महाराष्ट्र में इन दिनों छत्रपति संभाजी महाराज और औरंगजेब को लेकर सियासी पारा गर्म है। महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजित पवार ने छत्रपति संभाजी महाराज पर टिप्पणी की थी जिसे लेकर उनकी चौतरफा आलोचना होने लगी। इसी बीच अजित पवार के बचाव में एनसीपी नेता जितेंद्र आव्हाड उतर आए हैं। जितेंद्र आव्हाड ने एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा कि अगर औरंगजेब क्रूर या हिंदू विरोधी होता तो वह उस मंदिर को भी तोड़ देता जहाँ संभाजी महाराज की आँखें निकाल दी गई थीं।
“छत्रपति संभाजी धर्मवीर थे या नहीं?” – महाराष्ट्र की सियासत में इस सवाल पर घमासान मचा हुआ है। इस पर तर्क और कुतर्क रखे ही जा रहे थे कि नेता प्रतिपक्ष अजित पवार के बचाव में उतरे एनसीपी नेता जितेंद्र आव्हाड ने औरंगजेब को लेकर विवादित टिप्पणी कर दी। जितेंद्र ने कहा, “छत्रपति संभाजी महाराज को बहादुरगढ़ लाया गया, जहाँ उनकी आँखें निकाल दी गईं। बहादुरगढ़ किले के पास एक विष्णु मंदिर था। अगर औरंगजेब क्रूर या हिंदू विरोधी होता तो वह उस मंदिर को भी तोड़ देता।”
Thane | NCP is insulting Chhatrapati Sambhaji Maharaj and praising Aurangzeb. Aurangzeb destroyed many temples in Maharashtra and tortured women: Maharashtra CM Eknath Shinde (02.01) pic.twitter.com/gsmcgcYGpM
— ANI (@ANI) January 3, 2023
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने एनसीपी नेता जितेंद्र आव्हाड के बयान पर पलटवार किया। सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा कि एनसीपी छत्रपति संभाजी महाराज का अपमान कर रही है और औरंगजेब की तारीफ कर रही है। उन्होंने कहा कि औरंगजेब ने महाराष्ट्र में कई मंदिरों को तोड़ा और महिलाओं पर अत्याचार किया।
इससे पहले महाराष्ट्र विधानसभा के शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन एनसीपी नेता अजित पवार ने कहा था कि छत्रपति संभाजी महाराज धर्मवीर नहीं थे, बल्कि स्वराज्य रक्षक थे। इसके बाद से ही पूरे महाराष्ट्र में अजित पवार के इस बयान की आलोचना शुरू हो गई थी। मामले के बीच ही एनसीपी के दूसरे नेता ने एक कदम आगे बढ़ते हुए औरंगजेब को लेकर दावा कर दिया कि वह क्रूर और हिंदू विरोधी नहीं था।
क्या कहता है इतिहास?
छत्रपति शिवाजी महाराज के बड़े बेटे संभाजी महाराज 1689 की शुरुआत में हुए मुगल-मराठा युद्ध में पकड़े गए। संभाजी राजे और कवि कलश को औरंगजेब के पास पेश करने से पहले बहादुरगढ़ ले जाया गया था। औरंगजेब ने शर्त रखी थी कि संभाजी राजे धर्म -रिवर्तन कर इस्लाम अपना लें तो उनकी जान बख्श दी जाएगी। संभाजी राजे ने यह शर्त मानने से इनकार कर दिया। 40 दिन तक औरंगजेब के अंतहीन अत्याचारों के बाद 11 मार्च, 1689 को फाल्गुन अमावस्या के दिन संभाजी महाराज की मृत्यु हो गई।
असहनीय यातनाओं को सहते हुए भी संभाजी राजे ने धर्म के प्रति अपनी निष्ठा नहीं छोड़ी। इसलिए इतिहास ने उन्हें धर्मवीर की उपाधि दी।