कश्मीरी पंडितों ने भी अनुच्छेद 370 को लेकर आखिरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा ही दिया है। दो कश्मीरी पंडितों तेज कुमार मोज़ा और करिश्मा तेज कुमार मोज़ा ने केंद्र सरकार के अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट में खुद को मामले में एक पार्टी बनाए जाने की याचिका दायर की है। उनके अलावा ऐसी ही याचिका ऑल इंडिया कश्मीरी समाज नामक एक संगठन ने दायर की है। इन याचिकाओं में अनुच्छेद 370 हटाए जाने का समर्थन करते हुए इसे अस्थाई बताया गया है।
Two Kashmiri Pandits and an apex body of various associations formed by the community have moved the Supreme Court in support of the government’s decision to abrogate provisions of #Article370 that gave special status to #JammuAndKashmir.https://t.co/NBNWzALo40
— Economic Times (@EconomicTimes) October 26, 2019
याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रपति को अनुच्छेद 370 से ही एक पब्लिक नोटिफिकेशन के ज़रिए उसे निरस्त करने की शक्ति मिली हुई थी। ऑल इंडिया कश्मीरी समाज की याचिका में यह भी कहा गया है, “जम्मू-कश्मीर के भारत के गणराज्य में विलय की संधि बगैर शर्त थी और राज्य का इरादा हमेशा से भारत के गणराज्य के साथ पूर्ण विलय का रहा है। अनुच्छेद 370 एक अस्थाई प्रावधान था जिसे जोड़ने का मकसद राज्य में शांति, सुरक्षा और कानून व्यवस्था था।” याचिका में इसके अतिरिक्त जम्मू-कश्मीर में हमेशा ही चीन और पाकिस्तान की घुसपैठ का खतरा बने रहने की बात भी कही गई है। सुप्रीम कोर्ट ने 14 नवंबर 2019 की तारीख़ तय की है, नरेंद्र मोदी की भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को जम्मू-कश्मीर से हटाए जाने की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के लिए।
जस्टिस एनवी रमन की अध्यक्षता वाली 5-सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार को 5 अगस्त, 2019 को उठाए गए इस कदम को लेकर काउंटर एफिडेविट दाखिल करने की इजाज़त दे दी है। सरकार के निर्णय को चुनौती देने वालों में कई सारी राजनीतिक पार्टियाँ हैं जैसे नेशनल कॉन्फ़्रेंस, पीडीपी, सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ़्रेंस। इसके अलावा माकपा के नेता मोहम्मद यूसुफ़ तारिगामी और लोक सभा सांसद मोहम्मद अकबर लोन और रिटायर्ड जस्टिस हसनैन मसूदी ने भी इस निर्णय को चुनौती दी है।