Wednesday, September 18, 2024
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शफी परम्बिल जीतकर बन गया लोकसभा का सांसद, पर किसने फैलाई हिंदुओं के खिलाफ घृणा यह आज भी गुत्थी: जानिए क्या है केरल का ‘काफिर’ स्क्रीनशॉट केस

विवादित पोस्ट में लिखा था - "शफी एक मुस्लिम है जो दिन में 5 बार नमाज पढ़ता है और दूसरी महिला काफिर है। वोट देने से पहले जरूर सोचना कि किसे वोट देना चाहिए। वोट हमारे अपनों के लिए करिए।"

देश में लोकसभा चुनाव समाप्त हुए 2-3 माह से ज्यादा बीत गए हैं लेकिन केरल के वडकारा लोकसभा क्षेत्र में शुरू हुआ ‘काफिर’ पोस्ट वाला विवाद अभी तक नहीं थमा है। सीपीआईएम और कॉन्ग्रेस एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। सीपीआईएम का कहना है कि कॉन्ग्रेस ने मजहब के नाम पर वोट माँगा जबकि कॉन्ग्रेस का कहना है कि सीपीआईएम ने चुनावों में ध्रुवीकरण के लिए ऐसा खुद की। अब पुलिस को जाँच करते हुए 100 दिन से ज्यादा बीत गए हैं लेकिन आरोपित का पता नहीं चल पा रहा है। पुलिस ने इस केस में मेटा तक को आरोपित बना दिया है। फिर भी कोई सुराग नहीं मिला। बार-बार सारी जाँच उन्हीं लोगों पर आकर रुक जाती है जिन्होंने इस मामले में आरोप लगाए थे

‘काफिर’ स्क्रीनशॉट मामला क्या है?

चुनावों के बीच वडकारा में वायरल हुए काफिर वाले स्क्रीनशॉट में दो प्रत्याशियों के नाम थे। एक कॉन्ग्रेस के शफी परम्बिल की (जो अब जीतकर सांसद बन चुके हैं) और दूसरी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की प्रत्याशी ‘के के शैलजा’ का। सामान्य प्रचार करना हर प्रत्याशी के लिए उस समय आम था, लेकिन इस पोस्ट में साफ-साफ तौर पर मजहब का मुद्दा उठाया गया था इसलिए इस पर सबका ध्यान गया। पोस्ट में लिखा था “शफी एक मुस्लिम है जो दिन में 5 बार नमाज पढ़ता है और दूसरी महिला काफिर है। वोट देने से पहले जरूर सोचना कि किसे वोट देना चाहिए। वोट हमारे अपनों के लिए करिए।”

कैसे खुला काफिर स्क्रीनशॉट केस?

ऑन मनोरमा की रिपोर्ट के मुताबिक, इस पोस्ट को लेकर ये दिखाते हुए कि कैसे मजहब के नाम पर वोट माँगा जा रहा है, 25 अप्रैल को CPIM के यूथ विंग डीवाईएफआई ब्लॉक कमेटी के अध्यक्ष रिबेश आरएस ने इसे ‘रेड एनकाउंटर’ ग्रुप में डाला। इसके बाद अमल राम नाम के शख्स ने इसे उठाकर रेड बटालियन नाम के ग्रुप में डाला। फिर मनीष नाम के लड़के ने इसका स्क्रीनशॉट लिया और दोपहर 3 बजे स्क्रीनशॉट को 1 लाख फॉलोवर वाले ‘अंबादिमुक्कु सखक्कल’ फेसबुक पेज पर प्रसारित किया गया।

पेज पर स्क्रीनशॉट पोस्ट करने के बाद मनीष को कुछ शंका हुई तो कुछ देर बाद उन्होंने उसे डिलीट कर दिया, लेकिन बाद में पता चला कि तब तक इसे कई नेता उठा चुके थे। पोराली शाहजी ने इसे अपने 8 लाख फॉलोवर वाले अकॉउंट से शेयर किया। इसके बाद सीपीएम स्टेट कमेटी की सदस्य एमएलए केके ललिता ने भी इसे साझा किया। धीरे-धीरे ये हर जगह फैल गया। इस बीच सीपीआई (एम) के नेताओं ने इस पोस्ट का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए हर जगह फैलाया कि कैसे शफी के मजहब के नाम पर कॉन्ग्रेस राज्य में वोट माँग रही है। इस दौरान IUML और कॉन्ग्रेस दोनों पार्टियों की आलोचना हुई। बताया गया कि ये पोस्ट मुस्लिम स्टूडेंट्स फेडरेशन के कोझिकोड जिला सचिव मुहम्मद खासिम पीके द्वारा ‘यूथ लीग नेदुम्ब्रमन्ना’ व्हॉट्सएप ग्रुप में फैलाया गया।

पोस्ट के बाद हुई तीन शिकायतें

आरोप के बाद IUML और कॉन्ग्रेस ने तुरंत इसका विरोध किया और कहा कि ये सीपीएम ने खुद किया है। उनका उद्देश्य मतदाताओं का ध्रुवीकरण करना है। खासिम का कहना था कि उसने तो खुद पहली बार ये संदेश 25 अप्रैल को अपने नाम से सीपीएम समर्थक फेसबुक पेज पर प्रसारित होते देखा जिसके बाद उन्होंने इस मामले में वडकारा थाने में जाकर शिकायत दी।

