89 वर्षीय कल्याण सिंह की हालत नाजुक है और वो कई दिनों से अस्पताल में भर्ती हैं। उन्हें लाइफ-सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया है। ‘संजय गाँधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज’ में उनका इलाज चल रहा है। उनके श्वसन तंत्र की स्थिति गिरती जा रही है, इसीलिए उन्हें विशेष वेंटिलेटर पर रखा गया है। उनकी हालत अस्थिर है। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा तक ने अस्पताल में जाकर उनसे मुलाकात की।
उत्तर प्रदेश जनसंख्या के हिसाब से भारत का सबसे बड़ा राज्य है। वहीं राजस्थान क्षेत्रफल के हिसाब से भारत का सबसे बड़ा राज्य है। पहले राज्य के कल्याण सिंह मुख्यमंत्री रहे हैं तो दूसरे राज्य में उन्होंने राज्यपाल का पद संभाला। भाजपा नेता कल्याण सिंह को राम मंदिर के कारसेवकों पर गोली चलवाने का आदेश न देने के लिए भी जाना जाता है। साथ ही हिन्दू धर्म के प्रति उनकी जो प्रतिबद्धता थी, उसके कारण वो जीवन भर कट्टरपंथियों के निशाने पर रहे हैं।
मुख्यमंत्री के रूप में कल्याण सिंह का कार्यकाल एक बार मात्र डेढ़ साल (जून 1991 से दिसंबर 1992) तो एक बार मात्र 5 महीने (सितंबर 1997 से फरवरी 1998) तो तीसरी और अंतिम बार मात्र 1 वर्ष और 9 महीने (फरवरी 1998 से नवंबर 1999) का रहा। टुकड़ों में उनका मुख्यमंत्री का कार्यकाल राजनीतिक व सामाजिक उथल-पुथल के हिसाब से उत्तर प्रदेश के इतिहास के सबसे संवेदनशील अवधियों में से एक गिना जा सकता है।
उनके पहले कार्यकाल के दौरान ही बाबरी विध्वंस हुआ। मुख्यमंत्री बनने के बाद ही उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ अयोध्या जाकर ये संकल्प लिया था कि वहाँ एक भव्य राम मंदिर का निर्माण कराया जाएगा। अयोध्या को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की कवायद उन्होंने तभी शुरू कर दी थी और इसके लिए भूमि अधिग्रहण भी किया गया था। उनके कार्यकाल के दौरान ही राम मंदिर की ‘आधारशिला’ रखी गई थी।
कल्याण सिंह ऐसे नेता रहे हैं, जिन्होंने बाबरी विध्वंस के बाद राम मंदिर के लिए अपनी सरकार को कुर्बान करने से भी गवारा नहीं किया। उन्होंने भाजपा को 1991 विधानसभा चुनाव में 57 से 221 सीटों तक पहुँचाया। पूर्ण बहुमत की सरकार में वो मुख्यमंत्री थे। लेकिन, उन्होंने बाबरी विध्वंस के बाद इस्तीफा देकर जनता के दरबार में जाना उचित समझा। उनके इस्तीफे के बाद केंद्र सरकार ने राज्य की सरकार को भंग कर दिया।
उनका प्रभाव कुछ ऐसा था कि 1993 में उन्होंने अलीगढ़ के अतरौली और कासगंज, दो अलग-अलग जिलों के विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ा, और दोनों जगह जीत दर्ज करने में कामयाब रहे। अतरौली से उनका खास नाता था, जहाँ से वो 10 बार (मार्च 1967 से फरवरी 1980, मार्च 1985 से मई 2007 तक) विधायक रहे। 22 वर्षों तक उन्होंने इस विधानसभा क्षेत्र की सेवा की। वहीं अपने अंतिम संसदीय कार्यकाल के लिए उन्होंने 2009 में एटा को चुना।
ये दोनों क्षेत्र आज भी उन्हें सिर-आँखों पर रखते हैं, तभी उनके बेटे राजवीर सिंह लगातार दो बार से एटा से सांसद हैं और पोते संदीप सिंह 2017 में अतरौली से जीत दर्ज कर के योगी आदित्यनाथ की सरकार में शिक्षा मंत्री का दायित्व संभाल रहे हैं। स्कूलों में भारत माता की प्रार्थना के साथ छात्रों को राष्ट्रवाद की भावना जगाने का काम हो या रोल कॉल के समय ‘यस सर’ की जगह ‘वंदे मातरम्’ कहने पर जोर, उन्होंने छात्रों में देश के प्रति प्यार जगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
