कर्नाटक राज्य में सारे मुस्लिमों को आरक्षण देने का मामला शांत नहीं है। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने इस पर आपत्ति जताई थी और सरकार से जवाब माँगा था। अब राज्य का पक्ष देख आयोग ने कहा है कि वो उससे संतुष्ट नहीं है और जल्द दी मुख्य सचिव को समन भेजने वाले हैं।
एनसीबीसी अध्यक्ष हंसराज अहीर ने कहा, “कर्नाटक में मुस्लिमों की सभी जातियों/समुदायों को नागरिकों का सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग माना जा रहा है और उन्हें राज्य की पिछड़ा वर्ग सूची में श्रेणी IIB के तहत अलग से मुस्लिम जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है।”
The National Commission for Backward Classes said that it would be summoning Karnataka chief secretary over "blanket reservation" given to the Muslim community. https://t.co/mh4FqaBypB
— The Times Of India (@timesofindia) April 25, 2024
उन्होंने कहा, “यह वर्गीकरण उन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 16(4) के अनुसार शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और राज्य की सेवाओं में पदों और रिक्तियों पर आरक्षण प्राप्त करने में सक्षम बनाता है।”
एनसीबीसी ने इस बात पर जोर दिया है कि हालाँकि मुस्लिम समुदाय के भीतर वास्तव में वंचित और ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहने वाले वर्ग हैं, लेकिन सारे लोगों को पिछड़ा मानने से मुस्लिम समाज के भीतर विविधता और जटिलताओं की अनदेखी होगी।” अहीर का कहना है कि वो इस मामले पर राज्य सरकार से मिली प्रतिक्रिया संतोषजनक नहीं हैं। वह इस फैसले पर स्पष्टीकरण देने के लिए कर्नाटक के मुख्य सचिव को बुलाएँगे।
बता दें कि इस कर्नाटक में सारे मुस्लिमों को आरक्षण देने के फैसले की चारों ओर से आलोचना हो रही है। सोशल मीडिया पर लोग पीएम मोदी की उस बात को सही बता रहे हैं जहाँ उन्होंने बताया कि मनमोहन सिंह ने पीएम रहते हुए कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का है। इसके अलावा राज्य सरकार के फैसले पर NCBC ने कर्नाटक की इस नीति को सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध बताया था। पिछले साल NCBC ने ग्राउंड पर जाकर आरक्षण की स्थति का पता लगाया था। आयोग का कहना है कि ऐसे में मुस्लिमों में जो जातियाँ शिक्षिक-सामाजिक रूप से पिछड़ी हैं उनकी भी हकमारी हो रही है।
2011 के जनगणना के अनुसार राज्य में मुस्लिम जनसंख्या करीब 12.92 फीसदी है। ऐसे में एनसीबीसी ने सरकार के फैसले पर चिंता जताते हुए कहा कि इससे स्थानीय निकाय चुनाव में आरक्षण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। कर्नाटक में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए स्थानीय निकाय चुनाव में 32 फीसदी आरक्षण का दिया जाता है। इस आरक्षण को विभिन्न समुदायों में बाँटने की माँग उठ रही है।