टिकटॉक समेत 59 चीनी एप को बैन करने के बाद अब भारत सरकार चीन को आर्थिक रूप से तोड़ने की तैयारियों में जुटा है। खबर है कि चीनी सामान के आयात पर प्रतिबंध लगाने के लिए सोच-विचार शुरू हो गया है।
इसके लिए औद्योगिक संगठनों व अन्य मैन्यूफैक्चरिंग एसोसिएशन व निर्यातकों से भी उनकी राय माँगी गई है। इन सबसे पूछा गया है कि चीन से आयात पर प्रतिबंध लगने की स्थिति में उन पर क्या फर्क पड़ेगा या वह इससे कितने सहज होंगे।
आयात के अलावा 5G तकनीक के इस्तेमाल पर भी निर्णय लेने के लिए परामर्श लिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि शीर्ष मंत्रियों की बैठक में यह बात हुई है कि HUAWEI जैसी कंपनी को सरकार 5जी तकनीक के उपकरणों के मामले में दूर रखना चाहती है।
हालाँकि, शीर्ष नेताओं की बैठक में 5जी को लेकर हुई चर्चा के बारे में मीडिया में कोई विस्तृत जानकारी नहीं है। लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरान Huawei और कई अन्य चीनी कंपनियों के 5जी तकनीक में हिस्सेदारी लेने को लेकर बात हुई।
उल्लेखनीय है कि सरकार औद्योगिक संगठनों एवं एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल से चीन से आयात होने वाले सामान की सूची की माँग पहले ही कर चुकी है। जिसका उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि आखिर किन-किन आइटम का निर्माण हम आसानी से तत्काल रूप में भारत में कर सकते हैं, जिनसे भारतीय उत्पादकों को कोई नुकसान नहीं हो।
इसके अतिरिक्त विकल्प के तौर पर इस बात पर भी गौर किया जा रहा है कि यदि चीन से आयात पर प्रतिबंध लगाया जाता है तो कच्चा माल या फिर अन्य जरूरी सामान कहाँ से मँगवाए जा सकते हैं।
यहाँ बता दें कि भारत इस समय दवा, ऑटो पार्ट्स, मोबाइल एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स, रसायन जैसे कई क्षेत्रों में कच्चे माल की सप्लाई के लिए अभी चीन पर निर्भर करता है। आटो पार्ट्स को तो तैयार करने के लिए चीन से कई ऐसे कच्चे माल आयात किए जाते हैं, जिनके बगैर पार्ट्स को तैयार नहीं किया जा सकता है।
कॉस्मेटिक और दवा निर्माण भी अभी चीन के आयात पर निर्भर है। ऐसे में सरकार के सामने इनके विकल्प ढूँढना एक बड़ी चुनौती है। निर्यातकों के अनुसार, चीन से सस्ते दाम पर कच्चे माल मिलने की वजह से पार्ट्स की लागत कम होती है और वे अंतरराष्ट्रीय बाजार में मुकाबला करने में सक्षम होते हैं।
मगर, बावजूद इन सभी बातों के और चीन का रवैया देखते हुए पीएचडी चैंबर के टेलीकॉम कमेटी के चेयरमैन संदीप अग्रवाल का कहना है कि सरकार को साहसिक फैसला करना ही होगा। भले ही कुछ समय हमें महँगे सामान खरीदने पड़े।
वे कहते हैं कि सभी क्षेत्रों में भारतीय कंपनियों को ट्रायल ऑर्डर देने की शुरुआत होनी चाहिए और उसमें कमी या देरी पर भारतीय कंपनियों पर जुर्माने की शर्त होनी चाहिए। उनका मानना है कि इस तरीके से भारतीय कंपनियों को टेलीकॉम क्षेत्र में चीन का मुकाबला करने में मदद मिलेगी।