नहीं। भाजपा वाले, “भक्त”, ‘फ़ासिस्ट’ जितना भी कहें, आप यह कतई मत मानिएगा कि ऊपर लगी तस्वीर पाकिस्तान के झंडे की है। यह उस राजनीतिक दल के झंडे की है, जिसे पाकिस्तान बनाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना और उनकी जिहादी पार्टी ऑल इंडिया मुस्लिम लीग का वारिस कहा जाता है। यह वह पार्टी है जिसका तकनीकी तौर पर तो नाम ‘इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग’ है, लेकिन अपनी पूर्वज जिन्ना वाली पार्टी की तरह अपने पूरे नाम की जगह केवल ‘मुस्लिम लीग’ कहलवाना पसंद करती है।
इसी पार्टी ने खुद और अपने 4 सांसदों के मार्फ़त नागरिकता विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। गौरतलब है कि 9 घंटे तक चली बहस के बाद कल रात को राज्य सभा ने नागरिकता विधेयक को मंज़ूरी दे दी है, और इसके कानून बनने में केवल राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर भर की देर है। इस बिल से औपनिवेशिक काल से पहले के अखंड भारत में जिहादी बहुसंख्यकों के सताए हुए पंथिक/मज़हबी अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता के लिए तरजीह देने और इसकी प्रक्रिया को अन्य के मुकाबले सरल करने के प्रावधान हैं।
जिन्ना के साथ नूरा कुश्ती, लेकिन नीतियाँ भारत में पाकिस्तान बनाने वाली
इसे बनाने वाले मुहम्मद इस्माइल ने पहले तो जिन्ना के साथ गलबहियाँ कर पाकिस्तान आंदोलन और इसके लिए हुए हत्याकांड की साज़िशों में जम कर हिस्सेदारी की, लेकिन जिन्ना के दार-उल-इस्लाम में खुद जा कर नहीं बसे। उनके समर्थक इसे ‘हृदय-परिवर्तन’ बताते हैं, कहते हैं कि उन्हें ‘सेक्युलरिज़्म की ज़रूरत’ समझ में आ गई।
कितनी समझ में आई, इसका मुज़ाहिरा इस तथ्य से होता है कि एक तरफ़ इनके वेबसाइट पर खुद को परिभाषित करने में तीन बार ‘सेक्युलरिज़्म’ शब्द का प्रयोग हुआ है, और दूसरी ओर इस्माईल की ‘उपलब्धियाँ’ ऐसी हैं कि लगेगा किसी पाकिस्तानी नेता की बात हो रही है- शरीयत को जारी रखना, बाबरी मस्जिद के पक्ष में घेरेबंदी करना, शाहबानो मामले के फैसले के खिलाफ लड़ना, हिन्दुओं के मंदिरों को तोड़ कर बनी मस्जिदों की पैरवी आदि।
इन विरोधाभासों से इस मुस्लिम लीग और मुहम्मद इस्माईल की असलियत साफ़ है- गज़वा-ए-हिन्द के जिस जिहादी प्रोजेक्ट और 1200 साल के सपने का पाकिस्तान पहला कदम था (न कि परिणति और अंत), वह जारी रखने के लिए सेक्युलरिज़्म का धतूरा चाट धुत पड़े काफ़िरों के बीच अल्लाह का ‘सच्चा’ बंदा होना आवश्यक था, और यही भूमिका निभाने के लिए मुहम्मद इस्माईल ने मुस्लिम लीग बनाई। 2003 में हुए केरल के मराड में हुए सामूहिक हत्याकांड में इसका नाम हत्याकांड की जाँच के लिए बने थॉमस पी जोसेफ़ आयोग की रिपोर्ट में आया। आयोग के मुताबिक मुस्लिम लीग न केवल इसकी योजना बनाने, बल्कि उसे अमली जामा पहनाने में भी हिस्सेदार थी। इसके बाद 2017 में सीबीआई के हत्थे भी इसके दो नेता इसी मामले में चढ़े।
फ़िलहाल
फ़िलहाल इस पार्टी की याचिका में भारत के पड़ोसी मुस्लिम देशों के सताए हुए अल्पसंख्यकों को तरजीही शरण देने को ‘असंवैधानिक’ बताया गया है। इसे अनुच्छेद 14 के खिलाफ, मुस्लिमों के साथ भेदभाव और विधेयक की पीछे की मंशा को ‘बदनीयती’ बताया है।
साथ ही आपत्ति जताई है कि इन देशों के इस्लामी अल्पसंख्यकों जैसे अहमदिया, शिया, हज़रा, रोहिंग्या को बाहर क्यों रखा गया है। इसके अलावा ऐसे ही सवाल अन्य पड़ोसी देशों श्री लंका, नेपाल, भूटान, म्याँमार और चीन के अल्पसंख्यकों को बाहर रखने के बारे में उठाया गया है।
लेकिन इस याचिका में सबसे आपत्तिजनक बात अफ़ग़ानिस्तान को वृहद् भारतीय सभ्यता से बाहर बताना है। इस याचिका में कहा गया है कि अफ़ग़ानिस्तान कभी भी भारत का हिस्सा नहीं था, जो सौ फ़ीसदी झूठ है। अफ़ग़ानिस्तान केवल ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं रहा, क्योंकि अंग्रेज़ कभी वहाँ के शासकों को हरा नहीं पाए। लेकिन इससे अफ़ग़ानिस्तान का ब्रिटेन के पहले के भारत से, आर्य और वैदिक सभ्यता से रिश्ता नहीं समाप्त हो जाता है।
योगी आदित्यनाथ ने कहा था ‘हरा वायरस’
राहुल गाँधी को जब अमेठी हाथ से छूटती दिखी तो वे मुस्लिम प्रभुत्व वाले केरल ही भागे। ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि उनकी पार्टी का गठबंधन है मुस्लिमों की अच्छी-खासी जनसंख्या वाले केरल में चल रही मुस्लिम लीग से। और लीग का चाँद-सितारे वाला हरा झंडा ही लहराता नज़र आया उनके स्वागत में, जब वे वायनाड पहुँचे नामांकन दाखिल करने।
इसी पर उत्तर प्रदेश के सीएम और गोरखधाम मठ के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने कह दिया कि कॉन्ग्रेस ‘हरे वायरस’ की चपेट में आ कर विलुप्त हो गई है, उनके नामांकन में कॉन्ग्रेस तो दिखी नहीं, केवल हरा-ही-हरा दिखा, तो इस पर मुस्लिम लीग नाराज़ हो गई थी।
इस झंडे और ‘मुस्लिम लीग’ नाम को लेकर एक बार पार्टी के कुछ ज़मीनी कार्यकर्ताओं ने चिंता जताई थी। उन्होंने साथ ही सुझाव दिया था कि झंडे का रंग बदल दिया जाए, और नाम में मुस्लिम की जगह ‘माइनॉरिटी’ कर दिया जाए। लेकिन कथित तौर पर पार्टी के वरिष्ठ नेतृत्व ने मना कर दिया। और सही भी है- यह वर्तमान झंडा जिहाद के पाक हुक्म, गज़वा-ए-हिन्द के सपने और दार-उल-इस्लाम व उम्मत के प्रति पहली वफ़ादारी संजो कर रखता है, बिन बोले याद दिलाता है। इतने ताकतवर प्रतीक को भला कौन हल्का करना चाहेगा?