Sunday, November 17, 2024
Homeराजनीतिकभी वामपंथी राजनीति के कारण 16 भिक्षु+1 साध्वी को कोलकाता में मारकर आग में...

कभी वामपंथी राजनीति के कारण 16 भिक्षु+1 साध्वी को कोलकाता में मारकर आग में फेंक दिया, अब उसी बंगाल में ममता बनर्जी ने संतों को राजनीति में घसीट खतरे में डाला

ममता बनर्जी ने कुछ संगठन के भिक्षुओं पर आरोप लगाया है कि वे चुनाव में भाजपा की मदद कर रहे हैं... अब डर ये है कि अगर उनके इस बयान से टीएमसी के अराजक तत्व ट्रिगर होते हैं तो ये सोचिए संतों के लिए कितनी मुसीबत खड़ी हो सकती है। पिछले चुनावों में हमने देखा ही है कि सत्ता पाकर टीएमसी के गुर्गे भाजपा समर्थकों पर कैसे हिंसक होते हैं।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शनिवार (18 मई 2024) को दिए एक अपने बयान के जरिए संतों को राजनीति में घसीटने का प्रयास किया। सीएम ने अपने बयान में रामकृष्ण मठ एवं रामकृष्ण मिशन और भारत सेवाश्रम संघ से जुड़े संतों पर निशाना साध कहा है कि वे लोग भाजपा के लिए काम कर रहे हैं। उनके इस बयान के बाद पीएम मोदी ने ममता बनर्जी पर संतों को धमकाने का आरोप लगाया। वहीं एक संत कार्तिक महाराज ने मुख्यमंत्री को उनके लिए कानूनी नोटिस भेजा है। इस नोटिस में सीएम के बयान को संत ने निराधार, झूठा और अपमानजनक बताया है।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का ये बयान ऐसे समय में सामने आया है कि जब चुनाव हैं और पिछले कुछ सालों में ये हमेशा देखा गया है कि तृणमूल कॉन्ग्रेस के कार्यकर्ता भाजपा समर्थकों के साथ सत्ता पाकर कैसा व्यवहार करते हैं। साल 2021 में भी टीएमसी के जीतने के बाद राज्य में बवाल हुआ था और पंचायत चुनाव जीतने के बाद भी टीएमसी कार्यकर्ताओं ने उत्पात मचाया था। उस समय भाजपा कार्यकर्ताओं के घरों को खोज-खोजकर हमले हुए थे।

ऐसे स्थिति में और ऐसे टीएमसी कार्यकर्ताओं के बीच ममता बनर्जी का ये बयान संतों के लिए जान तक का खतरा पैदा करता है। भाजपा नेता अमित मालवीय ने तो इस संबंध में ट्वीट भी किया है। उन्होंने जानकारी दी है कि सीएम ममता के बयान के बाद कुछ हमलावर जलपाईगुड़ी स्थित रामकृष्ण मिशन के आश्रम में घुस गए। उन्होंने भिक्षुओं पर हमला किया, सीसीटीवी आदि तोड़े दिए।

बता दें कि बंगाल की राजनीति में पहली बार संतों पर दोष लगाकर उनके खिलाफ माहौल बनाने का काम नहीं हुआ। ममता बनर्जी सरकार से पहले वामपंथी शासन काल में भी संतों को माकपा की सरकार ने निशाना बनाया था। अंजाम ये हुआ था कि तब कोलकाता में सरेआम 16 भिक्षु और 1 साध्वी निशाना बना लिए गए थे। आज उस नरसंहार को ‘बिजान सेतु नरसंहार’ कहा जाता है।

ये नरसंहार बात 30 अप्रैल 1982 को कोलकाता के बॉलीगंज के निकट दिनदहाड़े अंजाम दिया गया था। हमलावरों ने हिंदू संगठन आनंद मार्ग के 16 भिक्षुओं और एक साध्वी की निर्मम तरीके से हत्या कर उन्हें आग में फेंक दिया था। उन्हें उनकी टैक्सियों से उस समय बाहर खींच लिया गया था, जब वे कोलकाता के तिलजला स्थित अपने मुख्यालय में आयोजित एक शैक्षिक सम्मलेन में भाग लेने जा रहे थे।

