यह ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी’ का इंटरव्यू नहीं था, नरेंद्र दामोदरदास मोदी का था- साफ़, स्पष्ट, कड़वी लेकिन खरी बातों से भरा हुआ, 5 साल तक मीडिया रिपोर्टिंग में अपने साथ हुए अन्याय को लेकर शिकायती लहजे से सराबोर। नरेंद्र मोदी इसमें कोई स्टेट्समैन नहीं, खाँटी नेता थे जो जनता तक अपनी बात पहुँचाने और वोट माँगने निकले थे। इसमें प्रधानमंत्री की धीर-गंभीरता कम, और खुद को गलत तरीके से घिरा पा रहे एक व्यक्ति का क्षोभ अधिक था। आज शायद ठंडा दिमाग नहीं, उबल रहा दिल बोल रहा था।
लिहाजा इंडियन एक्सप्रेस को दिए इस साक्षात्कार में पत्रकारों की गलतियाँ भी गिनाईं, उन्हें यह याद भी दिलाया कि (सोशल मीडिया के दौर में) आज मुख्यधारा का पत्रकार खुद विश्वसनीयता साबित करने के लिए जूझ रहा है। उन्होंने अपने ऊपर लगने वाले हर आरोप- ‘रेवड़ी’-नॉमिक्स से लेकर नोटबंदी के लक्ष्य बदलते रहने और राजीव गाँधी को अपशब्द कहने के बारे में आक्रामक खंडन करते हुए अपना पक्ष सामने रखा। पेश हैं प्रमुख मुद्दों पर प्रधानमंत्री भाजपा नेता नरेंद्र मोदी के विचार:
रिकॉर्ड उठा कर देख लो, मैं निर्वाचन के समय के अलावा राजनीति नहीं करता
सवाल था कि इस आगामी लोकसभा की निर्वाचन प्रक्रिया में इतनी तल्खी हो गई है कि सवाल उठ रहा है क्या सत्ता पक्ष और विपक्ष इसके बाद तालमेल बिठा कर संघीय तंत्र को चला पाएँगे। जवाब में नरेंद्र मोदी ने अपने पाँच साल के प्रधानमंत्रित्व और 13 साल के गुजरात के कार्यकाल का हवाला देकर दावा किया कि निर्वाचन प्रक्रिया के समय प्रचार के दौरान और समसामयिक राजनीतिक मुद्दों पर टिप्पणियों का जवाब देने तक ही उनकी विशुद्ध राजनीतिक गतिविधियाँ सीमित रहीं हैं। “मैं अगर पानी से जुड़े कार्यक्रम में गया तो पानी पर ही बोला। अगर बिजली से जुड़े कार्यक्रम में गया तो बिजली पर ही बोला।”
उन्होंने यह भी दावा किया कि विपक्षी दलों के कई सांसद निजी तौर पर यह मान चुके हैं कि मोदी ने जितना समय उन्हें दिया, किसी और प्रधानमंत्री ने नहीं। उन्होंने उड़ीसा और बंगाल में हालिया चक्रवात का उदाहरण दिया कि कैसे वह अपने राजनीतिक कार्यक्रम रोक कर इसकी समीक्षा बैठकें कर रहे थे। 2016 का भी उदाहरण दिया जब केरल में 18 लोगों की मृत्यु पटाखों के धमाके में हो जाने के बाद वह चोटी के डॉक्टरों की टीम लेकर वहाँ पहुँचे थे जबकि उस समय वहाँ कॉन्ग्रेस की सरकार थी।
यूँ उठी थी राजीव गाँधी वाली बात
मोदी हाल-फ़िलहाल राजीव गाँधी की मृत्यु के समय ‘भ्रष्टाचारी नं. 1’ की छवि होने की बात कहने को लेकर वाम-(छद्म) उदारवादी मीडिया के निशाने पर हैं। उन पर आईएनएस विराट भी ‘गड़े मुर्दे उखाड़ने’ का आरोप है। इन दोनों का भी उन्होंने जवाब दिया और मीडिया के दोहरे मापदण्डों को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने सवाल पूछा कि अगर राहुल गाँधी का एक साल से उन्हें ‘चोर’ कहना लोकतंत्र में अशिष्टता नहीं था तो उनका राजीव गाँधी को ‘भ्रष्टाचारी’ कहना क्यों अपमानजनक हो गया।
“एक आदमी की छवि पर चोर-चोर-चोर-चोर-चोर के सहारे चोट किया जा रहा है, आपको उस पर कोई आपत्ति नहीं है!”
