गुजरात के विधानसभा चुनाव (Gujarat Assembly Election 2022) में भाजपा को मिली लैंडस्लाइड विक्ट्री ने सारे राजनीतिक विश्लेषकों को अचंभे में डाल दिया है। प्रदेश में इस बार भाजपा ना सिर्फ 7वीं बार सरकार बना रही है, बल्कि गुजरात राज्य के गठन से लेकर आज तक इतिहास में सबसे प्रचंड बहुमत प्राप्त करने का भी रिकॉर्ड बनाया है।
इससे पहले माधव सिंह सोलंकी (Madahv Singh Solanki) के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस ने साल 1985 में 149 सीटें जीती थीं। गुजरात के गोधरा में हुए नरसंहार और उसके बाद दंगों के बाद हुए साल 2002 के चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने 127 सीटें जीती थीं। इस बार भाजपा ने 156 सीटें जीती हैं।
यह प्रचंड बहुमत इसलिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि यह उस पार्टी को मिला है, जो पिछले 24 सालों लगातार राज्य की सत्ता में है। आमतौर पर लगातार दो टर्म के बाद किसी भी पार्टी को सत्ता विरोधी लहर के कारण अपनी सीट बचाना मुश्किल होता है। हालाँकि, भारतीय राजनीति में कुछ ऐसे अपवाद भी हैं, जो लगातार तीन या चार टर्म तक सत्ता पर काबिज रहे, लेकिन अंतत: उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ा।
भाजपा के मामले में जनता का भरोसा घटे के बजाय में सरकार में बढ़ा ही है। यह अलग बहस का मुद्दा हो सकता है कि इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा और उनकी कार्यकुशलता सबसे बड़ा बड़ा फैक्टर रही है। हालाँकि, कुछ अन्य कारकों ने भी इसमें सहयोग दिया है, जिसके कारण भाजपा की सीटों में बढ़ोत्तरी हुई है।
जैसे कि सरकार विरोधी लहर को खत्म करने के लिए मुख्यमंत्री सहित पूरी कैबिनेट को बदल देना, बुजुर्ग नेताओं की जगह युवकों को पार्टी में आगे करना, हार्दिक पटेल एवं अल्पेश ठाकोर जैसे उभरते चेहरों को भाजपा में शामिल करना, विरोधी गुटों को भाजपा में मिला लेना, भाजपा सरकार में विश्वास सहित कई अन्य फैक्टर हैं, लेकिन ये सभी सीधे पीएम मोदी से जुड़े हैं और उन्हीं के नेतृत्व में इसे क्रियान्वित किया गया।
ऐंटी इनकम्बेंसी को दूर कर राज्य की आधी आबादी का वोट हासिल करना अपने आपमें एक बड़ा मिसाल है। 2022 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को 52 प्रतिशत वोट मिले हैं, जो वहाँ की सरकार और नरेंद्र मोदी में विश्वास को दिखाता है। यह विश्वास कानून-व्यवस्था से लेकर विकास का विश्वास है। भारतीय संस्कृति के गौरवगान से लेकर गुजराती संस्कृति की अस्मिता की पहचान का विश्वास है।
5 सालों की सत्ता से उपजी हलकी नाराजगी में भी कई सरकारों को साफ होते देखा है। गुजरात में 27 साल से सत्ता में बनी बीजेपी कथित सत्ता विरोधी लहर से ही अछूती नहीं है, जीत का नया रिकॉर्ड बना दिया है। वोट भी 52 प्रतिशत से अधिक पाया है।
— अ स अजीत (@JhaAjitk) December 8, 2022
क्या भारतीय राजनीति में इसकी कोई दूसरी मिसाल है? pic.twitter.com/77V1FCYArD
बिहार में लालू प्रसाद यादव लगातार 15 सालों तक सत्ता में रहे। इस दौरान उन पर कई तरह के आरोप लगे। अगड़ों-पिछड़ों के बीच खाई को चौड़ी करने से लेकर बिहार में नरसंहार तक दौर, अपहरण का कुटीर उद्योग के रूप में विकसित हो जाना आदि की ऐसे कारक रहे, जो लालू सरकार को वैश्विक स्तर पर बदनाम कर दिया। बिहार में लालू का शासनकाल जंगलराज कहलाने लगा और जातिवादी की राजनीति करने के बावजूद उन्हें सत्ता से बेखल होना पड़ा था।
