ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कैबिनेट में जगह देते हुए नागरिक उड्डयन मंत्रालय की जिम्मेदारी दी है। इसके बाद से ज्योतिरादित्य के दिवंगत पिता माधवराव सिंधिया भी चर्चा में हैं। चर्चा इस बात की है कि कैसे 30 साल पहले नरसिम्हा राव की कैबिनेट में माधवराव को भी उड्डयन मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली थी। कॉन्ग्रेस और गाँधी परिवार से उनके रिश्तों को लेकर भी बात हो रही है, क्योंकि कभी ज्योतिरादित्य भी राहुल गाँधी के करीबी बताए जाते थे, लेकिन बाद में उन्हें कॉन्ग्रेस छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।
इसी कड़ी में मीडिया रिपोर्टों में पत्रकार राशिद किदवई की किताब के हवाले से एक नया दावा किया जा रहा है। इसके अनुसार अपनी हत्या से कुछ दिन पहले इंदिरा गाँधी ने बेटे राजीव और अरुण नेहरू को मिलने बुलाया था। अरुण नेहरू की राजीव के जमाने में कॉन्ग्रेस में तूती बोलती थी। बाद में वे उनके पतन की भी वजह बने। दावा किया जा रहा है कि इस मुलाकात में इंदिरा ने राजीव से कहा कि दो काम बिल्कुल मत करना। पहला, अमिताभ बच्चन को लेकर कभी चुनावी राजनीति में मत आना। दूसरा, माधवराव सिंधिया को मंत्री मत बनाना।
Delighted to take the baton of the @MoCA_GoI from Sh @HardeepSPuri ji. I resolve to discharge my duties with earnestness & continue the good work undertaken by him. pic.twitter.com/8grFtk9zDv
— Jyotiraditya M. Scindia (@JM_Scindia) July 9, 2021
रिपोर्टों के अनुसार किदवई ने यह बात माखनलाल फोतेदार के हवाले से किताब में कही है। फोतेदार ने अपनी आत्मकथा में यह लिखा है। इसके अनुसार इंदिरा ने राजीव से कहा था, “तेजी के बेटे अमिताभ को चुनावी राजनीति में मत लाना ओर यदि कभी तुम प्रधानमंत्री बने तो माधवराव को अपनी कैबिनेट में मत रखना।” वरिष्ठ कॉन्ग्रेसी फोतेदार भी गाँधी परिवार के करीबियों में रहे हैं। 2017 में उनका निधन हुआ था।
वैसे दिलचस्प यह है कि इंदिरा गाँधी की मौत के बाद राजीव ने इनमें से कोई बात नहीं मानी। उन्होंने अमिताभ बच्चन को इलाहाबाद से लोकसभा का चुनाव लड़वाया, जिन्होंने हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे दिग्गज को हराया भी। माधवराव सिंधिया को भी अपनी कैबिनेट में भी रखा, वह भी रेल जैसे महकमे की जिम्मेदारी के साथ। हालाँकि सिंधिया के मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं बन पाने की वजह भी राजीव ही बताए जाते हैं। यह भी संयोग है कि 2018 में मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस की सत्ता में वापसी के बाद जब मुख्यमंत्री चुनने की बारी आई तो राहुल गाँधी ने भी ज्योतिरादित्य को किनारे कर कमलनाथ पर भरोसा जताया।
इस दावे के ज्यादातर किरदार अब इस दुनिया में नहीं हैं। लिहाजा, यह बताना मुश्किल है इनमें कितना दम है। लेकिन यह जगजाहिर है कि गाँधी परिवार के साथ सिंधिया और बच्चन के रिश्ते ‘कभी खुशी, कभी गम’ टाइप ही रहे हैं। अभी हाल ही में एक और पत्रकार संतोष भारतीय की किताब के हवाले से भी मीडिया रिपोर्टों में इस रिश्ते पर रोशनी डाली गई थी। भारतीय ने अपनी किताब ‘वीपी सिंह, चंद्रशेखर, सोनिया गाँधी और मैं’ में दावा किया है कि राहुल गाँधी की पढ़ाई के लिए सोनिया ने अमिताभ बच्चन से पैसे का इंतजाम करने को कहा था। उन्होंने इसमें आनाकानी की जो संबंधों में खटास की वजह बनी।