राजीव गाँधी के आईएनएस विराट विवाद का भी परिप्रेक्ष्य उन्होंने दिया कि पहले राहुल गाँधी ने उन्हें ताना मारा था कि सेना उनकी (मोदी की) जागीर नहीं है। तब उन्होंने यह याद दिलाना जरूरी समझा कि सरकारी और सार्वजानिक सम्पत्ति को निजी जागीर बना लिए जाने की असली तस्वीर कैसी होती है, और विराट के दुरुपयोग का मामला उठाया।
मेरी छवि 45 साल के संघर्ष से बनी है, खान मार्केट गैंग से नहीं; यूँ ही नहीं तोड़ लोगे
मोदी ने राहुल गाँधी के हालिया इंटरव्यू का भी जिक्र किया जिसमें राहुल गाँधी ने उनकी साफ़ छवि को छिन्न-भिन्न कर देने को अपनी सबसे बड़ी रणनीति बताया था। मोदी ने तंज कसते हुए कहा,
“मोदी की छवि दिल्ली के खान मार्केट गैंग ने नहीं बनाई है, लुटियंस दिल्ली ने नहीं बनाई है। 45 साल की मोदी की तपस्या ने बनाई है। अच्छी है या बुरी, इसे आप नष्ट नहीं कर सकते।”
नरेंद्र मोदी यहीं नहीं रुके। दिल्ली के सबसे महँगे रियल एस्टेट खान मार्केट में रहने और लुटियंस से सत्ता की दलाली करने वालों पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने यह भी पूछा कि जिस भूतपूर्व प्रधानमंत्री (राजीव गाँधी) की ‘मिस्टर क्लीन, मिस्टर क्लीन’ करके इन्होंने छवि बनाई थी, उनका अंत कैसे (किस छवि के साथ) हुआ?
हम हार कर भी उत्साह से ओत-प्रोत हैं
सवाल था कि लोकसभा निर्वाचन से ठीक पहले तीन राज्यों की सत्ता गँवाकर भाजपा ने क्या सीखा? मोदी ने पलट कर भाजपा को तीन राज्यों में कुल 40 सीटों पर समेटने वाले राजनीतिक गणितज्ञों पर कटाक्ष किया। यह भी याद दिलाया कि छत्तीसगढ़ के अलावा भाजपा को सत्ता-विरोधी लहर के बावजूद भारी जनसमर्थन मिला और मध्य प्रदेश में तो कुल मत प्रतिशत कॉन्ग्रेस से ज्यादा ही रहा।
मोदी ने यह भी याद दिलाया कि कॉन्ग्रेस अपने ‘असली रंग’ में आ गई है, और नोटों के बंडलों की ख़बरें देश भर में फिर से सुनाई पड़ रहीं हैं। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस की खोजी पत्रकारिता की छवि पर भी तंज कसते हुए पूछा कि कैसे इंडियन एक्सप्रेस को भोपाल में गरीब बच्चों के खाने के कोष में घोटाला नहीं दिखा।
मेरी सरकार को केवल एक-दो चीज़ों से जोड़कर न देखें
जब नरेंद्र मोदी से पूछा गया कि जैसे अटल सरकार को पोखरण, विनिवेश, बिजली सुधार आदि के लिए याद किया जाता है, वैसे उनकी सरकार 20 साल बाद किस चीज़ के लिए याद की जाएगी, तो उन्होंने कहा कि किसी एक-दो चीजों से वह अपनी और अपनी सरकार की छवि नहीं जोड़ना चाहते। उन्होंने आधारभूत ढाँचे से लेकर स्वच्छ भारत और आयुष्मान भारत गिनाते हुए कहा कि उनकी सरकार की (और अटल सरकार की भी) परिकल्पना में हर क्षेत्र में स्तम्भ खड़े करते हुए समग्र विकास के लिए काम करने की रही है।
प्रोत्साहन और आधारभूत सहायता को रेवड़ी मत कहिए, विनिवेश की प्रतिबद्धता दोहराई
मोदी से सवाल किया गया कि पीएम-किसान जैसी जनकल्याणकारी योजनाएँ क्या एक तरह से कॉन्ग्रेस की ही तरह ‘रेवड़ियाँ’ बाँटकर सत्ता पाने का प्रयास नहीं है। जवाब में उन्होंने प्रतिप्रश्न किया कि अगर उनकी सरकार इंडियन एक्सप्रेस में विज्ञापन देती है तो क्या इसे ‘रेवड़ी’ माना जाए। उन्होंने गरीबों के लिए सस्ते मकान बनाने की परियोजना, हेल्थकेयर में आधारभूत चेन बनाने आदि को ‘रेवड़ी’ बताने पर भी आपत्ति जताई। यह समझाया कि उनके दृष्टिकोण से यह सब मूलभूत ढाँचे हैं, जिनके ऊपर निजी भागीदार इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति का निर्माण करेंगे।
