5 अगस्त 2020 का दिन दुनियाभर के हिंदुओं के लिए ऐतिहासिक रहा। अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों भव्य राम मंदिर का भूमिपूजन सम्पन्न हुआ। संतगणों और धर्माचार्यों की उपस्थिति में राम मंदिर निर्माण के लिए पहली ईंट रखी गई।
इस कार्यक्रम की यूँ तो कई खास बातें रहीं। लेकिन जिसने सबका दिल जीता वो यह कि भूमिपूजन के बाद इसका सबसे पहला प्रसाद एक दलित परिवार को भेजा गया।
हुई न हैरानी? लेकिन यह सच है कि इतने महंतों, संतों, पुजारियों, ब्राह्म्णों व दिग्गज नेताओं की उपस्थिति के बावजूद पहला प्रसाद एक दलित परिवार को भेजा गया। ये परिवार महावीर का है। इन्हें भूमिपूजन के प्रसाद के साथ श्री रामचरितमानस की एक प्रति और तुलसी माला भी भेंट दी गई। इन्हें प्रसाद पहुँचाने के बाद ही अयोध्या में अन्य लोगों को प्रसाद वितरण का कार्य शुरू हुआ।
महावीर के बारे में थोड़ा याद दिला दें कि यह वहीं शख्स हैं जिन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत छत मिली और लोकसभा चुनावों के दौरान सीएम योगी आदित्यनाथ ने उनके घर बैठकर भोजन किया था।
The first prasad from the grand ‘#BhumiPujan‘ ceremony of the #RamJanmabhoomi temple in #Ayodhya, has been given to a Dalit family.
— IANS Tweets (@ians_india) August 6, 2020
The family is Mahabir’s, and they were given ‘prasad’ along with a copy of Ram Charit Manas and a ‘Tulsi mala’. pic.twitter.com/qMBiWQIAIv
अब सवाल है कि मोदी सरकार द्वारा एक दलित को इतनी महत्ता दी जा रही है, जबकि वामपंथी मीडिया और विपक्ष तो आज तक हमें यही समझाता आया है कि नरेंद्र मोदी सरकार ब्राह्मणवाद का चेहरा है। इस सरकार ने दलितों के लिए कभी कुछ नहीं किया और तो और 6 साल के कार्यकाल में भी वह केवल दलितों की अनदेखी करते रहे, उन पर अत्याचार करते रहे।
जिग्नेश मेवानी जैसे तथाकथित दलित नेता ने हमें बताया कि जितना अत्याचार दलितों पर मोदी सरकार ने किया है उतना अत्याचार तो कभी भी किसी सरकार ने दलितों पर नहीं किया।
राहुल गाँधी जंतर मंतर पर आयोजित एक रैली में कहा था कि प्रधानमंत्री के मन में दलितों के लिए कोई जगह नहीं है। क्योंकि अगर जगह होती तो उनके लिए बनाई गई नीतियाँ बिलकुल अलग होतीं।
दलित नेता मायावती दावा करती हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने जो दलित छात्र की आत्महत्या पर आँसू बहाए वे घड़ियाली आँसू थे। मोदी और उनकी सरकार दलित विरोधी है। उनके आँसू दलित प्रेम नहीं ,बल्कि एक नाटक हैं।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी कहते हैं भाजपा सरकार ने जनहित के लिए एक भी योजना लागू नहीं की। बल्कि सरकार ने तो समाज के दलित, वंचित और पिछड़ों के ख़िलाफ़ अभियान शुरू कर दिया है।
बावजूद इतने आरोपों के मोदी सरकार अपना काम करती रही। यदि याद हो आपको तो पिछले साल कुंभ के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने सफाई कर्मचारियों के पैर स्वयं धोए थे। उस समय विपक्ष ने पीएम मोदी का यह चेहरा देखकर उन पर नौटंकी की राजनीति करने के आरोप लगा दिए थे। मोदी विरोधियों ने इस छवि को खारिज करने के लिए सोशल मीडिया पर अस्थायी और स्थायी नौकरी का मुद्दा उठा दिया था।
हालाँकि, ऐसा ही कुछ इस बार भी हुआ। भूमिपूजन में कुछ लोगों की अनुपस्थिति को उनके दलित होने से जोड़कर दर्शाया गया। लेकिन प्रथम प्रसाद की खबरें आते ही इन लोगों को करारा जवाब मिला। स्वयं दलित परिवार के मुखिया महावीर ने कहा,
“मैं दलित हूँ। मुख्यमंत्री ने पहले मुझे और मेरे परिवार को भेजा। मैं उनका धन्यवाद करता हूँ कि उन्होंने मुझे याद रखा।” उन्होंने कहा, “यह हमारे लिए दोहरी खुशी की तरह है। पहला यह कि राम मंदिर का हमारा सपना पूरा हुआ और दूसरा ये कि हमें पहला प्रसाद मिला। हमें उम्मीद है कि अब राज्य में जातीय भेदभाव समाप्त हो जाएगा और हर कोई विकास और सबके कल्याण के बारे में सोचेगा।”
जिस सरकार की छवि बिगाड़ने के लिए विपक्ष ने उसे अन्य धर्म के लोगों के आगे कट्टर हिंदुत्ववादी बताया और दलितों के आगे ब्राह्मणवादी करार दे दिया, उसी सरकार ने कभी इन आरोपों का मौखिक रूप से खंडन नहीं किया, बल्कि अपनी कार्यनीतियों से विपक्ष को झुठलाते रहे।
6 साल के कार्यकाल में मोदी सरकार ने चुनाव नजदीक देखकर कभी दलितों के प्रति प्रेम नहीं दिखाया, बल्कि उन्होंने तो सत्ता सँभालने के साथ ही समाज के पिछड़े वर्ग के लिए कार्य करना शुरू कर दिया था।
आज शायद उसी प्रतिबद्धता का नतीजा है कि अगर हम आँकड़ों से मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल को निकाल भी दें तो भी इतनी योजनाएँ हमारे पास बचती हैं- जो यह बताती हैं कि दलित उत्थान के लिए मोदी सरकार के प्रयास कैसे 70 सालों की दिखावटी कोशिशों पर भारी हैं।
मोदी ने सरकार ने दलितों के लिए क्या किया?
