफ़ा दे दिया। जिसके बाद दिल्ली को उसकी पहली महिला मुख्यमंत्रा सुषमा स्वराज के रूप में मिली।
- दिसंबर 1998 में उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में वापसी करने के लिए विधानसभा से इस्तीफ़ा दे दिया।
- 1999 में वे कर्नाटक के बेल्लारी से सोनिया गाँधी के खिलाफ़ मैदान में उतरीं।
- साल 2000 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद के रूप में उनकी फिर वापसी हुई और वे फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल में सूचना प्रसारण मंत्री बनीं।
- हालाँकि बाद में उन्होंने स्वास्थ्य, परिवार कल्याण और संसदीय मामलों का जिम्मा सौंपा गया।
2009 में नेता प्रतिपक्ष
- 2009 में मध्यप्रदेश के विदिशा से लोकसभा पहुँची। 15वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनीं।
- 2014 में विदेश मंत्री बनीं।
- 2014-2019 विदेश मंत्री के रूप में दूर-दराज देशों में फँसे अपने लोगों को भारत वापसी करवाने में अहम भूमिका निभाई। पाकिस्तान से गीता की वापसी सुषमा स्वराज के कार्यकाल में ही संभव हो पाई।
- ट्विटर से लेकर हर सोशल प्लेटफॉर्म पर वे लोगों की मदद के लिए तत्पर रहीं। उनकी सोशल मीडिया पर दिखाई गई सक्रियता के कारण वॉशिंगटन पोस्ट ने उन्हें ‘सुपर मॉम’ के नाम से भी नवाजा था।
- अपनी वाकपटुता के गुण के कारण वे अटल बिहारी वाजपेयी की सबसे लोकप्रिय वक्ता रहीं।
- सुषमा एक मात्र भाजपा नेता थीं जिन्होंने उत्तर और दक्षित भारत क्षेत्र से चुनाव लड़ा।
गौरतलब है कि भारतीय राजनीति के अपने सफर में सुषमा स्वराज ने 7 बार सांसद, 3 बार विधायक, दिल्ली की 5वीं मुख्यमंत्री, संसदीय कार्य मंत्री, केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री, 15वीं लोकसभा की नेता प्रतिपक्ष और विदेश मंत्री के रूप में काम किया था।
1996 में अटल बिहारी वाजपेयी के बगल में खड़े होकर दिया गया उनका भाषण और 29 सितंबर 2018 में संयुक्त राष्ट्र में दिया गया भाषण शायद ही कभी कोई भूल पाए। इसके अलावा साल 2015 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा में दिया गया उनका भाषण भी सबकी स्मृतियों में है जब वे भरी सभा में जमकर पाकिस्तान पर बरसीं थी।
साल 2016 में उन्होंने नवंबर माह में ट्वीट के जरिए अपने किडनी खराब होने की सूचना दी थी। इस दौरान उनका किडनी ट्रांस्प्लांट हुआ था। नवंबर 2018 में उन्होंने ऐलान किया कि वो आगामी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेगीं।
प्रखर वक्ता, कुशल नेत्री, ओजस्वी व्यक्तित्व वाली सुषमा स्वराज को शायद ही कोई अपनी स्मृतियों से निकाल पाए। विपक्ष से लेकर विदेश तक में सुषमा स्वराज ने अपने कार्यों से बहुत स्नेह जुटाया। उनका इस तरह अचानक चले जाना भारतीय राजनीति और भारतीय जनता पार्टी को एक बहुत बड़ी क्षति है।