विनिवेश के सवाल पर उन्होंने अपना मशहूर नारा “government has no business to be in business” दोहराया और विनिवेश के प्रति प्रतिबद्धता भी जताई। पर यह मजबूरी भी गिनाई कि किसी भी इकाई को बेचने के लिए उसे खरीददारों में उत्सुकता पैदा करने वाला बनाना तो जरूरी है। साथ ही यह भी याद दिलाया कि उनकी सरकार ने ही सबसे ज्यादा विनिवेश किया है। एक PSU द्वारा दूसरे को खरीदने के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह विनिवेश प्रक्रिया का ही हिस्सा है जिसमें छोटी-छोटी इकाइयों को मिलाकर एक बड़ी इकाई बनाई जा रही है। उदाहरण उन्होंने एसबीआई का दिया जिसमें कुछ समय पहले त्रावणकोर स्टेट बैंक समेत 5 छोटे बैंकों का विलय हुआ है।
अधिनायकवाद का खण्डन
नरेंद्र मोदी ने साफ़ कर दिया कि यह अधिनायकवाद की छवि पूरी तरह झूठी है। उन्होंने यूपीए काल की कैबिनेट मीटिंगों से एनडीए-2 की तुलना करते हुए कहा कि (जब ‘रिमोट कंट्रोल’ से सरकार चलती थी तो) यूपीए में 20 मिनट औसतन कैबिनेट मीटिंग होती थी। उनके (मोदी के) समय में यह बढ़कर तीन घंटे के आसपास हो गया है। उन्होंने बताया कि कैबिनेट में कई पूरी तरह तैयार प्रस्ताव ख़ारिज हुए हैं और कई अन्य अस्थाई मंत्री-समूहों के हवाले किए गए हैं।
मीडिया को आईना भी, लताड़ भी
इस समय नरेंद्र मोदी पूरी तरह चुनावी मोड में चल रहे हैं। 5 साल तक मीडिया द्वारा प्रॉक्सी-विपक्ष का रोल अदा करने के बाद भी उन्होंने शायद ही कभी मीडिया पर सीधा निशाना साधा हो। पर आज उन्होंने मीडिया को नहीं बख्शा। हर मुद्दे पर मोदी के लिए अलग मापदंड तय होने की भी जमकर बखिया उधेड़ी।
इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकारों के सामने ही उनके पूर्व सम्पादक द्वारा एक समय दो बैंकों के विलय को ‘बड़ा कदम’ करार दिए जाने और मोदी के 5 और 3 बैंकों के विलय पर सन्नाटा मार लेने पर भी सवाल उठाया। जब उन पर ‘लोकतंत्र के अनिर्वाचित स्तम्भों’ (मीडिया और न्यायपालिका) से असहज होने का आरोप लगा तो उन्होंने बिना लागलपेट साफ़ कर दिया कि हालाँकि वह मीडिया के सवालों से नहीं डरते पर यह उम्मीद जरूर करते हैं कि मीडिया उतने ही सवाल और वैसे ही सवाल दस साल तक रिमोट कंट्रोल से सरकार चलाने वालों से भी पूछने की हिम्मत दिखाए।
उन्होंने मीडिया की तथाकथित ‘निष्पक्षता’ को भी कठघरे में खड़ा किया। उन्हें याद दिलाया कि आज सोशल मीडिया मुख्यधारा के पत्रकारों के पूर्वग्रहों को बेनकाब कर रहा है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्यों मीडिया ने कॉन्ग्रेस-शासित राजस्थान में दलित के बलात्कार की खबर को तभी उठाया जब वहाँ निर्वाचन सम्पन्न हो गए (यानी खबर उछलने से कॉन्ग्रेस को वोटों के नुकसान का खतरा नहीं रहा)। उन्होंने पलट कर मीडिया से सवाल किए जाने को ‘अपमान’ करार देने पर भी सवाल खड़े किए।
‘हेट स्पीच’ के मामले में भी उन्होंने मीडिया द्वारा ‘अप्रूव’ की गई परिभाषा को मानने से इंकार कर दिया। उल्टा मीडिया को कटघरे में खड़ा किया। मोदी ने पूछा कि ‘हेट स्पीच’ की यह कैसी परिभाषा है कि यदि एक व्यक्ति (साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर) खुद को हिरासत में प्रताड़ित किए जाने की बात करे तो वह ‘हेट स्पीच’ है लेकिन सभी हिन्दुओं को ‘भगवा आतंकवाद’ के झूठे नाम पर अपमानित करना हेट स्पीच नहीं है। यहाँ तक कि समुदाय विशेष को अलग-थलग करने का खुद पर आरोप लगाने पर पलट कर उन्होंने पूछा कि कितने (मीडिया हाउस में) आज समुदाय विशेष वालों को मुख्य पत्रकार (सम्पादक) बनाया गया है।
