पद्म भूषण से सम्मानित और दो दशकों तक बीबीसी दिल्ली के ब्यूरो प्रमुख रहे पत्रकार और लेखक मार्क टली ने कॉन्ग्रेस की ‘धर्मनिरपेक्षता’ पर सवाल उठाए हैं। हिन्दुओं की उपेक्षा के लिए उसकी आलोचना की है। उन्होंने कहा है कि कॉन्ग्रेस की इसी मूर्खता से भाजपा को मुखर होने का मौका मिला।
गोवा में एक कार्यक्रम में मार्क टली ने कहा कि भारतीय संदर्भों में धर्मनिरपेक्षता उपयुक्त शब्द नहीं है। धर्मनिरपेक्षता में सभी धर्मों के प्रति शत्रुता का भाव है या फिर उदासीनता का। भारतीय न तो धर्म के प्रति शत्रुता रखते हैं और न ही उदासीन हैं।
उन्होंने कहा कि कॉन्ग्रेस ने धर्मनिरपेक्ष शब्द का गलत इस्तेमाल किया। उसकी इस गलती ने भाजपा को यह कहने का मौका दिया कि वह हिंदुओं की पार्टी है और यही हिंदुत्व है। कॉन्ग्रेस को अपनी राजनीति में हिन्दुओं के लिए भी जगह रखनी चाहिए, जैसा कि उसने कथित अल्पसंख्यक या फिर अन्य समुदायों के लिए किया है।
टली ने कहा, “मुझे लगता है कि आज कॉन्ग्रेस को समझना चाहिए कि भारत एक ऐसा देश है, जहाँ 80% आबादी खुद को हिंदू कहती है। हम मानते हैं कि हिंदू धर्म, जो भारत के लिए स्वाभाविक है, एक बहुलवादी धर्म है। यह धर्म सहिष्णु होने और अन्य धर्म का स्वागत करने पर गर्व करता है, जो कि भारत के इतिहास पर गर्व करने वाली बात है।”
इस बयान से लगता है कि ब्रिटिश होने के बावजूद टली भारत की वास्तविकताओं को उस राजनीतिक दल से कहीं अधिक समझते हैं जिसने दशकों तक देश पर शासन किया है। जिस हकीकत को टली जैसे विदेशी समझ लेते हैं वह कॉन्ग्रेस क्यों नहीं समझ पाती है, ये पूरी तरह से समझ से परे है।
जैसा कि सभी जानते हैं कि कॉन्ग्रेस पार्टी के धर्मनिरपेक्षता के ब्रांड में हिंदू समुदाय के लिए कोई जगह नहीं थी। जिस देश में हिन्दू बहुमत में है, उस देश में कॉन्ग्रेस की इस तरह की रणनीति पार्टी के लिए राजनीतिक रूप से आत्मघाती था।
हालाँकि, राहुल गाँधी ने कई मंदिरों की यात्रा करके पार्टी की छवि को ठीक करने की कोशिश की, लेकिन उनके पास बेहतर चीजों के लिए सुधार करने की विश्वसनीयता नहीं थी। इससे भी अधिक दुख की बात यह है कि पार्टी के नेता हिंदू समुदाय के लिए भद्दी टिप्पणियाँ करते हैं।
कॉन्ग्रेस पार्टी ने दरबारियों की बजाय टली जैसे लोगों की बात सुनी होती तो शायद उसे वैसी पराजय का सामना नहीं करना पड़ता, जैसा बीते दो आम चुनावों में देखने को मिला है। ऐसा लगता है कि उसने अपनी भयंकर हार से कोई सबक नहीं लिया है। दिग्विजय सिंह जैसे वरिष्ठ पार्टी नेता अब भी हिंदुओं को नीचा दिखाने की कोशिश करते हुए बयानबाजी कर रहे हैं। पार्टी की वर्तमान स्थिति को देखकर लगता है कि उसके पतन का समय नजदीक आ गया है।