हालाँकि तब तक इस मामले में सीपीएम नेता सी भास्करन शिकायक दर्ज करवा चुके थे। केस (410/2024) में उन्होंने खासिम के खिलाफ समाज में नफरत फैलाने का आरोप लगाया था। इसमें आईपीसी की धारा 153 ए के तहत केस दायर करवाया था। इसके बाद एक अलग मामला 25 अप्रैल की देर रात निदुंबरमन्ना यूथ लीग शाखा समिति के महासचिव इस्माइल एमटी की शिकायत पर दर्ज किया गया, जिन्होंने पुलिस को बताया कि जिस व्हॉट्सएप को लेकर बताया जा रहा है कि पोस्ट वायरल हुआ वो तो असल में है ही नहीं।

कैसे शुरू हुई कार्रवाई

इस तरह इस मामले में तीन अलग-अलग शिकायतें सामने आईं। पुलिस ने अपनी जाँच शुरू की लेकिन कई दिन बीत जाने के बाद भी इसमें कोई कार्रवाई नहीं हुई। खासिम ने इसके बाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और माँग की कि इस केस में पुलिस को स्वतंत्र और निष्पक्ष जाँच करने के निर्देश दिए जाएँ। कोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिए कि वो 31 मई तक प्रोग्रेस रिपोर्ट दें। पुलिस ने इस बाबत 10 जून को एक रिपोर्ट दी जिसमें बताया गया कि उनकी जाँच में खासिम का नाम कहीं से कहीं नहीं मिल रहा कि उसने ऐसा पोस्ट पोस्ट बनाया उलटा उनकी जाँच घूम-फिकर सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के नेताओं के फोन नंबरों पर ही रुक रही है।

जाँच के दौरान पुलिस ने 28 जून को फोन नंबरों के जरिए ‘अंबादिमुक्क साखक्कल कन्नूर’ के दो एडमिन की पहचान की। वे मनीष और सजीव थे। 29 जून को पुलिस ने मनीष का बयान लिया, जिसने बताया कि उसे ‘रेड बटालियन’ नाम के एक व्हाट्सएप ग्रुप से स्क्रीनशॉट मिला था। मनीष ने पुलिस को बताया कि उसने एक घंटे के भीतर ही पोस्ट डिलीट कर दिया क्योंकि
उसे स्क्रीनशॉट की प्रामाणिकता पर संदेह हो गया था। (कुछ हफ़्तों बाद, उसने पेज भी निष्क्रिय कर दिया)। हालाँकि फिर भी पुलिस ने मनीष के iPhone X की जाँच की और उसके बयान की पुष्टि की।

30 जून को पुलिस ने अमल राम का बयान लिया। उसने पुलिस को बताया कि उसे रेड एनकाउंटर नाम के दूसरे वॉट्सऐप ग्रुप से स्क्रीनशॉट मिला था। अमल के iPhone 13
Pro की भी जाँच की गई। स्क्रीनशॉट को रिबेश ने 25 अप्रैल को दोपहर 2.13 बजे पोस्ट किया था। पुलिस ने रिबेश के रेडमी नोट 7 फोन की जाँच की, लेकिन यह पता नहीं लगा
पाई कि उसे स्क्रीनशॉट कहाँ से मिला। पुलिस ने उससे जब सवाल किए किए तो उसने जवाब बस यही दिया कि उसे इसका स्रोत नहीं पता।

काफिर स्क्रीनशॉट मामले में आरोपित कौन?

बता दें कि पुलिस को इस मामले की जाँच करते-करते 2-3 महीने बीत गए हैं लेकिन ये अभी तक ये नहीं पता चला है कि किसने चुनाव के माहौल में सांप्रदायिकता भड़काने के लिए ये पोस्ट बनाया था। पुलिस इस मामले में ‘मेटा’ कंपनी को भी आरोपित बना चुकी है कि वो पता नहीं लगा पा रहे सांप्रदायिक पोस्ट किसने साझा किया।

13 अगस्त को भी इस मामले में कोर्ट में सुनवाई हुई। वडकारा स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) ने कहा कि पुलिस ने डीवाईएफआई वडकारा ब्लॉक कमेटी के अध्यक्ष रिबेश आरएस का मोबाइल फोन फॉरेंसिक जाँच के लिए जब्त कर लिया है, क्योंकि उन्हें कथित रूप से मनगढ़ंत संदेश फैलाने वाले शुरुआती लोगों में से एक पाया गया है।

पुलिस ने पोराली शाजी के एडमिन वहाब नामक व्यक्ति का फोन भी जब्त कर लिया है जो एक गुमनाम लेकिन मुखर रूप से सीपीएम समर्थक फेसबुक पेज है। अभी तक बताया जा रहा है कि पुलिस ने चार सीपीएम समर्थकों का मामले में बयान दर्ज किया। वहीं खासिम ने कहा कि पुलिस को रिबेश को आरोपित बनाना चाहिए था क्योंकि क्यों उसने स्क्रीनशॉट का स्रोत बताने से इनकार कर दिया था। इसके अलावा खासिम के वकील व आईयूएमएल के राज्य महासचिव मोहम्मद शाह ने भी कहा कि जब पता चल गया है कि 153ए के तहत अपराध हुआ तो इस मामले में एफआईआर होनी चाहिए।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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