लोकतंत्र पर पत्रकारों की ‘चिंता’ पर भी उन्होंने सीधे-सीधे कहा कि मीडिया की यह चिंता अपारदर्शिता और लोकतंत्र की नहीं, हेडलाइन बनने के लिए खबरें लीक न होने को लेकर है। और इसके लिए कोई ‘आश्वासन देने के बजाय उन्होंने साफ़ कह दिया कि पत्रकारों को खबरें न मिल पाना उनकी (मोदी की) समस्या नहीं है।
देश का नुकसान मतलब देशद्रोह
राष्ट्रवाद और देशद्रोह के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी ने बहुत तफ़सील से अपनी परिभाषा बताई भी, और समझाई भी। उन्होंने साफ़ कर दिया कि कोई भी इंसान जो देश का नुकसान करता है उसे वह देशभक्त नहीं मानते। उन्होंने उदाहरण दिया कि पंडित नेहरू द्वारा शुरू किया गया सरदार सरोवर बाँध इतना खिंचा (भ्रष्टाचार के चलते) कि उसका उद्घाटन उन्होंने (मोदी ने) हाल ही में किया। ₹6,000 करोड़ की अनुमानित कीमत से शुरू हुई परियोजना की आखिरी कीमत ₹1 लाख करोड़ बैठी। यह देशद्रोह ही था (मोदी की नजरों में)।
कश्मीर के विकास लिए मुफ़्ती-अब्दुल्ला से मुक्ति जरूरी, नक्सलियों के नेता कार और PhD वाले
नरेंद्र मोदी ने जहाँ एक ओर कश्मीर के विकास के लिए मुफ़्ती और अब्दुल्ला खानदानों के चंगुल से मुक्ति को जरूरी बताया, दूसरी ओर यह साफ़ किया कि नक्सली-माओवादी न गरीब हैं न ही गरीबों के हिमायती। उन्होंने ‘अर्बन नक्सलियों’ की ओर इशारा करते हुए साफ़ किया कि नक्सलियों के छोटे नेता गाड़ियों में घूमते और PhD कर विश्वविद्यालयों में पढ़ाते हैं। वह विकास को भी रोकते हैं क्योंकि अगर विकास होगा तो उनकी विचारधारा का फैलाव नहीं होगा। उन्होंने यह भी बताया कि हिंसा को लेकर उनकी सरकार की ‘जीरो-टॉलरेंस ‘नीति के बावजूद रिकॉर्ड स्तर पर माओवादियों ने हथियार डाले हैं और एक-तिहाई जिले अब वामपंथी चरमपंथ से मुक्त हैं।
पाकिस्तान की गेंद पाकिस्तान के पाले में, चीन समझता है हमारी चिंताएँ
पाकिस्तान के मुद्दे पर मोदी ने केवल इतना ही कहा कि पाकिस्तान का अगला कदम ही भारत के अगले कदम को तय करेगा। चीन के मुद्दे पर हालाँकि उन्होंने देश को आश्वस्त किया कि चीन भारत की आतंक-संबंधी चिंताओं से अनभिज्ञ नहीं है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि चीन और भारत के बीच कुछ असहमतियाँ होते हुए भी बहुत (से महत्वपूर्ण मुद्दों पर) सहमति है।
विदेश नीति में सौभाग्यशाली रहा कि जमीन से जुड़ा रहा, किताबी ज्ञान से नहीं
अपनी अनूठी विदेश नीति के मुद्दे पर भी नरेंद्र मोदी अपने आलोचकों के प्रति ही आलोचनात्मक नजर आए। उन्होंने कहा कि अधिकाँश विदेश नीति ‘विशेषज्ञ’, और यहाँ तक कि विदेश मंत्री, इस विषय को अत्यधिक ‘अकादमिक’ तरीके से देखते हैं। जबकि उनका (मोदी का) दृष्टिकोण यहाँ भी जमीन से जुड़ा हुआ रहा। उन्होंने बताया कि कैसे अपने वर्षों पहले के अमेरिका प्रवास में उन्होंने सस्ते और रियायती टिकट का लाभ उठाते हुए अमेरिका के 23 राज्यों का भ्रमण किया था।
अपनी विदेश नीति के फायदे गिनाते हुए उन्होंने G-20 के इतर हुई भारत की रूस-चीन और जापान-अमेरिका से वार्ताओं को मिल रहे महत्व का उदाहरण दिया। साथ में यह भी जोड़ा कि व्यक्तिगत मित्रताएँ स्थापित करने से पारस्परिक समझ स्थापित होने में सहूलियत होती है।