सबका साथ सबका विकास के मूलमंत्र के साथ अपने दूसरे कार्यकाल के दूसरे साल में मोदी सरकार कुछ दिन पहले प्रवेश कर चुकी है। लेकिन मोदी सरकार ने दलितों के लिए योजनाएँ हाल फिलहाल में शुरू नहीं की है। उन्होंने साल 2014 में चुनाव जीतने के साथ ही इस पर काम करना शुरू किया और सुनिश्चित किया कि ये योजनाएँ केवल दस्तावेजों में लागू न हों, बल्कि जमीनी स्तर पर इनका फायदा समाज के पिछड़े समुदाय को मिले।
याद करिए साल 2017-18 को। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दलितों के उत्थान के लिए अपने बजट में क्रांतिकारी बदलाव किया था। एक समय तक जहाँ पुरानी सरकारी दलितों की आबादी के प्रतिशत के अनुपात में बजट से धन नहीं देती थी, वहीं मोदी सरकार ने जाधव समिति की सिफारिशों को लागू कर दिया।
इसके बाद दलितों की 2001 की जनगणना की जनसंख्या के अनुपातिक प्रतिशत के अनुसार बजट में धन की व्यवस्था की गई। ऐसे ही 2018-19 में दलित योजनाओं के लिए मोदी सरकार ने बजट में 8,63,944 करोड़ रुपए दिए, जो दलितों के लिए अब तक का सबसे अधिक आवंटन रहा।
पिछड़े वर्ग के प्री मैट्रिक-पोस्ट मैट्रिक विद्यार्थियों के लिए भी मोदी सरकार ने किया आर्थिक मदद का इंतजाम: साल 2017 में ही 19 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने दलित परिवारों के बच्चों को मिलने वाली आर्थिक मदद का दायरा बढ़ाया।
पहलेहले यह मदद उन्हीं परिवारों के बच्चों को मिलती थी, जिनकी आमदनी सालाना 2 लाख रुपए थी। लेकिन मोदी सरकार ने इसे बढ़ाकर 2.5 लाख रुपए कर दिया। इसके साथ हॉस्टल में रहने वाले बच्चों को मिलने वाले 350 रुपए को बढ़ाकर 525 रुपए कर दिया और घर पर रहकर पढ़ने वाले बच्चों को 150 रुपए बढ़ाकर 250 रुपए कर दिया।
इसी तरह मैट्रिक से आगे पढाई पूरे करने वाले छात्रों को केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही योजना के तहत 100 प्रतिशत का धन दिया जाता है। इस योजना के तहत स्कॉलरशिप वाले छात्रों के लिए पुस्तक से लेकर पढ़ाई तक का खर्चा केंद्र सरकार वहन करती हैं।
सरकार ने दलित छात्रों की उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किया: रिपोर्ट्स के अनुसार दलित छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए 2000 जूनियर फेलोशिप और सीनियर फेलोशिप प्रतिवर्ष यूजीसी से दिया जाता है। इसमें जूनियर के लिए 25 हजार रुपए और सीनियर के लिए 28 हजार रुपए का फेलोशिप निर्धारित है।
दलितों के अन्तरजातीय विवाह करने पर आर्थिक सहायता: मोदी सरकार ने दलितों के अन्तरजातीय विवाह के लिए पूरे देश में एक समान आर्थिक सहायता 2.5 लाख रुपयों की कर दी। इससे पहले राज्यों द्वारा दलितों को अन्तरजातीय विवाह के लिए अलग-अलग राशि दी जाती थी।
दलितों के लिए प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना ने सराहनीय काम किया: इस योजना के तहत उन गाँवों को आदर्शों गाँवों में विकसित किया गया, जहाँ आबादी में 50 प्रतिशत जनसंख्या दलितों की है। इन दलित बाहुल्य गाँवों में दलित परिवारों के लिए आवास, सड़कें, बिजली, रोजगार और सुरक्षा के लिए मोदी सरकार ने पूरा धन दिया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2018 तक 25,000 गाँवों में इस केंद्रीय योजना से दलितों का कल्याण कार्य चला।
दलित युवाओं के उद्यम और रोजगार की व्यवस्था की गई: दलित युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से कई योजनाएँ प्रथम कार्यकाल के प्रथम वर्ष से ही चलाई जा रही हैं। इनमे केंद्र सरकार State Scheduled Castes Development Corporations (SCDCs) को धन देती है जो दलित परिवारों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए कई योजनाओं के तहत लोन देती है।