हत्याओं को तीन अलग-अलग स्थानों पर अंजाम दिया गया था। इतना ही नहीं, इन घटनाओं को अपनी आँखों से एक दो नहीं बल्कि हजारों लोगों ने देखा था, इसके बावजूद भी आज तक एक की भी गिरफ्तारी नहीं हो सकी, जबकि 2012 में ही पश्चिम बंगाल सरकार ने इन हत्याओं की जाँच के लिए एकल सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया था।

बताया जाता है कि इन हत्याओं के तत्काल बाद के वर्षों में माकपा सरकार ने इस मामले से संबंधित तथ्यों को छिपाना जारी रखा। वहीं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 1996 के अंत में इस मामले की जाँच बिठाई थी, लेकिन ज्योति बसु और उनकी सरकार के सहयोग न मिलने के कारण यह जाँच आगे नहीं बढ़ सकी।

आनंद मार्ग के जनसंपर्क सचिव आचार्य त्रंबकेश्वरानंद अवधूत ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया था, “बसु सरकार की एक मात्र सफलता राज्य के सबसे बड़े नरसंहार मामले में अपने शामिल होने को छिपाने की रही है।” उनके अनुसार कम्युनिस्ट आनंद मार्ग के शीर्ष नेतृत्व को खत्म करना चाहते थे, लेकिन उनके गुंडों ने गलतफहमी में संगठन से जुड़े साधारण भिक्षुओं की हत्या कर दी।

बिजोन सेतु हत्याकांड के बाद भी अप्रैल 1990 में CPI(M) के कैडरों द्वारा कथित तौर पर आनंद मार्ग के पाँच सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। 1982 की जघन्य हत्याओं के बारे में तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने बड़ी ही बेशर्मी से कहा था, “क्या किया जा सकता है? ऐसी बातें होती रहती हैं।” 

इन संतों की हत्या के बाद से हर साल 30 अप्रैल को आनंद मार्गियों के नरसंहार की सालगिरह पर आनंद मार्गी जुलूस निकालते हैं और उन भिक्षुओं को श्रद्धांजलि देते हैं, जिन्हें दिनदहाड़े मारने के बाद आग में फेंक दिया गया था। उन्हें घटना के चार दशक बीत जाने के बाद भी आज तक न्याय नहीं मिल सका है। कभी माओ ने कहा था, “राजनीतिक शक्ति बंदूक की नोंक से बढ़ती है।” वर्षों से ये लोग दूसरों के सिर पर बंदूक रखकर राजनीतिक सत्ता हासिल करने में कामयाब रहे हैं। हालाँकि उन्हें राजनीतिक रूप से अलग कर दिया गया है, फिर भी उन्हें न्याय की बारीकियों का अनुभव करना बाकी है।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

महाराष्ट्र में चुनाव देख PM मोदी की चुनौती से डरा ‘बच्चा’, पुण्यतिथि पर बाला साहेब ठाकरे को किया याद; लेकिन तारीफ के दो शब्द...

पीएम की चुनौती के बाद ही राहुल गाँधी का बाला साहेब को श्रद्धांजलि देने का ट्वीट आया। हालाँकि देखने वाली बात ये है इतनी बड़ी शख्सियत के लिए राहुल गाँधी अपने ट्वीट में कहीं भी दो लाइन प्रशंसा की नहीं लिख पाए।

घर की बजी घंटी, दरवाजा खुलते ही अस्सलाम वालेकुम के साथ घुस गई टोपी-बुर्के वाली पलटन, कोने-कोने में जमा लिया कब्जा: झारखंड चुनावों का...

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने बीते कुछ वर्षों में चुनावी रणनीति के तहत घुसपैठियों का मुद्दा प्रमुखता से उठाया है।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -