केरल में वामपंथी संगठन किस तरह से गुंडागर्दी पर उतारू है यह बात तृतीय वर्ष के छात्र अखिल चंद्रन पर जानलेवा हमले से एक बार फिर उजागर हो गई। साथ ही राज्य की शासन व्यवस्था ने हमलावरों का बचाव करके अपनी दलगत राजनीति का प्रमाण भी दिया। दरअसल, पिछले महीने एक ख़बर सामने आई थी कि केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में कथित तौर पर एक छात्र के सीने में चाकू घोंप दिया गया था। जिस छात्र के साथ यह घटना घटित हुई थी वो बीए (राजनीति) तृतीय वर्ष का छात्र अखिल चंद्रन था। इस घटना के पीछे वामपंथी छात्र संगठन SFI (Student Fedration Of India) के कार्यकर्ताओं का हाथ था। चंद्रन के सीने में SFI के अध्यक्ष आर शिवरंजीथ ने चाकू मारा था, जबकि संगठन के सचिव एएन नसीम ने उसे (चंद्रन) पकड़ रखा था।
SFI is not a student’s party but a criminal gang. But then wherever communists gain a foothold, murders, torture and end of democracy follows. Hope SFI is banned by the government. https://t.co/TbjarBrvzB
— Abhinav Prakash (@Abhina_Prakash) August 4, 2019
इस घटना से गुस्साए लोगों ने विरोध स्वरूप SFI के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने के साथ-साथ दोषियों को सज़ा दिलाने की माँग भी उठाई थी। यह घटना काफ़ी दिनों तक सुर्ख़ियों में छाई रही। कॉलेज कैंपस में इस तरह का हिंसात्मक व्यवहार बेहद असाधारण है। अखिल चंद्रन ख़ुद भी SFI के लोकल कमेटी मेंबर है, जो फ़िलहाल ठीक है। लेकिन इस घटना से ब्रिटिश युग का यह कॉलेज सुर्ख़ियों में आ गया है।
इस कॉलेज के छात्र संगठन पर पिछले दो दशक से SFI का क़ब्जा है। राज्य में माकपा नीत LDF सरकार के लिए यह बड़ी शर्मिंदगी की बात है कि अखिल चंद्रन पर हमला करने वाले छ: गिरफ़्तार आरोपितों में से नसीम और शिवरंजीथ पुलिस कॉस्टेबल की भर्ती सूची की रैंकिंग में सबसे टॉप पर हैं।
इस मुद्दे पर विपक्षी दल कॉन्ग्रेस का कहना है कि इससे पता चलता है कि राज्य सरकार क़ानून और व्यवस्था पर माकपा की पकड़ को मज़बूत करने के लिए ‘समानांतर भर्ती केंद्र’ के रूप में SFI का उपयोग कर रही है। SFI ने अब कॉलेज में अपनी स्टूडेंस विंग को भंग कर दिया है।
इस कॉलेज के बारे में बता दें कि इसकी स्थापना वामपंथी 1866 में त्रावणकोर के शाही परिवार द्वारा की गई थी। इसमें पूर्व राष्ट्रपति के आर नारायण, पूर्व महाराष्ट्र गवर्नर पीसी अलेक्जेंडर, सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज फ़ातिमा बीवी समेत कई बड़े राजनेताओं, ब्यूरोक्रेट्स और साहित्यकारों ने पढ़ाई की है।
ख़बर के अनुसार, 1970 के दशक में, SFI संगठन एक मामूली छात्र संगठन था, जबकि कॉन्ग्रेस का ‘केरल स्टूडेंट यूनियन’ (KSU) छात्र संगठन राजनीति पर हावी था। लेकिन, 80 के दशक में चीजें बदल गईं जब SFI ने कॉलेजों को स्वायत्तता देने के ख़िलाफ़ हिंसक विरोध प्रदर्शन किए।
कुछ वर्षों में, कॉलेज पर धीरे-धीरे SFI का अच्छा-ख़ासा दबदबा बन गया। जिसे CPI (M) और उसकी युवा शाखा DFYI ने मज़बूत बनाया। KSU नेता को आखिरी बार कॉलेज यूनियन में 1986 में चुना गया था।
कैंपस में एक SFI का दफ़्तर है जो टॉर्चर चैंबर के रूप में विख्यात है। यहाँ उन लोगों को प्रताड़ित किया जाता है जो SFI नेताओं की बात नहीं माानता। वर्ष 2000 में निषाद के साथ हिंसात्मक घटना हुई थी जिसके बाद SFI को कैंपस में अपनी यूनिट भंग करनी पड़ गई थी। निषाद को उसी टॉर्चर चैंबर में ले जाया गया था जहाँ उसके साथ क्रूरता की सारी हदें पार करते हुए उसकी पीठ पर ‘SFI’ गोद दिया गया था।