सरसंघचालक मोहन भागवत ने मंगलवार को (अक्टूबर 1, 2019) को एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि भारत की भक्ति करने वाला हर व्यक्ति हिन्दू है। संघ की विचारधारा के बारे में बात करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा कि यह स्थानीय नहीं है, अपितु प्रगतिशील है। एबीवीपी से जुड़े वरिष्ठ प्रचारक सुनील आंबेकर की पुस्तक ‘द आरएसएस: रोडमैप फॉर 21 सेंचुरी’ के विमोचन के मौके पर उन्होंने ये बातें कही। पाकिस्तान और उसके प्रधानमंत्री इमरान ख़ान लगातार संघ पर हमलावर रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी आरएसएस को लेकर भला-बुरा कह चुके हैं।
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि संघ ने हिन्दू नहीं बनाए बल्कि यह तो हज़ारों वर्षों से चला आ रहा है। उन्होंने बताया कि संघ ने बाहर से आए लोगों को भी अपनाया है। उन्होंने कहा कि देश, काल या परिस्थिति के अनुरूप अब तक संघ में बदलाव होता आया है और यह प्रगतिशील संगठन है। उन्होंने कहा कि जो भी भारत की भक्ति करता है और उसमें भारतीयता बनी हुई है तो वह हिन्दू है। संघ प्रमुख ने इसे संघ की सतत विचारधारा बताते हुए कहा कि इस बात को लेकर कोई भरम न पाला जाए।
“यदि समस्याएं हैं तो उसकी व्यवस्था है, चिंतन से समाधान निकल सकता है।मूल बात व्यक्ति को बदलने की है। संघ सब कुछ करता है ऐसा नहीं है, सब कुछ संघ ने किया, ऐसा जब हो गया तो यह संघ की पराजय है। संघ चाहता है पूरा समाज संगठित हो।” – डॉ. मोहनजी भागवत #RSSRoadmaps #21stCenturyRSS pic.twitter.com/XY3K9DRkfv
— RSS (@RSSorg) October 1, 2019
मोहन भागवत ने संघ द्वारा किए गए कार्यों की भी चर्चा की। आरएसएस में लोकतंत्र के बारे में उन्होंने बात करते हुए कहा कि यहाँ सभी की सहमति के बाद ही किसी दिशा में आगे बढ़ा जाता है। उन्होंने लोगों को यह न सोचने की सलाह दी कि संघ ही सब कुछ करे। उन्होंने कहा कि यह विचार नहीं बनना चाहिए कि संघ के कारण ही सबकुछ हो रहा। उन्होंने कहा कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है और इससे कोई समझौता नहीं हो सकता। आरएसएस के मुखिया ने कहा:
“संघ को यदि समझा जा सकता है तो इसके संस्थापक डॉ. हेडगेवार के जीवन से। हमारे लिए झंडा महत्वपूर्ण है। भगवान हनुमान और छत्रपति शिवाजी हमारे आदर्श हैं। हमारे यहाँ देशकाल, समय और परिस्थिति की कसौटी पर सामूहिक सहमति से फ़ैसले लिए जाते हैं। विचारों में मतभेद हो सकता है, लेकिन मनभेद नहीं होता। लोग अपने विचार रखने और लिखने के लिए स्वतंत्र हैं। कोई भी स्वयंसेवक अपना मत रख सकता है। लेकिन, जब निर्णयों की बात आती है तो वह सहमति से होते हैं। मेरे पास भी संघ की व्याख्या के लिए शब्द नहीं है। मैं भी यह दावा नहीं कर सकता कि संघ को समझ पाया हूँ।”
Bhagwat said RSS doesn’t believe in any ism and is not represented by any book including one authored by its second head M S Golwalkar.https://t.co/OW4bbLiaH0
— India Today (@IndiaToday) October 1, 2019
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि संघ में शामिल होने के लिए शर्तें नहीं थोपी जाती हैं। उन्होंने समलैंगिकों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि वे सभी मनुष्य हैं और उन सभी का समाज में स्थान है। उन्होंने महाभारत युद्ध की चर्चा करते हुए शिखंडी की बात की। उन्होंने कहा कि उस समय भी अर्जुन को उसके पीछे खड़ा होना पड़ा था। यह दिखाता है कि समाज में सबका अपना-अपना स्थान है।