संशोधित नागरिकता क़ानून के विरोध में कई विपक्षी दलों ने एक प्रतिनिधिमंडल बना कर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाक़ात के लिए समय माँगा था। ख़बर आई है कि मंगलवार (दिसंबर 17, 2019) को शाम साढ़े 4 बजे ‘ऑल पार्टी डेलीगेशन’ की महमहिम से मुलाक़ात होगी। कॉन्ग्रेस समेत सभी विपक्षी दल राष्ट्रपति के समक्ष सीएए को लेकर अपनी चिंताएँ जाहिर करेंगे। भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए किए जा रहे प्रयासों की कड़ी में राष्ट्रपति से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, हर दरवाजा खटखटाया जा रहा है।
उधर शिवसेना ने सभी विपक्षी दलों को झटका देते हुए राष्ट्रपति से मिलने जाने वाले प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है। शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि उनकी पार्टी के नेतागण फ़िलहाल नागपुर में व्यस्त हैं और इसीलिए राष्ट्रपति से मुलाक़ात का हिस्सा नहीं बनेंगे। उन्होंने पूछा कि आख़िर ये विरोध प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं और इसके पीछे कौन लोग हैं? राउत ने कहा कि सीएए लागू होने से पहले से ही तय था कि इस क़ानून को लेकर विरोध प्रदर्शन होगा।
हालाँकि, इससे पहले संजय राउत ने विरोध प्रदर्शन का समर्थन करते हुए कहा था कि पूरा देश जल रहा है। हिंदुत्व और देशहित से जुड़े मुद्दों पर शिवसेना की स्थिति पेंडुलम जैसी हो गई है। जहाँ पार्टी ने लोकसभा में नागरिकता संशोधन अधिनियम का समर्थन किया था, राज्यसभा में उसने वॉकआउट किया। एक तरफ शिवसेना अपनी सत्ता में साझीदार कॉन्ग्रेस और एनसीपी को ख़ुश रखने में लगी है, वहीं दूसरी तरफ़ वो भाजपा को देशहित और हिंदुत्व के मुद्दों पर अकेले क्रेडिट लेने भी नहीं देना चाहती। सेकुलरिज्म और हिंदुत्व के बीच फँसी शिवसेना के लिए ये ‘कभी इधर तो कभी उधर’ वाली स्थिति हो गई है।
#CAAshowdown – First we need to find out why it happened and who is behind it. It was expected that after CAB, such sort of protests were bound to take place. We are not going in the all-party delegation (to meet the President) as we are busy in Nagpur: Shiv Sena MP Sanjay Raut. pic.twitter.com/jaJ9FuC08N
— News18 (@CNNnews18) December 17, 2019
कॉन्ग्रेस सहित 5 राजनीतिक दलों ने साथ में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के ख़िलाफ़ दिल्ली पुलिस की कथित बर्बरता का विरोध किया। कॉन्ग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि इस हिंसा के लिए पूरी तरह केंद्र सरकार जिम्मेदार है।
सीएए के ख़िलाफ़ न सिर्फ़ जामिया, एएमयू और मौलाना आज़ाद यूनिवर्सिटी जैसे शिक्षण संस्थानों, बल्कि पूर्वोत्तर के कई राज्यों में भी विरोध प्रदर्शन हो रहा है। विपक्षी दल लगातार हिंसा का समर्थन करते हुए सरकार पर आरोप लगा रहे हैं। जहाँ बंगाल में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने कई जगह हिंसा की, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इस कानून के ख़िलाफ़ लगातार रैलियाँ कर रही हैं।