झारखंड में विधानसभा चुनावों के बीच असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने शुक्रवार को स्कूलों में साप्ताहिक छुट्टी के मुद्दे को सियासी बहस का केंद्र बना दिया है। उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि अगर नमाज पढ़ने के लिए शुक्रवार को स्कूलों में छुट्टी दी जा सकती है, तो हनुमान चालीसा पढ़ने के लिए मंगलवार को क्यों नहीं?
हिमंत बिस्वा सरमा ने झारखंड में कहा, “हम हिंदू सांप्रदायिक नहीं हैं। संविधान निर्माण के समय हिंदू नेताओं ने बड़ा दिल दिखाकर रविवार को राष्ट्रीय अवकाश का समर्थन किया, लेकिन अब शुक्रवार को स्कूल बंद किए जा रहे हैं। यह कहाँ तक सही है?” उनका कहना है कि “अगर मुस्लिम समुदाय के लिए शुक्रवार को स्कूल बंद किए जा सकते हैं, तो हिंदू बच्चों के लिए मंगलवार को क्यों नहीं?”
हिमंत बिस्वा सरमा का कहना है कि यह केवल धार्मिक पक्षपात का मामला नहीं है, बल्कि इससे समाज में असमानता और तनाव पैदा हो रहा है। उन्होंने कहा, “हमने कभी सांप्रदायिक सोच नहीं रखी, लेकिन दूसरों की माँगों के सामने हमारी परंपराओं को नजरअंदाज किया जा रहा है।”
सरमा ने अपने बयान को एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर भी साझा करते हुए राज्य की जेएमएम-कॉन्ग्रेस सरकार को घेरा। सरमा का आरोप है कि यह छुट्टी तुष्टिकरण की राजनीति का हिस्सा है।
JMM-Cong सरकार से पूछना चाहता हूँ – अगर नमाज़ पढ़ने के लिए छुट्टियां मिल सकती हैं, तो हनुमान चालीसा पढ़ने के लिए छुट्टी क्यों नहीं मिलती?@BJP4Jharkhand pic.twitter.com/GHEPQewNkv
— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) November 15, 2024
यह विवाद नया नहीं है। झारखंड और बिहार के कई जिलों में शुक्रवार को साप्ताहिक छुट्टी देने की परंपरा पिछले कुछ वर्षों से चली आ रही है। झारखंड में यह मुद्दा पहली बार तब उभरा जब जामताड़ा और दुमका के 33 स्कूलों में शुक्रवार को साप्ताहिक छुट्टी घोषित की गई। इसके बाद, मामला बिहार के किशनगंज तक पहुँचा, जहाँ 37 स्कूलों ने इसी परंपरा को अपनाया।
गौरतलब है कि झारखंड में दो चरणों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, 13 नवंबर के बाद अब 20 नवंबर को दूसरे चरण के मतदान होंगे। वहीं, वोटों की गिनती 23 नवंबर को होगी। बीजेपी ने झारखंड विधानसभा के लिए बीजेपी का सह-प्रभारी बनाया गया है। इस बीच, झारखंड में विधानसभा चुनाव के दौरान शुक्रवार की छुट्टी और हनुमान चालीसा पर बहस ने सियासत को गरमा दिया है। अब देखना यह होगा कि क्या यह मुद्दा चुनावी नतीजों को प्रभावित करेगा, या सिर्फ एक विवाद बनकर रह जाएगा।