महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार एक के बाद एक देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्रित्व काल में हुए फ़ैसलों को पलटने में लगी हुई है। आरे जंगल में मेट्रो शेड प्रोजेक्ट को रोक दिया गया। भीमा-कोरेगाँव हिंसा भड़काने वालों के ख़िलाफ़ मामला वापस लिया जा रहा है। अब शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार ने एक बड़े वर्ग को ख़ुश करने के लिए मराठा आंदोलन में हिंसा फैलाने के आरोपितों के ख़िलाफ़ चल रहे मामलों को ख़त्म करने का निर्णय लिया है। मराठा आरक्षण आंदोलन को लेकर 3000 लोगों के ख़िलाफ़ अदालतों में 288 मामले चल रहे हैं, जिसे सरकार वापस ले लेगी।
इससे पहले उद्धव ठाकरे की सरकार ने आरे जंगल में पेड़ों की कटाई का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ दर्ज मामलों को वापस लेने का निर्णय लिया था। इसी तरह ननर ऑइल रिफाइनरी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे लोगों के विरुद्ध चल रहे मामलों को भी ख़त्म करने का फ़ैसला लिया गया। ये आंदोलन जनवरी 2018 में रत्नागिरी में हुआ था। किसान आंदोलन के दौरान जिन्होंने हिंसा फैलाई, उनके ख़िलाफ़ चल रहे मामले भी ख़त्म होंगे। मराठा आंदोलन से जुड़े 3 मामले दस्तावेजों की अनुपलब्धता की वजह से लंबित रहेंगे।
इनमें से 35 केस ऐसे भी हैं, जिनमें प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर हमला किया और उन्हें क्षति पहुँचाई। सरकार के ख़िलाफ़ ऐसी मामलों में सबूत भी हैं। इन मामलों को त्वरित रूप से वापस नहीं लिया जा सकता क्योंकि इन प्रदर्शनकारियों ने 5 लाख रुपए से भी अधिक की संपत्ति को नुकसान पहुँचाया था। इन प्रदर्शनों में सरकारी अधिकारियों और पुलिसबलों पर हमले किए गए थे। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कई आन्दोलनों में हिंसा फैलाने वालों के ख़िलाफ़ चल रहे मामले वापस लिए जा रहे हैं।
Have dropped Hindutva ideology
— Sambit Patra (@sambitswaraj) December 4, 2019
Now ready to drop National Security!
How much will you drop Shiv Sena??
Uddhav Thackeray: Will drop Koregaon Bhima cases: Uddhav to NCP leaders | India News – Times of India https://t.co/tdYn9Tdxra
आरे जंगल में मेट्रो प्रोजेक्ट के ख़िलाफ़ चल रहे मामलों में 29 लोगों के विरुद्ध दर्ज विभिन्न केस वापस लिए गए। महाराष्ट्र के गृह मंत्रालय ने उन सभी मामलों के विवरण मँगाए हैं, जिन्हें वापस लिया जाना है। बुधवार (दिसंबर 4, 2019) को हुई उद्धव कैबिनेट की बैठक में ही ये फ़ैसला ले लिया गया था कि विभिन्न आन्दोलनों में कई लोगों के ख़िलाफ़ चल रहे अदालती केस वापस ले लिए जाएँगे। हालाँकि, जिन मामलों में पुलिस के पास सीसीटीवी फुटेज जैसे मजबूत साक्ष्य हैं, उन्हें वापस नहीं लिया जा सकता।