देश में दलित युवाओं के लिए पहली बार वेंचर कैपिटल फंड की शुरुआत हुई: प्रधानमंत्री मोदी ने दलित युवाओं को स्टार्टअप शुरू करने के लिए प्रेरित करते हुए देश में पहली बार वेंचर कैपिटल फंड की शुरुआत 16 जनवरी 2015 को की।
इस योजना को IFCI Venture Capital Fund Ltd. नियंत्रित करता है। यह कोष दलित युवाओं में उद्यमिता को बढ़ावा देता है। यह उन दलित उद्यमियों की सहायता करता है जो कुछ नया करके समाज में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं।
दलितों को मुद्रा योजना का फायदा: समाज के पिछले वर्ग को आगे लेकर आने के लिए प्रधानमंभी ने मुद्रा योजना की भी शुरूआत की। केवल 31 मार्च 2017 तक दलितों के लिए 2,2500,194 मुद्रा खाते खुले, जो कुल मुद्रा खातों का 57 प्रतिशत है।
इसके बाद समुदाय के लोगों को 67,943.39 करोड़ का लोन आवंटित हुआ। साथ में ही नए उद्यमियों को हर संभव मदद देने के लिए अनुसूचित जाति/जनजाति हब की स्थापना की गई।
देश के सभी दलित गाँवों में बिजली पहुँची: प्रधानमंत्री के नेतृत्व में शुरू दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत आज देश के लगभग सभी गाँवों में बिजली पहुँचाई जा चुकी है। रिपोर्ट बताती है कि देश में 5,97,464 गाँवों में से 597,265 गाँवों में बिजली रिकॉर्ड समय में पहुँचाई गई।
दलित उत्पीड़न कानून को संशोधित कर सख्त बनाया: देश में दलितों को उत्पीड़न काफी समय से चला आ रहा है। ऐसे में मोदी सरकार ने दलित उत्पीड़न 1989 कानून को संशोधित करके अधिक सख्त बनाया और इसे 26 जनवरी 2016 को लागू भी कर दिया गया। इस संशोधन से दलितों को त्वरित न्याय दिलाने की मोदी सरकार की मुहिम को बल मिला।
इस कानून में सुनिश्चित किया गया कि दलित उत्पीड़न के मामलों की सुनवाई करने के लिए विशेष अदालतों के गठन और सरकारी वकीलों की उपलब्धता हो। नए कानून में यह भी सुनिश्चचित किया गया कि आरोप-पत्र दाखिल होने के 2 महीने के अंदर न्याय दे दिया जाए। नए कानून के तहत दलितों को मिलने वाली सहायता राशि को स्थिति के अनुसार 85,000 रुपए से 8,25,000 रुपए तक कर दिया गया।
गौरतलब है कि यह केवल कुछ चुनिंदा योजनाएँ है। जिन्हें मुख्यत: दलितों के नाम पर उन्हें आगे बढ़ाने के लिहाज से शुरू किया गया। लेकिन ध्यान रहे कि वे योजनाएँ जिनका फायदा समस्त भारतीयों को है उसके अंतर्गत भी दलित आते हैं और वह उसका फायदा भी उठाते हैं।
मोदी सरकार लगातार समाज में समरसता को बढ़ावा देने में प्रयासरत है। मगर, विपक्षी लगातार सरकार की आलोचना के नाम पर जनता को बरगलाकर और गिनी-चुनी घटनाओं का उल्लेख करके वर्तमान सरकार की छवि बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।
हाँ, ये बात और है कि मोदी सरकार के बारे में बोलते हुए ये पार्टियाँ ये भी नहीं बताती कि उनकी पार्टी ने आखिर सत्ता में रहते हुए ऐसा क्या-क्या किया, जिसके आधार पर वो इतनी आलोचनाएँ कर रहे हैं। वे केवल जनता को कमियाँ गिनवाते हैं, जबकि आँकड़े बिलकुल उलट स्थिति बयान करते हैं।
जैसे NCRB 2016 की एक रिपोर्ट बताती है कि प्रधानमंत्री मोदी ने दलितों को सुरक्षा देने में पूर्ववर्ती सरकारों से काफी अच्छा काम किया है। दलितों के विरुद्ध अपराध करने वालों को सजा दिलाने में भाजपा शासित राज्य, कॉन्ग्रेस शासित राज्यों से कहीं आगे है।