मोपला नरसंहार की 100वीं बरसी पर बोलते हुए RSS विचारक जे नंदकुमार ने बताया कि मालाबार छोड़ कर गए हुए कई हिन्दू वापस आ गए, जब टीपू सुल्तान की हार हुई। इसके बाद वो वापस आए और उन्होंने अपनी जमीनें वापस ली। उन्होंने बताया कि इसके बाद मालाबार में एक परिवर्तन हुआ और सांप्रदायिक दंगों का एक सिलसिला शुरू हो गया, जो 1792 से लेकर 2021 तक चला। कार्यक्रम में उत्त्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी शिरकत की।
उन्होंने जानकारी दी कि इस दौरान 82 बड़े दंगे हुए, जो मुस्लिमों द्वारा हिन्दुओं पर एकपक्षीय था। इसके बाद खिलाफत आंदोलन शुरू हो गया। उन्होंने कहा कि एक छोटी चिंगारी से भी बहुत बड़ा विस्फोट हो सकता है, इसके बाडजुए कॉन्ग्रेस नेतृत्व ने हरी झंडी दिखा कर आंदोलन शुरू किया। मोपला मुस्लिम बिना किसी कारण हिन्दुओं पर हमले करते थे। ‘खिलाफत कमिटी’ बनने के बाद ही केरल में दंगे शुरू हो गए।
उन्होंने अली मुसरयार का नाम लिया, जिसका जिक्र बाबासाहब भीमराव आंबेडकर ने भी किया है। उसने अपनी एक इस्लामी सत्ता की स्थापना कर के हिन्दुओं का जबरन मतांतरण शुरू किया। जबकि, सेक्युलर लोग इसे ब्रिटेन के खिलाफ बताते हुए स्वाधीनता संग्राम बताते हैं और कहते हैं कि बाद में गलती से दंगे शुरू हो गए। उन्होंने कहा कि सितंबर 1914 में ही वहाँ मुस्लिमों की एक सभा हुई थी, जिसमें उन्होंने अंग्रेजों का समर्थन किया था।
पहले विश्व युद्ध के बाद इंग्लैंड ने ऐलान किया था कि अगर मुस्लिम उसका समर्थन करते हैं तो वो खिलाफत आंदोलन का साथ देगा, जिसके बाद केरल में अंग्रेजों के समर्थन में सभाएँ हुईं, नमाज हुई। लेकिन, अंग्रेजों ने युद्ध में जीत के बाद तुर्की सल्तनत को हटा कर कई मुल्कों को आज़ाद कराया। इसके बाद ‘खिलाफत आंदोलन’ शुरू हुआ, जिसका मुख्य उद्देश्य था तुर्की के खलीफा को पुनः स्थापित करना।
उन्होंने बताया कि 1920 में खिलाफत का घोषणापत्र आया था, जिसमें ‘भारत’ शब्द तक नहीं था, इसमें स्वतंत्रता व संस्कृति की बात तो छोड़ दीजिए। साथ ही उन्होंने एक इस्लामी राज्य की कल्पना की थी। उन्होंने कॉन्ग्रेस से पूछा कि ‘खिलाफत आंदोलन’ में स्वतंत्रतता कहाँ थी? इतिहासकार आरसी मजूमदार ने लिखा है कि कॉन्ग्रेस नेता खिलाफत के पैन-इस्लामी प्रकृति को समझने में नाकाम रहे। इसने भारत की राष्ट्रीयता की जड़ को काटा।
उन्होंने वामपंथियों पर भी निशाना साधा। इन्होंने इसे ‘कृषि क्रांति’ और ‘क्लास वॉर’ तक करार दिया। इसे जमींदारों के खिलाफ भूमिहीनों का संघर्ष बताया गया। कुछ कथित बुद्धिजीवियों ने इसे किसानों का आंदोलन बताया, जो सरासर झूठ है। जे नंदकुमार ने बताया कि वहाँ हिन्दुओं में भी गरीब लोग थे और मुस्लिमों में भी अमीर लोग थे। उन्होंने पूछा कि अगर ये जमींदारों के खिलाफ था, तो कितने मुस्लिम जमींदारों की हत्या हुई?
Its been 100 years since the black banner of Eagle has raised amongst the swooping vuktures..#MalabarHinduGenocideday pic.twitter.com/MPTk4Cxe5J
— J Nandakumar (@kumarnandaj) September 25, 2021
जिन हिन्दुओं का नरसंहार हुआ, उनमें अधिकतर पिछड़े वर्ग के लोग थे। उन्होंने बताया कि दूसरा आक्रमण कपड़ा बनाने वाले हिन्दुओं पर हुआ, जो पिछड़ी श्रेणी में आते हैं। उन्होंने पूछा कि अगर ऐसा है तो ईसाईयों पर हमले क्यों हुए? उन्होंने 25 सितंबर की एक क्रूरत हत्याकांड को याद किया, जहाँ मल्ल्पुरम और कालीकट के बीच एक स्थान पर एक कुएँ के सामने 50 से ज्यादा हिन्दुओं को मुस्लिम आतंकियों ने बाँध कर रख दिया।
एक चट्टान के ऊपर बैठ कर उनके ‘गुनाहों’ की बात की गई और तिलक-चोटी-जनेऊ पर आपत्ति जताते हुए मंदिर में जाने को भी ‘गुनाह’ बताया गया और कहा गया कि शरीयत के शासन में ये ठीक नहीं है। हिन्दुओं के गले काट-काट कर कुएँ में धकेल दिया गया, जिसमें कई हिन्दू दम घुटने से भी मरे। इसके कई घंटों बाद कुएँ में आवाज़ सुन कर कुछ मुस्लिम कुएँ में उतरे और अधमरे लोगों के भी गले काट-काट कर हत्याएँ की गईं।