दूसरी बार उनकी सरकार कांशीराम और मायावती की पार्टी बसपा के समर्थन से बनी थी। बसपा ने अक्टूबर 1997 में अपना समर्थन वापस ले लिया। लेकिन, कॉन्ग्रेस के 21 असंतुष्ट विधायकों ने अलग पार्टी बना कर कल्याण सिंह की सरकार को समर्थन दिया, जिससे उनकी सरकार बच गई। हालाँकि, जिस नरेश अग्रवाल के नेतृत्व में ये विधायक आए थे, उन्होंने कॉन्ग्रेस को समर्थन दे दिया और जगदंबिका पाल की सरकार में वो उप-मुख्यमंत्री बन बैठे।
लेकिन, इलाहांबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद वो सदन में बहुमत साबित करने में सफल रहे और नरेश अग्रवाल भी वापस भाजपा के साथ आ गए। कल्याण सिंह ने 2004 का लोकसभा चुनाव बुलंदशहर से लड़ा था। इस तरह उन्होंने 4 अलग-अलग जिलों से कई चुनाव लड़े और सभी में जीत दर्ज की। भाजपा के अलावा उन्होंने अपनी पार्टी और निर्दलीय भी चुनाव लड़ा, लेकिन हारे नहीं। बीच में कुछ दिनों के लिए भाजपा से उनका मोहभंग हुआ था, लेकिन जनवरी 2004 में फिर पार्टी में वापस आ गए।
2009 में भी उन्होंने भाजपा से किनारा कर लिया था और अगले ही साल ‘जन क्रांति पार्टी’ का गठन किया, लेकिन 2013 में उन्होंने इस पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें पहले हिमाचल प्रदेश और फिर राजस्थान का राज्यपाल नियुक्त किया गया। उन्होंने राजस्थान के राज्यपाल के रूप में 5 वर्षों का कार्यकाल पूरा किया। राज्यपाल का कार्यकाल पूरा करते वो फिर भाजपा में शामिल हुए।
6 Dec 1992 was a day of national pride, not national shame. I have no regret, no repentance, no sorrow, no grief.
— Priyanka (Astrology Guidance) (@AstroAmigo) January 5, 2021
– Shri Kalyan Singh.
His contribution in #RamMandir Andolan is unforgettable. Pranam to a great Rambhakt on his birthday. 🙏
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कल्याण सिंह राम मंदिर के कारसेवकों पर गोली न चलवाने के अपने फैसले पर हमेशा कायम रहे और कभी भी इसे लेकर कोई दुःख नहीं जताया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि बाबरी विध्वंस को लेकर उनके मन में न कोई पछतावा है, न कोई शोक है, न कोई खेद है और न ही कोई पश्चाताप का भाव है। उन्होंने ये ज़रूर कहा कि बाबरी को बचाने के लिए पूरे सुरक्षा के इंतजाम किए गए थे, लेकिन अधिकारियों को स्पष्ट आदेश था कि एक भी श्रद्धालु पर गोली नहीं चलनी चाहिए।
कल्याण सिंह लोधी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और उन्हें राजनीति में लाने का श्रेय 1977 में जनता पार्टी की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हरिश्चंद्र श्रीवास्तव को जाता है। उनके बेटे सौरभ श्रीवास्तव वाराणसी के कैंट से भाजपा विधायक हैं। बहुत कम लोगों को पता है कि अतरौली में जन्मे कल्याण सिंह को 1962 में ही जनसंघ से विधानसभा का टिकट मिल गया था, लेकिन पहले चुनाव में ुनेहँ हार मिली थी।
मात्र एक बार कॉन्ग्रेस के अनवर खान ने उन्हें 1980 में अतरौली से हराया था, लेकिन 1985 में उन्होंने जोरदार वापसी की। कल्याण सिंह को एक कड़ा प्रशासक माना जाता था। उन्होंने हमेशा कहा कि वो किसी भी जाँच या कार्रवाई के लिए तैयार हैं, लेकिन राम मंदिर का संकल्प बना रहेगा। उन्हें एक दिन के लिए तिहाड़ जेल में भी रखा गया था। विश्लेषक कहते हैं कि अगर परिस्थितियाँ हल्की अलग होतीं तो अटल बिहारी वाजपेयी के बाद भाजपा की जिम्मेदारी उनके कंधे ही आती।