आरएसएस प्रमुख (सरसंघचालक) मोहन भागवत ने कहा है कि एक भी हिन्दू को NRC के चलते देश नहीं छोड़ना पड़ेगा। उनके नाम असम की NRC/नागरिकता सूची में न होने का मतलब उन्हें देश से निकाला जाना नहीं है। सूत्रों के मुताबिक उन्होंने कोलकाता में भाजपा की मौजूदगी में संघ परिवार के आनुषंगिक संगठनों के प्रतिनिधियों के सामने संघ की प्रतिबद्धता दोहराई।
मालूम हो कि RSS शुरू से भारत को दुनिया भर से सताए गए हिन्दुओं की प्राकृतिक शरणस्थली या ‘प्राकृतिक घर‘ मानता रहा है और प्रधानमंत्री (तत्कालीन भाजपा चुनाव प्रचार समिति के प्रमुख) नरेंद्र मोदी की सीधी निगरानी में बने 2014 के घोषणा-पत्र में भी इस बात का ज़िक्र है।
बंगाल भाजपा प्रमुख दिलीप घोष की मौजूदगी में हुई इस बैठक में नागरिकता विधेयक संशोधन अधिनियम [Citizenship (Amendment) Bill (CAB)] संसद के आगामी सत्र में लाने पर भी बल दिया गया। कई नेताओं ने तो इस पर भी क्षोभ प्रकट किया कि हिन्दू शरणार्थियों के हितों को ध्यान में रखते हुए यह बिल पहले लाकर उसके बाद NRC ही कवायद की जानी चाहिए थी।
गौरतलब है कि मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित नागरिकता विधेयक संशोधन अधिनियम के प्रावधानों के तहत भारत के 6 पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों (हिन्दुओं, बौद्धों, ईसाइयों, जैनों आदि) को विशेष शरण और नागरिकता देने का प्रस्ताव लंबित है।
इसके पहले राजस्थान में भी संघ की बैठक में इस बात पर नाराज़गी व्यक्त की गई थी कि असम की NRC में नागरिकता से वंचित किए गए और घुसपैठिए चिह्नित किए गए करीब 19 लाख लोगों में से अधिकांश लोग हिन्दू ही हैं। सूत्रों के मुताबिक भाजपा ने आश्वासन दिया है कि बंगाल में NRC जैसी कवायद नागरिकता विधेयक संशोधन अधिनियम को पास करने के पहले नहीं होगी।