कम्युनिस्ट नागरिकता विधेयक संशोधन के विरोध में अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं- संसद से ज़्यादा सड़क पर। संसद के अंदर तो कॉन्ग्रेस, तृणमूल जैसे इक्का-दुक्का दल इस्लामी वोटों के लालच में साथ दे ले रहे हैं, लेकिन सड़कों पर, आम जनता के बीच इस मुद्दे पर कम्युनिस्ट वैसे ही हाशिए पर पटक दिए गए हैं, जैसे चुनावी राजनीति में उनके अधिकांश प्रत्याशी जमानत भी नहीं बचा पाते।
यही आईआईटी बॉम्बे में हो रहा है, जहाँ इस बिल के समर्थक बहुसंख्यक छात्रों के छुट्टी में घर गए होने का फायदा उठाकर खाली कैम्पस में कम्युनिस्ट फ़ोटो खिंचा रहे हैं ताकि लोगों को लगे कि कैम्पस ही इसके विरोध में है। यही हाल उनके आखिरी चुनावी गढ़ केरल में हो रहा है, जहाँ उनके खुद के विरोध प्रदर्शनों का खुद का ‘प्रदर्शन’ फीका रहने पर कम्युनिस्ट किसी भी सार्वजनिक स्थल में घुस जा रहे हैं, वहाँ चल रहे कार्यक्रमों में व्यवधान डाल कर 10-5 मिनट प्रदर्शन कर रहे हैं, और उन दस मिनटों की तस्वीरों से ऐसा दिखा रहे हैं मानो उन्हें भारी जनसमर्थन दे रहे हैं।
यही प्रपंच उन्होंने तिरुवनंतपुरम में चल रहे अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म फ़ेस्टिवल ऑफ़ केरल (IFFK) के दौरान घुस कर किया। टैगोर थिएटर में फिल्म देखने इकठ्ठा हुए लोगों के बीच माकपा के कार्यकर्ता अपनी तख्तियाँ लिए हुए, नारे लगाते घुस गए और उसकी प्रतियाँ जलाने लगे।
IFFK turns protest venue against Citizenship Bill, copies of bill burnthttps://t.co/XcIEXFN93n
— The News Minute (@thenewsminute) December 11, 2019
उन्हें इस तरह किसी दूसरे के कार्यक्रम में व्यवधान उत्पन्न करने की शह मिली भीड़ में माकपा पोलितब्यूरो के सदस्य एमए बेबी की उपस्थिति से, जो उनके साथ लग लिए। इस दौरान बयानबाजी में वह इतना बह गए कि हिन्दू धर्म ही नहीं, आस्था के ही औचित्य पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए। “मैं उस जगह खड़ा हूँ जहाँ सौ साल पहले श्री नारायण गारू (समाज सुधारक) ने कहा था कि इंसान को आस्था की ज़रूरत ही नहीं है। इंसान की आस्था की ‘इंसान’ है, इंसान की जाति ‘इंसान’ है। नागरिकता विधेयक में खतरा यह उत्पन्न हो रहा है कि भारत के इतिहास में पहली बार आस्था को भारत का नागरिक होने के एक पैमाने के तौर पर माना जाएगा। यहाँ तिरुवनंतपुरम में तो लोगों की आस्था पूछना ही गलत माना जाता है। भारतीय संविधान भी इसे सम्मलित करता है।”
गौरतलब है कि इसके पहले आईआईटी बॉम्बे के बारे में भी हमने हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें बताया गया है कि कैसे असल में छात्रों का समर्थन पाने में असफल होने के बाद वामपंथी छात्र संगठन और फैकल्टी प्रपंच और हथकंडों के ज़रिए यह भ्रामक करने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें संस्थान में बहुत अधिक समर्थन मिल रहा है।