केरल सरकार की अलग ही दुनिया है। इसका खुलासा RTI से हुआ है। केरल की राज्य सरकार ने क्यूबा के क्रांतिकारी फिदेल कास्त्रो की याद में लाखों रुपए खर्च कर दिए। हैरानी की बात यह थी कि सरकारी विभाग ने इतना भव्य आयोजन आम जनता के रुपयों से कराया।
आम जनता के पैसों की बर्बादी का खुलासा कोच्ची के रहने वाले के गोविंदन नम्पूथिरी द्वारा दायर की गई आरटीआई के जवाब में हुआ। आरटीआई में मिले जवाब के अनुसार राज्य सरकार ने क्यूबा के नेता की याद में 1,37,745 रुपए खर्च कर एक विशालकाय आयोजन तिरुअनंतपुरम स्थित विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल में कराया था।
एक लाख 37 हजार कोई बड़ी रकम नहीं है। लेकिन इस आयोजन को आवश्यकता से ज्यादा बड़ा बनाने के लिए राज्य सरकार ने जो किया, उसका जनहित से कोई सरोकार नहीं था। इस आयोजन के विज्ञापन में लगभग 26.7 लाख रुपए भी खर्च किए गए थे।
ख़बरों की मानें तो यह पहला ऐसा मौक़ा था, जब केरल की राज्य सरकार ने किसी समारोह में इतने बड़े पैमाने पर खर्च किया। पूरे राज्य के लगभग 70 समाचार पत्रों में इस कार्यक्रम का विज्ञापन प्रकाशित हुआ था। विज्ञापन में फिदेल कास्त्रो की तस्वीर अगले पन्ने पर छपी हुई थी।
फिदेल कास्त्रो की याद में यह आयोजन 29 नवंबर 2016 को कराया गया था। कारण – फिदेल कास्त्रो की मृत्यु 25 नवंबर 2016 को हुई थी। मतलब यह आयोजन एलडीएफ के केरल में सत्ता हासिल करने के ठीक कुछ महीने बाद हुआ।
गोविंदन नम्पूथिरी द्वारा दायर की गई आरटीआई को जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट ने जवाब 22 फरवरी साल 2017 को दिया था। जवाब में एक और हैरानी वाली बात यह थी कि इस आयोजन की देख-रेख खुद केरल के मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा की गई थी। आरटीआई लगाने वाले गोविंदन ने इस पर एक बड़ा सवाल यह भी उठाया था कि इस कार्यक्रम के संबंध में कोई सरकारी सूचना तक जारी क्यों नहीं की गई थी।
उन्होंने लिखा, “केरल सरकार ने एक ऐसे नेता की सालगिरह इतने धूमधाम से क्यों मनाई, जिसने हमारे देश और केरल के लिए कुछ नहीं किया है। जबकि ऐसा कोई नियम या परंपरा भी नहीं है कि विदेशी नेताओं के लिए इतना बड़ा आयोजन किया जाएगा। इस मामले की जाँच अनिवार्य रूप से होनी चाहिए, यह पूरी तरह सत्ता का दुरुपयोग है। ऐसे किसी भी कार्यक्रम से आम जनता का क्या भला हो सकता है?”
आरटीआई का जवाब (संख्या: 4384/C2/2017/IP&PR) सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा 9 मई 2017 को जारी किया गया था। उसमें यह बताया गया है कि 2,32,560 रुपए मीडिया को दिए गए थे, जिन्होंने इसका बिल जमा किया था। इसके अलावा उन 70 मीडिया संस्थानों की सूची भी जारी की गई थी, जिन्हें विज्ञापन दिया गया था।
रिपब्लिक टीवी ने इस मामले में की जाँच करते हुए उन मीडिया संस्थानों की सूची तैयार की थी, जिनके पास भुगतान की रसीद मौजूद थी। इन रसीदों से साफ़ हो गया था कि यह सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के निदेशालय ने जारी किया था।
इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए राजनीतिक विश्लेषक श्रीजीथ पैनिकर ने कहा, “एक तरफ सरकार ऐसा कह रही है कि वह आर्थिक रूप से बहुत कमज़ोर है। दूसरी तरफ वह ऐसे कार्यक्रम पर खर्च कर रही है, जिसका न तो कोई मतलब है और न ही कोई वजह। इसका मतलब साफ़ है कि सरकार खुद को कितना मज़बूत दिखाती है, असल में उतनी मज़बूत है नहीं। क्या लोगों को ऐसा मान लेना चाहिए कि सच्चाई कहीं बीच में दबी हुई है?”
गोविंदन ने इस मुद्दे पर कहा, “साल 2016 में इस सरकार ने कहा था कि उन्हें वेलफेयर पेंशन देने में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। 70 समाचार पत्र ऐसे हैं, जिनके बारे में हम जानते हैं, मुझे इस बात पर शक है कि ऐसे न जाने कितने और समाचार पत्र होंगे, जिनके बारे में हम नहीं जानते हैं। सरकार एक विदेशी नेता को याद करने के लिए एक दिन के भीतर इतने सारे रुपए कैसे खर्च कर सकती है?”