ऐसा ही हाल पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार का रहा था। पश्चिम बंगाल में सीपीएम (CPI-M) ने लगातार 34 वर्षों तक शासन किया और अंतत: सरकार गिर गई। गुजरात में एक पिछले सात चुनावों के आँकड़ें देखे तो स्पष्ट हो जाएगा कि राज्य की जनता का भाजपा में विश्वास बढ़ता गया है। वहीं बंगाल में 1977 लो शासन करने वाली CPM के वोट प्रतिशत में बढ़ोत्तरी और फिर गिरावट देखने को मिली और 2011 में अंतत: सत्ता से बाहर हो गई। गुजरात में भाजपा की स्थिति और नरेंद्र मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व को उनके विरोधी भी स्वीकार करते हैं। उन्हीं विरोधियों में एक पत्रकार राजदीप सरदेसाई भी हैं, जिन्होंने अंतत: इस करिश्मे को स्वीकार किया है।
Data point: By winning 7 consecutive elections in Gujarat, the BJP has matched the left record in Bengal. But in terms of vote share, the BJP’s dominance in Gujarat is far greater than the left too. Watch here: 👇#ResultsOnIndiaToday pic.twitter.com/b4nzm7j3ht
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) December 9, 2022
ऐसी कुछ हालात CPI के हाथ से TMC की ममता बनर्जी के हाथ में सत्ता को लेकर भी है। ममता बनर्जी 2011 में पहली बार मुख्यमंत्री बनी थीं। इन 11 सालों में उनके खिलाफ जनता में लगातार आक्रोश बढ़ रहा है, लेकिन सांप्रदायिकता एवं ध्रुवीकरण की राजनीति के कारण वह सत्ता में बनी हुई हैं। प्रदेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति, आतंकवाद में बढ़ोत्तरी जैसे कारणों से जनता परेशान है और बदलाव की संभावना तलाश रही है। ऐसा पिछले विधानसभा चुनावों के परिणामों से सामने आ चुका है।
ओडिशा में भी बीजू जनता दल के नवीन पटनायक सन 2000 से सरकार चला रहे हैं। इन 22 सालों में उनके खिलाफ भी सत्ता विरोधी लहर चली और सीटें भी कम हुई, लेकिन इस तरह की मिसाल नहीं पेश कर पाए। हालाँकि, ओडिशा में इसके पीछे कई कारक हैं। ओडिशा वनवासी प्रधान राज्य है और वहाँ के वनवासियों में अभी अपने अधिकारियों को लेकर उतनी जागरूकता नहीं आई है। उनमें शिक्षा का अभाव है। ऐसे में धर्मांतरण और कानून व्यवस्था के बुरे हालात होने के बावजूद सरकार कायम है। हालाँकि, जिस तरह के बदलाव अब दिखने शुरू हुए हैं, उससे अब बहुत लंबे समय की उम्मीद नहीं की जा सकती।
बिहार के नीतीश कुमार ने भी बिहार में 22 सालों से मुख्यमंत्री हैं। साल 2000 में उन्होंने भाजपा की मदद से सरकार बनाई। प्रदेश में सब ठीक चला, लेकिन उनकी राजनैतिक महत्वकांक्षा ने बिहार के हालात को बदतर करने शुरू कर दिए। बाद में वे विरोधी राजद के संग जाकर सीएम बने रहे। फिर भाजपा के साथ और फिर राजद के साथ जा मिले। इस तरह वे 22 सालों से मुख्यमंत्री हैं। लेकिन ये कहना है कि उनकी या उनके पार्टी की लोकप्रियता के कारण वे सत्ता में हैं तो यह सही नहीं होगा। नीतीश कुमार सिर्फ पक्ष और विपक्ष के बीच नंबर गेम को लेकर और दल-बदल की नीति के कारण सत्ता में बने हुए हैं। उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता में बढ़ोत्तरी के बजाये गिरावट ही नजर आ रही है।
गुजरात विधानसभा चुनाव में इस बार प्रदेश की जनता ने जो मिसाल पेश की है, वह भारतीय राजनीति में संभवत: सिर्फ एक बार देखने को मिली थी और वह थी इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर पर कॉन्ग्रेस को लोकसभा चुनावों में रिकॉर्ड बहुमत देना। 1984 के लोकसभा चुनावों में कॉन्ग्रेस ने 414 सीटें जीतकर रिकॉर्ड कायम किया था, जो आज तक बरकरार है। हालाँकि, राजीव गाँधी की उस जीत और गुजरात के इस जीत में जमीन-आसमान का अंतर है और भारतीय राजनीति में बिना शुचिता एवं निष्ठा वाली शायद ही कोई पार्टी इसे दोहरा सकेगी।