हाल ही में भारत सरकार ने ‘प्रवासी भारतीय केंद्र’ का नाम बदल कर ‘सुषमा स्वराज भवन’ कर दिया और ‘फॉरेन सर्विस इंस्टीट्यूट’ का नाम बदल कर ‘सुषमा स्वराज इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन सर्विस’ रख दिया गया। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्री के रूप में शानदार काम किया था। उनके इसी योगदान को याद करते हुए भारत सरकार ने ये फ़ैसला लिया। इसी तरह रक्षा मंत्रालय ने ‘इंस्टीट्यूट फॉर डिफेन्स स्टडीज एन्ड एनालिसिस’ का नाम बदल कर ‘मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस एंड एनालिसिस’ रखा गया। दिवंगत रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के कार्यकाल के दौरान सर्जिकल स्ट्राइक और ओआरओपी सहित कई ऐतिहासिक फ़ैसले लिए गए थे।
सार ये कि किसी के योगदान को याद करने के लिए उनके नाम पर भवन, संसथान, सड़क इत्यादि का नाम रखना कोई नया चलन नहीं है। ऐसा होता रहा है। लेकिन, दिक्कत तब आती है जब पूर्व में किसी के द्वारा किए गए कार्यों को कमतर दिखाने के लिए किसी बड़े नेता के नाम पर इनका नाम रखा जाता है। जैसे, ‘राजीव गाँधी खेल रत्न अवॉर्ड’ भारत के पूर्व प्रधानमंत्री के नाम पर है, किसी खिलाड़ी के नाम पर नहीं। भारत की गली-गली में इंदिरा, नेहरू और राजीव के नाम पर सड़क, भवन, प्रोजेक्ट्स और चापाकल तक मिलेंगे। इन तीनों के नाम पर कई सरकारी योजनाएँ भी चली।
यहाँ हम ऐसा ही एक उदाहरण राजस्थान से लेकर आए हैं। वहाँ राजा गंगा सिंह के योगदान को लोग धीरे-धीरे लोग भुला रहे हैं, क्योंकि उनके द्वारा किए गए कार्यों का क्रेडिट किसी और ने लूट लिया। ‘राजस्थान कैनाल’ का काम चल रहा था, तभी 1983 में इंदिरा गाँधी यहाँ दौरे पर आईं और 1984 में नहर का नाम उनको समर्पित कर दिया गया। जबकि, इस नहर की परिकल्पना राजा गंगा सिंह ने की थी। अच्छा होता कि स्थानीय हस्ती गंगा सिंह के नाम पर इस नहर का नामकरण किया जाता ताकि लोग उन्हें याद रखें और उनके योगदान को सराहें, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
बीकानेर महाराजा गंगासिंह जी राठौड़
— Karan Singh Shekhawat (@KaranShekhawa1) August 31, 2018
“राजस्थान के भागीरथ” , “आधुनिक गंगानगर के निर्माता” , “गंगनहर के वास्तविक निर्माता (जो अब इंदिरा गांधी नहर कहलाती है)#bikaner #राजस्थान #राजपूत pic.twitter.com/Y1yXKhhtd8
राजस्थान में उस नहर का नाम तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के नाम पर रख दिया गया। जबकि उसे राजस्थान के लोकप्रिय राजा रहे गंगा सिंह ने बनवाना शुरू किया था। बीकानेर के रेगिस्तानी इलाक़ों से लोगों को गुजरने में असुविधा हो रही थी, इसीलिए राजा गंगा सिंह ने 1927 में वहाँ नहर का निर्माण करवाया था। उसका नाम गंगनहर रखा गया था। इसके बाद बीकानेर-जैसलमेर के रास्ते पर एक और नहर के निर्माण की योजना तैयार की गई, जिस पर धन के आभाव में उस समय ग्रहण लग गया था। राजा ने तो उसका नक्शा तक बनवा दिया था।
बाद में नहर बना भी और क्रेडिट कॉन्ग्रेस ने लूटा, नाम इंदिरा गाँधी का हुआ। आज भारत के सबसे लंबे कैनाल का नाम उसी व्यक्ति के नाम पर नहीं है, जिसने इसका सपना देखा, जिसने इस पर काम शुरू करवाया था। पंजाब से लेकर बीकानेर तक जिसके नाम की कभी तूती बोलती थी और सम्मान में लोगों के सर अपने आप झुक जाते थे, उस हस्ती को उसके काम के क्रेडिट से भी वंचित कर दिया गया। बीकानेर रियासत की राजकुमारी राज्यश्री भी कहती हैं कि नेताओं ने राजा गंगासिंह द्वारा किए गए कार्यों को भुला दिया।